Sunday, June 17, 2012

जार्ज की शख्सीयत
चर्चा इमरजेंसी पर चल रही थी .संदीप जी एक बुनियादी सवाल उठाया ...इमरजेंसी की असल तस्वीर क्या है .? यह सच है कि जब हम इमरजेंसी की बात करते हैं तो किसी गफलत बस या जान बूझ कर २६ जून १९७५ के पहले की घटनाओं को भी उसमे शामिल कर  लेते हैं .जब वे सब इमरजेंसी के कारक तत्व हैं .जे.पी. जनशक्ति के प्रतीक बन कर उभरे और श्री मती गांधी राज शक्ति की .राज शक्ति ने आंदोलन को रोकने या समाप्त करने के लिए इमरजेंसी लगाया .उस इमरजेंसी से कैसे लड़ा जाय ? यही सवाल है जिस पर अबतक चर्चा नही हो पाई है .क्यों कि जब इस बुनियादी सवाल पर बात होगी तो कई 'राज' खुलेंगे .और अनुत्तरित सवाल  इतिहास के कई पन्नों को उघार कर देंगे .मसलन ..
          ०- इस आन्दोलन की असल भूख क्या थी ? इंदिरा गांधी या कांग्रेस को सत्ता से हटाना या कोइ नई व्यवस्था देना ?
           ०- यह आंदोलन व्यक्तिगत रूप से इंदिरा गांधी ब हैसियत व्यक्ति के खिलाफ था या कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ था ?
            ०-इस आन्दोलन में साम्यवादियों  का रुख और उसके पीछे  का इरादा क्याथा ? क्या भारत में साम्यवाद को फैलने देने में कांग्रेस हुकूमत सहूलियत देती है ? बाकी दल इनके लिए चुनौती बनते हैं ? या जहां संघ रहेगा वहाँ साम्यवादी नहीं जायंगे ?
          ०- जे.पी. आंदोलन की सोच सीमित थी जिसमे यह भी नहीं सोचा गया था कि सत्ता  की तरफ से इमरजेंसी जैसी चीज भी लगाई जा सकती है ? और अगर यहाँ तक सोचा जा चुका था तो अगली रणनीति क्या थी ?
          ०- साकार सारे नेताओं को गिरफ्तार भी कर सकती है तो आगे की कमान किसके हाथ में रहेगी ..और उसका कार्यक्रम क्या होगा ?
          ये अनुत्तरित सवाल हैं .इन सारे सवालों का एक जवाब है -जार्ज  और जार्ज चुनौती बन कर श्री मती गांधी के सामने खड़ा होता है .इस लिए इंदिरागांधी अपनी पूरी ताकत के साथ जार्ज को खत्म करने पर आमादा होती हैं .इंदिरा गांधी की यह खूबी रही है और कमजोरी भी कि वह किसी को भी अपने सामने तन कर खड़ा हुआ देखना नहीं चाहती थी .इसलिए जार्ज और जार्ज के परिवार के साथ वह सब कुछ हुआ जो नहीं होना चाहिए था .उसके तफसील में नहीं जाउंगा .महज उन सवालों पर बात करूँगा जिसकी आड़ में आज इमरजेंसी भुनाने वाले तमाम नेता अपना चेहरा छिपा लेते है .
        य्हान्दोलन उद्द्येश्य हीन था .अगर कोइ 'सम्पूर्ण क्रान्ति 'की बात करता है तो वह पाखंडी है ,क्योंकि संपूर्णक्रांति अभी तक परिभाषित नहीं हो पाई है .अगर उसकी तुलना डॉ लोहिया के 'सप्त क्रान्ति' से की जाय तो और भी बेमानी होगी .
        यह आंदोलन समाजवादियों की जमीन पर खड़ा हो रहा था जिसके साथ संघी घराना "बर् मरे ,या कन्या ..दक्षिणा से मतलब' वाले तर्ज पर बरात की मानसिकता में गाते बजाते चल रहें थे .(ऐसे लोग जब पकडे जाते हैं तो ....'साहेब  गलती हो गयी .. ज्यादा हो गयी थी ..अब भविष्य में ऐसा नहीं होगा .. हमका माफी देयिदो साहेब !..इमरजेंसी में लिखा इनका माफी नामा इनके माथे पर लगा एक कलंक और है )
         अगर कोइ दल यह कहकर भागना चाहे कि उसके सारे नेता जेल में थे आंदोलन कैसे चलता तो इसका भी जवाब जार्ज ही देते हैं .डैनामाइट कांड से दुनिया के जितने भी .जनतंत्र के पैरोकार थे सब जार्ज के साथ उतर आये .और जार्ज की जीत हुई .लेकिन जार्ज के मन में जो कड़वाहट एक बार भरी वो आज तक नहीं निकली .बिपेंद्र जी ( इसमें हमलोग भी शामिल रहें हैं ) ने आपत्ति दर्ज किया है जार्ज का 'संघी' घराने से जुडना .बहुत कम लोंगो को मालुम है कि इस मुद्दे पर जार्ज को अपने लोंगो से कितना सुनना पड़ा है .यह सब कभी मीडिया में नहीं गया .हर बार जार्ज का एक ही जवाब रहता -बोलो किसके साथ जायं ..अकेले चलने की हिम्मत नहीं है ..समाजवादी आंदोलन बिखर चुका है ,एक दूसरे प्रति हम इतने पूर्वाग्रही बंचुके हैं कि इन्हें जोड़ा नहीं जा सकता ..तुम्ही बताओ क्या करूं ..?
      विषयान्तर कर रहा हूँ - जार्ज फिसलकर गिर गए थे दिमाग के अंदरूनी हिस्से में चोट लगी थी .बंबई में आपरेशन हुआ था ,मै गया मिलने हमारे साथ जार्ज के पुराने साथी रंजित भानु भी थे .हमें बाहर रोक दिया गया कहा गया कि थोड़ा रुक जाइए अंदर कुछ जरूरी बात हो रही है .हम बाहर बैठ गए ,थोड़ी देर बाद अंदर से लालकृष्ण अडवानी और जया जेटली बाहर निकली .हमने रंजित को कहा ' यह ..ले डूबेगी ..जार्ज को ' और वही हुआ .
      जार्ज के साथ बहुत सारी यादें हैं अगली पोस्ट में ....

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