Tuesday, June 19, 2012

इमरजेंसी का पटाक्षेप हो
इमरजेंसी लगी ,हटी ,कांग्रेस यहांतक कि इंदिरा गांधी ने इसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी माँगी और जो इंदिरा गांधी इमरजेंसी की सबसे बड़ी  खलनायिका थी दो साल के ही अन्त् राल पर हिरोइन बन कर उभरी .
पिछले आलेख में हमने जिन मुद्दों को उठाया था  उस पर बहस न होकर बिपेंद्र भाई ने उसे एक नया मोड़ दिया है हम उसी पर आते हैं .बिपेंद्र जी कहते हैं कि 'आंदोलन का एक मकसद था कांग्रस के एकाधिकार की समाप्ति ' कांग्रेस से निकले तमाम समाजवादियों की यह चिंता शुरुआत से थी .इसलिए डॉ लोहिया बार बार उस एकाधिकार पर हमला करते रहें और सफल भी रहें .६७ में गैर कांग्रेसवाद एक प्रयोग था मकसद ऋणात्मक था  'कांगेस हटे ' .विकल्प क्या और कैसा बने इस पर विसंगतियाँ थी .भारतीय राजनीति में पहली बार साम्यवादी और संघी घराना एक साथ आया और कई सुबो में सरकारें बनी .लेकिन सरकार में कोइ गुणात्मक परिवर्तन नहीं हुआ बल्की कुछ मायने ये संविद सरकारे निहायत ही घटिया दर्जे की साबित हुई .सबसे हास्यस्पद स्थिति में समाजवादी रहें .'मालिक' से लड़ते रहें और मालिक के 'चिलमची 'की पालकी ढोते रहें .डॉ लोहिया दुखी हुए थे .जग जाहिर है .वही ज.पी. के साथ हुआ .
      १९५४ में कांग्रेस को क्रांतिकारी बनाने के लिए ज.पी. ने चिट्ठी लिखा था ,तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अधक्ष  पंडित नेहरु को .नेहरु 'सिंडिकेट' से तब भी घिरे थे उन्होंने जोखिम उठाना ठीक नहीं समझा चुनांचे जे.पी. का प्रस्ताव ठंढे बस्ते में चला गया .१९६९ में वही प्रस्ताव कांग्रेस ने  अस्वीकार किया लेकिन इंदिरा गांधी उस पर अड़ी रह गयी .कुल पांच समाजवादी थे इंदिरा गांधी के साथ -चंद्रशेखर ,मोहन धरिया ,कृष्ण कान्त ,रामधन ,अर्जुन अरोरा .कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया .कांग्रेस दो फांक में  बंट गयी .इन्दिकते और सिंडिकेट .१९७४,७५ तक आते आते जे.पी . को अपने ही खिलाफ होना पड़ा .कांग्रेस में जो समाजवादी विचारधारा के धुर विरोधी थे ,दकियानूसी थे भारत की बागडोर उन्ही के हाथ में सौपना पड़ा .मोरार जी भाई ,nईलम संजीव रेड्डी ,.. आदि आदि .और समाजवादियों ने एक बार फिर 'चिलाम्चियों' की पालकी उठाने में अपने को गौर्वानित महसूस किया .
      बिप्पेंद्र जी !७७ भारतीय राजनीति का टर्निंग प्वाइंट है .इस पर गौर कीजियेगा .. प्रतिपक्ष जो अब तक पुरुषार्थ की राज नीति कर रहा था वन अनुदान की राजनीति पर उतरने को मजबूर हो गया .राजनीति में गणित का प्रवेश हुआ उसका खामियाजा आज तक जनता भुगत रही है .बिपेंद्र जी हम आपके भावात्मक लगाव से वाकिफ हैं .हम भी आंदोलन के साथ रहें हैं दो साल की जेल  काटी है .सबकुछ बहुत नजदीक से देखा है .कांग्रेस को भ्रष्ट होने में पचास साल लगे हैं और प्रतिपक्ष पांच दिन भी नहीं चल सका बगैर भ्रष्टाचार के .
       एक छोटा सा सवाल पूछ कर हट जाना चाहूँगा -७७ के बाद आमजन के सवाल पर कोइ आंदोलन हुआ ? क्या हम ७७ के बाद बगैर किसी सवाल के बेहतर जिंदगी जी रहें हैं ? इसका जिम्मेदार कौन है ? संदीप जी ! मै अपनी तरफ से इस् विषय पर विराम दे रहा हूँ ...
 

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