Tuesday, December 10, 2013

चिखुरी /चंचल
कुर्सी दौड़ चालो है .......
                           तीनो जन ...इकट्ठे ? कीन उपाधिया, लखन कहार और उमर दरजी . तीनो सजे सवरें हैं .  तेलफुलेल , से चकाचक . लोगों ने देखा तीनो मुह लटकाए चले आ रहे हैं .न कोइ बात चीत ,न हंसी मजाक , बस सरपट बढे आ रहे हैं चौराहे की तरफ . जहां आसरे की दूकान पर मजमा पहले से ही लगा बैठा है . दो चार कदम रह गया होगा तभी लाल्साहेब ने सवाल दागा -ये तीनो ....किधर से भाई ? तीनो ने कुछ नहीं बोला . बस गंभीर बने रहे . वक्त की नजाकत देखते हुए कयूम मिया ने सहलाया -अरे भाई पहले बैठने तो दो , बेचारे पता नहीं कहाँ से थके-मांदे चले आ रहे हैं ,पता नहीं इन पर क्या गुजरा है , ... आओ कीन .. हियाँ आओ .. कहाँ से लौटे हो बेटवा ? कीन कुछ जवाब देते उसके पहले ही उमर दरजी ने जवाब दिया -गए रहे टोनामेंट देखने ...
  -टोनामेंट नहीं ,टूर्नामेंट ..
जो भी हो वही देखने गए रहे ,
तो हुआ क्या ?
एक से बढ़कर एक खेल हुआ . महीनों से तो चल रहा था . 'जलेबी दौड़ 'देखा . मजा आ गया गुरू , क्या खेल है ? दोनों हाथ पीछे बंधे रहे , एक दो के नहीं ,पूरे झुण्ड के झुण्ड . जलेबी ससुरी धागे में लटकी .. कभी इधर ,कभी उधर , बाकी खेल्नेव्वाले मुह बाए कूद लगाते रहे . पर मिला उन्ही को जिनका मुह चौड़ा रहा ...
और का हुआ . ?
-तिनटंगी दौड़ . इसमें अकेले नहीं दौड़ा जाता . ...दो को मिल कर दौडना होता है . एक का बांया पैर दूसरे के दाहिने पैर से कस कर बांध दिया जा है ,फिर रेस होती है . .. एक हुआ 'बोरा दौड़ ' यह और मजेदार दोनों पैर बोरे में डाल दिया जाता है और बोरे को कमर के पास बांध देते हैं ,फिर उनका रेस देखो . ..अभी बात पूरी भी न हो पायी थी कि मद्द् पत्रकार की मोटर साइकिल आकर रुकी . लोग बताते हैं कि जब मद्दू की मोटर साइकिल रुकती है तब उनकी पत्रकारिता चलती है . चुनांचे आते ही आते मदु चालू हो गए - क्या राजनीति हो रही है भाई ? जवाब दिया कीन उपाधिया ने - राजनेति नहीं गुरू , टूनामेंट की बात हो रही है . मद्दू ने समझाया - कीन ! दोनों एक ही है . लखन कहार चकराये 'दोनों एक ही है ? जलेबी , बोरा , तीन टंगी ....? लेकिन चुप रह गए . कोइ न कोइ तो पूछेगा ही . वह क्यों फसने जाय . बहर हाल मद्दू आये और चिखुरी के बक्गल में बैठ गए .
      आज की क्या खबर है चिखुरी काका ? चिखुरी ने अखबार  बगर रख दिया . चश्मा उतार ही रहे थे कि उमर ने बयान देना शुरू कर दिया - आज की खबर ? कुर्सी दौड़ चल रही है ,हम तो ऊब कर भाग आये . हमारा कंडीडेट तो पहले ही राउंड में गिर गया . .....' लाल्साहेब को मौक़ा मिल गया -ओमर मिया ! पूरा बताओ न , कैसे क्या हुआ ?
उमर ने ,बीड़ी सुलगाया . बीड़ी उलट कर जोर से धुँआ निकाला . आँखे लाल की . फिर बताना शुरू किया .
       हम तीनो जन यहाँ से होत भिनसार  पाठशाला पे पहुच गए जहा टूनामेंट होत रहा . खेलय वाले कम देखय वाले ज्यादा . तिल रखने की भी जगह नहीं . कोइ कुर्सी पर कोइ पेड़ पर कोइ साइकिल पे इसी में हम भी तीन जन .लखन कहार मजे में रहे गमछा रहा उस पर बैठ गए . हमने ईंट खोज निकाला , कीन उपाधिया को कुछ नहीं मिला तो 'पनही ' पर ही जम गए . इतने में क्या हुआ कि पहले सीटी बजी . एकदम सन्नाटा . फिर लोड स्पीकर का भोम्पा बोला ..दिल्ली मेरी दिल्ली .. दिली .. दिल्ली .. दिल्ली ... ' रेकाट' की सूई दिली पे फस गयी . सीटी वाले साहेब ने जोर से आवाज दी -जे नहीं चलेगा कोइ धार्मिक बजाओ ... रेकाड बोला - आरा हीले ,बलिया हीले , छपरा .. रोको जल्दी रोको ... नौटंकी समझे हो का . यह टूनामेंट है . कोइ दमदार गाना लगाओ . दो पढ़े लिखे लोग उसकी मदद के लिए भेजे गए . तब कहीं जा कर देशप्रेम मिला . इन्साफ की डगर पे . बच्चो दिखाओ चल के .. यह देश है तुमारा .. तुम्हारा .. तुम्हारा .. 'और देश फंस गया . खेल रोक दिया गया . अब तय हुआ कि कि एक कुर्सी बीच में रहेगी .उसके घेर कर दौडने वाले दो होंगे . और जब सीटी बजे तो एक को उस कुर्सी पर बैठ जाना है . जो बैठ जायगा वह जीत जायगा . कई बार सीटी बजी लेकिन कोइ भी बैठने को तैयार नहीं . तब से यही चल रहा है .सीटी बजती है दोनों एक दूसरे को देखते हैं पर बैठे को राजी नहीं हैं .
  -सो क्यों ?
सच्चाई का है ये तो 'ऊपरवाला ' जाने लेकिन मुहा मुही यही हो रही है कि किसी ने कुर्सी के उस असल मुकाम पर 'केंवाच ' रगड़ दिया है . जिस पर तशरीफ रखी जाती है .जो भी बैठेगा तशरीफ खुजलाते हुए भागेगा पर खुजलाना कम नहीं होगा .राम भरोस बनिया तो आप बीती बताता रहा कि एक बार वो भी फंस चुका है , ऐसी खुजली शुरू हुई कि पूछो मत बताने में शर्म आती है .
-लेकिन यह केवांच का होता है ?
 चिखुरी मुस्कुराए .-यह एक दरख्त का फूल है जो देखने में तो बहुत खूबसूरत होता है लेकिन इनके रोंये में  एक अजीब सी फितरत होती है खुजली की .. तो सुन लो पंचो केवांच से बचना चाहिए .
और दिल्ली की खबर क्या है भाई ?
 अब सुनो ... इनका सवाल देखो ....

Tuesday, December 3, 2013

चिखुरी / चंचल
हम तुम से मोहब्बत करके  सलम .....

                (    यह सुलेख उन दोस्तों के नाम है जिन्हें तानाशाही नहीं पसंद है .इसमें रामबचन पांडे पूर्व अध्यक्ष छात्र संघ काशी विश्वविद्यालय का संशोधन नोट किया जाय कि यह उस  पीढ़ी के लिए है जो जम्हूरी निजाम चाहती है )
 ....यह लो एक खबर और ... मोहब्बत के जुर्म में जेल ..
तुम से एक बात कहा है कि जब भी अखबार बांचो ,सलीके से . लंठई मत किया कर .इ टीवी ना है अखबार है . समझे ? और उमर  दर्जी समझ गया कि अखबार लिखना ही सलीका नहीं रखता , उसका पढ़ना भी सलीका मागता है. चुनांचे उसने चिखुरी की डाट का जवाब सलीके से दिया और 'जनाब ' कहकर फर्सी सलाम मारा . चिखुरी ने उमर से कहा - चल मोटी -मोटी बता ,
मोटी मोटी ? शहर में मोटी रहें भले ही लेकिन उन्हें छपने की छूट नहीं है , हम अहमदाबाद रह के आये हैं . लोग पहले खा  पी के मोटी होती हैं फिर दुबला होने के लिए सड़क दर सड़क घूमती हैं .उमर अभी बहुत कुछ बोलता लेकिन छप हो जाना पड़ा क्यों कि अखबार का . पहला पन्ना कोलई दूबे के हाथ में है - बुड़बक हो ,उसे मार्निंग वाक् कहते हैं .
कयूम को मौक़ा चाहिए होता है -इस्वाक में क्या होता है ?कयूम सवाल नहीं पूछते ,सवाल की गाँठ खोजते हैं .सो कोलई को विस्तार में जाना ही पड़ा .- पुरुष और महिला अल सुबह पार्क में चले जाते हैं . चुस्त पजामा और ढीली कुर्ती . जोर जोर से सांस निकालते हैं बंद कमरे का मशीन वाला हवा बाहर छोड़ते हैं और पेड़ पौधों की खुशबूदार हवा अंदर खींचे हुए तेज रफ़्तार से चलते हैं . महिलायें आगे रहती हैं पुरुष पीछे . ऐसा क्यों ? लखन कहार का सवाल टेढ़ा था . चिखुरी पलटे- इस लिए कि पुरुष  बत्तमीज होता है . कोलई चौके -ये लो .ताबक तोड़ दो ख़बरें .
सुना जाओ अभी चाय पक रही है .
पक नहीं रही है , दूध ही फट गया . आसरे ने ऐलान किया और बर्तन को फिर से धोने लगा . लाल्साहेब की आँख गोल हुई -कमाल है इस जमाने में भी दूध फटे लगा ? देखते देखते ज़माना खराब हुआ है . लाल्साहेब चालू हो गए - अभी कल मी बात है दूध फटने न पाए इसके लिए कितनी साफ़ सफाई रखनी पड़ती थी ,एक के घर में घी बनता था तो पूरा गाँव जान जता था . अबतो न कोइ महक न स्वाद . सब कुछ नकली .लखन ने एक अलग का किस्सा सुनाया . ''' पप्पू क भौजी बैगन खरीद कर ले गयी थी . एक बैगन बचा कर रखदी थी कि सुबह आलू मिला के चोखा बनाएंगे ,लेकिन सुबह क्या देखती है कि बैगन फूल के लौकी हो गया है . पूरे गाँव में कोहराम .पता चला आजकल सब्जियों को भी इन्फेक्सन दिया जाता है .
      इन्फेकन नहीं इंजेक्सन कहो .
     एकै मतलब हुआ .
लेकिन इ भी तो पता चले कि पप्पुआ क भौजी  बैगन रखे कहाँ रही ? एक साथ कई ठहाके लगे . लेकिन सबसे देर तक हँसते हैं कयूम मिया और उनके हँसने का तरीका कत्तई  आलग है . वे थोड़े थोड़े देर के अंतराल पर फिस्स ... फिस्स   करते रहेंगे .
   खबर तो सुनो , कोलई ने जोर का हांका मारा . और लोगों के कां उधर हो गए . एक साथ दो खबर . दोनों का मामला एक है ..
  मामला मत सुनाइये खबर पढ़िए . ..तहलका के संपादक पर बलात्कार का आरोप .
यह तहलका क्या है भाई ?  मद्दू ने बताया -तहलका ? यह हंगामा से मिलता जुलता है . उसके कोइ संपादक हैं तरुण तेजपाल उन्होंने ,,,,,,,
किसके साथ किया ?
उसका नाम नहीं है .
दूसरा ?
एक साहब है अमित शाह उन्होंने एक लड़की की जासूसी कराई वो भी अपने साहेब के लिए .
पूरा दिन खराब हो गया .कहते हुए चिखुरी ने मद्दू को उकसाया . -आपै बताओ भाई तुम भी अखबार से हो . का लगते हो अखबार के ? मद्दू इस सवाल के लिए तैयार  नहीं थे ,झिझकते हुए बोले -संबाददाता ...... हुआ यूँ कि ये जो साहब हैं तरुण जी अपने किसी महिला संपादिका से जबरदस्ती करने लगे और लगे 'लिफ्ट' मागने ' बस बात खुल गयी लिफ्ट की वजह से . अब पुलिस तरुण को गोवा ले जा रही है क्यों कि लिफ्ट वही गोवा में ही पडी है .और दूसरी ?
दूसरी खबर और भी नाजुक है .....गुजरात के कलेत्टर थे प्रदीप शर्मा . इसलिए उन्हें गुजरात की सरकार ने गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया.ताकी लोगों को पता तो चले कि जब इतने ऊंचे ओहदेदार को जेल में डाला जा सकता है तो बाकी किसकी औकात ? कभी सुना कि वहा कोइ कुछ बोला हो ? कोइ सवाल उठा हो ? इसे कहते हैं तर्ज ये हुकूमत . इसे ही कहते हैं 'गुजरात माडल . ' इस माडल में हर कोइ चौकन्ना रहता है . कोइ किसी से बात नहीं करता बात करनी है तो पहले जेल जाओ ,जमानत कराओ ,बाहर निकलो ,बात करो .फिर नयी धारा में जेल जाओ . इसी नुस्खे को पूरे देश में लगाने का इंतजाम किया जा रहा है . बशर्ते जनता समझे .लेकिन इस साथ साल में जनता भी बदजुबान हो गयी है ,अपने ही नेता से जुबान लड़ाती है . भाई नेता जी जो बोलें सब सही .उस पर सवाल मत उठाओ .उठाओगे   तो भोगो गे .साहेब कुछ भी कर सकते हैं किसी के भी गर की खाना तलाशी ले सकते हैं लेकिन साहेब की तरफ मत देखो . शर्मा जी को देखो , भाई चुप चाप चुप ही रहते क्यों झाकने लगे . बस चलो जेल क्यों कि शर्मा जी उस सी डी  को जानते हैं जो अमित के साहेब और साहेब की महबूबा के बारे में है .
इ सी डी का होती है भाई .लखन ने गंभीर सवाल पूछा . चिखुरी ने घुड़का - जवानी भी जा रही है और सी डी नहीं जानते ? भाजपा तो जानते हो न ? यह उसका खेल है . सटीक लगता है . यह एक तरह का तावा होता है इसमें गाना बजाना .नाचना कूदना बातचीत सब होती है . कहते हैं कि साहेब उस सी डी में हैं .और लोग यह भी कहते हैं कि इसी सीडी से साहेब ने संजय जोशी का खेल  खत्म किया था अब वही सीडी खुद के गले में फंस गयी है . लाल्साहेब बीच में आ गए -बोया पेड़ बबूल का ... ये अमित शाह कौन है भाई ?
... लोग बताते हैं इसकी पैदाइस शिकागो में हुई है .कई तरह की पढाई किया पर सुधरा नहीं ,गुजरात आगया और सरकार कामंत्री बन गया .
और ये साहेब कौन हैं ?
साहेब कहते हैं मुख्यमंत्री को .
और साहेब क्या कहते हैं ?
खलक खुदा का ,
हुकुम शहर कोतवाल का ,
हर खास व आम को आगाह किया जाता है कि -
डॉ धर्मवीर भारती की कविता पूरे सुर में बाचते हुए नवल उपधिया आगे बढ़ गए .