Thursday, June 21, 2012

काका भाई ; जिंदगी कैसी है  पहेली   ........
.......और एक दिन मै काका भाई का कीमती दोस्त हो गया .पांच साल मुतवातिर उनके साथ रहा .सोने के अलावा कोइ वक्त ऐसा न गुजरा होगा जब हम दो पल के लिए भी अलग हुए हों .सुबह का नाश्ता ,दोपहर का खाना ,रात की रात भर चलनेवाली पार्टी ....सब साथ साथ ...रात के तीन बजे हम दस्तरखान पर बैठते थे चार बजे के करीब काका भाई किचेन ठीक करते थे फिर एक पान साहिब ! और जब हम ८१ लोधी रोड से बाहर निकलते थे तो लोधी गार्डन घूमने वालों का हुजूम दिखाई पड़ता था .काका भाई लोधी गार्डन में रहते थे और मै लोधी कालोनी में ,हमदोनो के बीच एक सड़क थी और खुशबूदार पेड़ों की छाँह .एक दिन मजेदार वाकया हुआ हम रात की पार्टी से ठीक ठाक होकर लौटे थे और दरवाजे का ताला खोल रहें थे ,तब तक हमारे पड़ोसी शर्माजी अपने बेटे को जगा कर सुनाराहे थे .. अंकल को देखो मार्निंग वाक् कर के आगये और तुम अभी तक सो रहें हो .....उस दिन मै देर से सो पाया .हमें रेणु ( महान कथाकार ,समाजवाद के पक्के सिपाही ,मैला आँचल और परतीपरिकथा जैसे उपन्यास के लेखक ....) ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जिस दिन ज्यादा पी लेता था सुबह जल्दी उठ जाता था लोग कहते थे .देखो आज कल पीना छोड़ दिया है ,जिस रात देर तक लिखता था और सुबह देर से उठता था ,तो लोग कहते थे ,देखो पी के सो रहा है | मैंने काका को फोन कर के रेणु जी की यह बात बताई ,हम दोनों काफी देर तक हस्ते रहे |
काका भाई से मेरी पहली मुलाकात बहुत दिलचस्प वाकया है , दिल्ली में हमारे एक मित्र है नरेश जुनेजा जो कत्तई अराजनीतिक आदमी है लेकिन राजनीति में सबसे जादा दखलंदाजी उनकी रहती है , किसी भी दल का आदमी हो जुनेजा साहब उसके अपने आदमी होते है , हर हप्ते हंगामेदार पार्टी करना उनका शगल है | एक दिन हमें सन्देश मिला कि आज कि शाम कि पार्टी में आप को आना है , और मै पहुच गया पार्टी बड़ी लम्बी थी उनके ड्राइंग रूम में बीसियों बिदेसी राजनायीक मौजूद थे , मै भी उसी में हाजिर हुआ | अचानक मुझे नरेश भाई के चमचे  से एक संदेस मिला कि आप नरेश जी के बेडरूम में चले जाये वहा कुछ लोग आप का इंतज़ार कर रहें है ,मै उस चमचे के साथ नरेश जुनेजा के बेडरूम में चला गया, वहाँ बम्बई के फिल्म इंड्रस्ट्री के कई दिस्तीबुटर, डॉक्टर , और अन्य लोग  अपनी अपनी गिलासो के साथ बा दस्तूर चलू थे , उसी भीड़ में हमारा एक मित्र संतोसानंद भी मौजूद था , ये संतोसनंद वाही है जो मनोज कुमार कि फिल्मो के गीत लिखता रहा है , वो अकेला पड़ा हुआ था क्यों कि वहा संघियो कि भीड़ जादा थी  .हमें देखते ही उसका चेहरा खिल गया ,और उसने एलन कर दिया कि लो अब मेरा वकील आ गया है अब बात करो ,मैंने पूछा कि क्या हुआ भाई आज आप को मेरी ज़रूरत पड़ रही है तो बोले कि यार मै अकेला हूँ यहाँ चड्ढी वालो कि तादाद जादा है मैंने कुछ अति उत्साह में कहा कि भाई हमें लेबिल में आने दीजिए अभी मै निपटता हूँ .मैंने निगाह दौडाया तो उस भीड़ में हमें हमारे दोस्त गिप्पी (नाम है सिद्धार्थ दुवेदी पुत्र हजारी प्रसाद ) दिखाई पड़े मैंने गिप्पी को इशारा किया कि हो जाये और हम दोनों दो ''पटियाला '' के बाद उस भीड़ से मुखातिब हुए और मैंने कहा कि हम इतनी देर से आप सब को सुन रहें थे , हम कोई राजनीति कि बात नहीं करेंगे हम केवल एक बात कहना चाहेगे कि दुनिया कि सबसे बड़े पोस्टर डिजाईनर का नाम मोहन दस करमचंद गाँधी है . भीड़ में सन्नाटा छा गया गाँधी और पोस्टर डिजाईनर ये चौकाने वाली बात थी ही उसमे से एक जो सबसे जादा चहकने वाला चड्ढीधरी था उसने पूछा कि यह नयी बात कहा से आगई तब तक मै रौ में आचुका था ,और मैंने उसे बताना सुरु किया कि आज़ादी कि लड़ाई में गाँधी ने जिस चलती फिरती पोस्टर का इजाद किया उसका नाम है चरखा उस ज़माने में जो चरखा चलता था वो मान लिया जाता था कि वो सुराजी है , और उस चरखे  पर कोई भी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता क्यों कि यह उत्पादन का स्रोत है ,उस भीड़ में सन्नाटा छा गया ,अचानक बिच में एक आवाज़ उठी - साहिब एक बार इसे फिर दोहरा दीजिए मै देर से आया हूँ ,मेरा नाम राजेश खन्ना है |
राजेश खन्ना से यह पहली मुलाकात थी और अभी तक आखरी नहीं हो पाई है ,आज मेरे वाल पर जब राहुल सिंह ने यह खबर दी कि  राजेश खन्ना कि तबियत ठीक नहीं है तो हमें ये अजीब सी बेचैनी हुयी और मैंने बगैर ये जाने हुए कि राजेश खन्ना हप्तो से बिस्तर पर पड़े हुए है ,न  खा पा  रहें है ,न बोल रहें है , चुप चाप लेते हुए है तो हमने फोन पर बात करने की नाकामयाब कोशिस की जब उनसे बात नहीं हुयी तो मैंने आज यानि २१ को सुबह १० बजे डिम्पल जी से बात किया हाला की डिम्पल जी हमें ढाढस बढाती रही कि नहीं सब ठीक हो जाये गा कंट्रोल में है लेकिन  मै अभी भी बेचैन हूँ , थोड़ी देर बाद राजेश खन्ना कि आवाज़  एक ठहाके के साथ आयेगी, कि हा साहिब हम सब रंग मंच की एक कठपुतलियां है जिसकी डोर उपरवाले की हाथ में है |
मैंने  राहुल को कहा है कि ,काका पर बहुत कुछ है जो मेरे पास है वो मै कल दूगा अपने वाल पर ,क्यों कि मैंने अपनी जिंदगी में इससे जादा खुद्दार इंसान नहीं देखा राहुल कल का इंतज़ार करना |

No comments:

Post a Comment