Thursday, September 20, 2012

बन्द का दर्शन 
बन्द ?
भारत बन्द सम्पूर्ण रूप से सफल रहा . ब कलम खुद - गडकरी, याचूरी . मुलायम सिंह यादव . शरद यादव ,वगैरह वगैरह ....रेल के इंजिन पर तमाम तरह के लाल , केसरिया . सतरंगी झंडों का फहरना .कैमरों के आगे नाचते गाते उत्साही नौजवानों का जत्था , अन्तः सूरज डूबने के पहले ही थक- थका कर बैठ गया . विरोध का एक और नपुंशक त्यौहार समाप्त हुआ . थकान ' मिटाते ' नेता अपने अपने सोफे पर निढाल पड़े  गलाफादू डिब्बे में अपनी तस्वीर तलाशने में मशगूल हैं .पूरालाल ( एक गाँव है ) के चौराहे पर आसरे की चाय की दूकान पर बैठा अस्सी साल का एक नौजवान सूरज  के डूबते चेहरे को निहार रहा है .उसकी आँखों में अभी भी चमक है . वह अपने आपसे एक सवाल कर रहा है - ' कांग्रेस भ्रष्ट है , कांग्रेस  ने महगाई  बढ़ाई,कांग्रेस किसान विरोधी है , कांग्रेस मजदूर विरोधी है , ... मै कहता हूँ कांग्रेस वह सब कुछ है जो कांग्रेस को नहीं होना चाहिए . लेकिन तुम क्या हो ? साथ साल हो गए है देश में बहु दलीय व्यवस्था को चलते हुए . इन साथ सालों में तुमने क्या किया ? कोइ एक काम गिना दो . क्यों बर्बाद कर रहें हो देश को , भटके हुए नौजवान को , और अपने आपको .मौक़ा तुम्हे भी मिला है , देश चलाने का . कोइ एक काम गिना दो ,  सत्ता में  में जाने के बाद क्या बदलाव आया ? सिवाय चेहरे बदलने के . कोइ गुणात्मक फर्क ?
      अभी एक चेहरा बोल रहा है , शरद यादव का , कभी जवान था उर्ज्वा थी , जज्बा था , थका हुआ लग रहा है . बुझे मन से बोल रहा है . उसका चोर मन उसकी खुर्दी से झाँकने  लगता है . वह कहरहा है बहु राष्ट्रीय घराने इस देश की अर्थ व्यवस्था को बर्बाद कर देन्गे . बोल्ट बोलते वह अपने सीने पर हाथ रख लेता है जैसे किसी का मुह दबा रहा हो .इस शरद यादव के पीछे एक और शरदयादव खड़ा है . उसके कंधे को हौले से ठोक कर पूछता है .. शरद ! तुम्हे याद है एक बार तुम ' फ़ूड प्रासेसिंग मंत्री ' रहें .पेप्सी कोला को भारत आने का न्योता तुमने अपने हाथ से दिया है . उस दस्तावेज पर तुम्हारे हस्ताक्षर हैं ? जानता हूँ , तुम्हारा हाथ कंपा था , तुम्हे उस शरद की याद आयी थी जो 'देसी' के लिए प्रतिबद्ध था . जार्ज ( फर्नांडीज ) ने जिस दिन कोकोकोला को बाहर का राश्ता दिखाया था तुम बगल में खड़े थे .आज क्या हो गया .? बोलो शरद .. बस एक अदद काठ की कुर्सी के लिए एक शरद यादव गिरवी रख उठा . ? उस अडवानी के बगल में बैठने के लिए जो सोमनाथ से रथ लेकर चलता है अयोध्या के लिए कूच करता है . चंगेज खान के कत्लेआम और इस यात्रा में तुम्हे फर्क नहीं दिखाई दिया . ? एक विवादित इबादत घर को गिराने के साथ पूरे देश में आग लगी पता नहीं कितने लोग मरे उससे भी ज्यादा ख्हतार्नाक खेल था हजारों हजार साल की हमारी वह तमीज जो एक बेहूदी हरकत से भरभरा कर बिखर गयी . उसके साथ सियासत करोगे केवल गणित के लिए . ?
        हम औरों की बात नहीं करते . साम्यवादी अपनी कोख में ही नकारात्मक सोच लेकर चला है . हमसे पूछोगे कि प्रतिपक्ष की क्या भूमिका बनती है ? विरोध किस तरह दर्ज किया जाता ? जेल भर देते . जंतर मंतर पर इकट्ठे होकर सरकार को ललकारते ,मार खाते . जनता तुम्हे प्यार से सुनती . तुम्हारा साथ देती . लेकिन पास नतो सगठन है न ही सिद्धांत है .. बन्द के बहाने तुमने सरकार को आराम करने का मौक़ा दिया . तुम्हारे बंद का हासिल जमा देखा जाय तो तुमने जनता को दुखी किया है . रेल रोक कर . बस रोक कर . बच्चे पानी के लिए रोते रहें हैं . मरीज राश्ते में दम तोड़ दिया है . .. चलो आज के अखबारों में अपना चेहरा खोजो .

Tuesday, September 11, 2012


इस कायनात में औरत से ज्यादा खूबसूरत और कुछ नहीं ........
एक दिन हम संगीत विभाग के बगल घने ऊबड़ -खाबड बेतरतीब उगे पेड़ों के बीच बैठे लैंडस्केप बना रहें थे . अचानक कहीं से घूमते हुए अप्लाइड के हेड पम्मी लाल आगये . बहुत प्यारे टीचर थे .शकुंतला सिंह जो हम लोंगो के साथ थी , उसके पीछे खड़े हो गए . उस समय वह कोइ फ़िल्मी गाना गा रही थी और पेन्सिल से स्केच कर रही थी . पम्मी ने पूछा क्या हो रहा है ? उसने पलट कर पीछे देखा और बोली - सर आगे लाइन भूल रही हूँ .. बता दीजिए न ... ! दोनों में उस गाने को लेकर बहस चल पडी . अंत में तय हुआ कि कल पूरी क्लास  '  आनंद ' देखेगी . और टिकट का भुगतान पम्मी लाल करेंगे . ( ऐसी घोषणाएँ कई बार हो चुकी हैं लेकिन बस यहीं तक ) अचानक पम्मी ने पूछा इसमें हिरोइन कौन है ? शकू ने बताया कोइ नहीं .. ! तो फिर कैंसिल . बगैर हिरोइन के मै कुछ नहीं देखता . हम सब चौकन्ने हो गए . अजीब स्थापना है ? किसी दूसरी लड़की ने पूछा था - सर मान्लिजिये आप यहाँ अकेले बैठ कर लैंडस्केप बना रहें हैं तो आप इसे भी नहीं देखेंगे .. ? पम्मी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया - यहाँ तो बहुत सारी हीरोइने हैं ... ! इन पेडों में ? उन्होंने कहा हाँ , इन  पेडों में , टहनियों में , पत्तियों में . पर देखो तो सही . प्रकृति के हर हिस्से में स्त्री है . पुरुष है , चलो आज तुम लोग देखना शुरू करो . किसी एक को अपने सामने कर लो गौर से देखो उसके लिंग , उम्र . उसका मूड . सब कुछ तुम्हे पता चल जायगा . जब तक यह जानकारी नहीं होगी तुम उन्हें तमीज से नहीं पेट कर सकते .
     प्रकृति की इस नायाब धरोहर  'स्त्री ' पर आज नीलाक्षी जी ने एक असामान्य टिप्पणी की है कि पुरुष को उसकी देह की सुंदरता ही लुभाती है इसलिए वह उसका गुणगान करता है . यह आधा सच है नीलाक्षी जी ! नीलाक्षी जी ! सौंदर्य तब तक पूरा नहीं होता जब तक कि उसमे करुणा न हो . इस लिहाज से औरत हर हाल में प्रकृति की सबसे बड़ी और अकेली धरोहर है . इसलिए हर औरत खूबसूरत होती है , करुणा से भरी होती है . वह रचना है और रचनाकार भी . पोषक है और हरपाल रचना में लींन रहती है . किसी भी 'तत्व' को बरगी कृत करेंगी तो कुल आठ कारक मिलेंगे जो धनात्मक है वह स्त्री है जो ऋणात्मक है वा पुरुष है . उदाहरण के लिए एक रचना करती है , दूसरा विध्वंश .....
        हे देवियो ! हमें एक कोमल छाया दीजिए .  

Saturday, September 8, 2012

डॉ. कुरियन नहीं रहे.....
'अमूल ' और डॉ कुरियन एक दूसरे के पर्याय हैं . सारी दुनिया में . गुजरात और  दूध  उत्पादन का सबसे बड़ा क्षेत्र ? यह असंभव था . लेकिन एक शख्स ने यह कर दिखाया , उसका नाम है डॉ कुरियन . 'सफ़ेद क्रान्ति का आग्र्दूत . दूध की सहकारी व्यवस्था कैसी और कितनी कारगर होती है ? यह देखने के लिए सारी दुनिया से लोग आ रहें हैं . गुजरात के आनंद शहर में .गांधी दर्शन को केन्द्र में रखकर किया गया एक सफलतम प्रयोग .अगर कभी गुजरात के गाँव को देखने का मौक़ा मिले तो इस जुनूनको जरूर झांकिये गा जो डॉ कुरियन ने घर घर में दिए की तरह सजा गए हैं . गुरात पानी की किल्लत झेल्नेवाला सबसे बड़ा और भयावह सूबा है . कुवों के पानी का जलस्तर सबसे नीचे जा चुका है . लेकिन मेहनती गुजराती विशेष कर महिलाए 'सफेद्क्रान्ति की वाहक बनी मसाल जलाए रखा है . हर घर में भैस . हर गाँव में दूध का डिपो . गाड़ी आयेगी और दूध ले जायगी . इतना ही  नहीं अगर किसी के घर कोइ प्रयोजन है या शहर से कोइ सामान मग्वाना है तो पूर्व सूचना पर वही गाड़ी मुफ्त में पूरा सामान गाँव तक ले आयेगी . यह सब कुरियन की देंन है . विकेंद्रित अर्थव्यवस्था जो गांधी की मंशा थी वह यहाँ देखने को मिलती है .
       इसी अर्थव्यवस्था पर एक प्रसिद्ध फिल्म बनी थी . 'मंथन ' स्मिता पाटिल का प्रवेश था , गिरीश कर्नाड , अनंत नाग , कुलभूषण खरबंदा ,नशीरुद्दीन शाह . .. यादगार फिल्म . वह कुरियन नहीं रहे . नमन 

Sunday, September 2, 2012

इंदिरा गांधी की वैचारिक यात्रा ..
   आज पूजा शुक्ला जी का एक मंतव्य दयानंद पांडे जी के हवाले से फेसबुक पर देखने को मिला .जिसमे पांडे जी ने बताया है कि किस तरह इंदिरागांधी प्रधान मंत्री बनी ? एक नजर में यह एक किस्सा की तरह चलता है ,जिसमे सियासत के तमाम दाँव पेच की हल्की झलक मिलती है .लेकिन अंतर्कथा बहुत पीछे से शुरू हो चुकी होती है .पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधान मंत्री बनने से पहले आजादी की लड़ाई के ही दौरान .देश में घट रही हर घटना से इंदिरा गांधी जुड़ी रही . उम्र भले ही कम रही लेकिन उनकी उपस्थित दर्ज होती रही है .आनंद भवन का ठिकाना , पंडित नेहरू का संसर्ग देश के तमाम नेताओं के बारे में एक दूसरे की क्या राय है ? इससे इंदिरा गांधी पूर्व परचित रही .इंदिरा गांधी को यह भी मालुम रहा कि कांग्रेस के अंदर की आपसी गुटबाजी में कौन किसके साथ है .? कांग्रेस के अंदर समाजवादी गुट का अद्भुदय जिसके नेता पंडित नेहरू स्वं रहें का टकराव ठस कांग्रेसी ग्रुप के लौह पुरुष सरदार पटेल से था .पंडित नेहरू की छवि भले ही बहुत बड़ी थी ,लेकिन संगठन पर पटेल का कब्जा था .गांधी जी कांग्रेस में घट रही घटनाओं को बड़ी बारीकी से देख रहें थे ,और उनका फैसला नेहरू के पक्ष में गया और पंडित नेहरू प्रधान मंत्री बन गए .यहाँ दो दो बड़ी घटनाओं की तरफ इशारा करना चाहूँगा जो आगे चल कर कांग्रेस यात्रा में कारक तत्व बनते हैं - एक - कांग्रेस से गांधी का अलगथलग पड़ जाना और दूसरा समाजवादियों के प्रति गांघी का झुकाव .इसका अंदाजा पंडित नेहरू और पटेल दोनों को हो चुका था .चूंकि  पंडित नेहरू स्वं समाजवादी थे और समाज्वादिओं से उनके ताल्लुकात अच्छे थे लेकिन उनकी तादात इतनी नहीं थी कि उनके सहारे नेहरू किसी पायदान तक पहुच पाते इसलिए उन्होंने चुप्पी साध ली .गांधी जी १९३४ में ही कांग्रेस से अलग हो चुके थे ( संवैधानिक रूप से लेकिन कांग्रेस के साथ जुड़े रहें ) लेकिन कांग्रेस की दिक्कत थी कि ब गैर कांग्रेस के वह कोइ निर्णय नहीं ले सकती थी .आजादी के तुरत पहले गांधी जी ने कांग्रेस को एक अजीब स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया .जब उन्होंने सुझाव ( यह सुझाव और सलाह कांग्रेस के लिए आदेश होता था ) दिया कि ' कांग्रेस का अध्यक्ष पड़ किसी समाजवादी को दिया जाय , और बापू ने नाम भी सुझाया था आचार्य नरेंद्र देव का .यह कांग्रेस के लिए सुपाच्य नहीं था लिहाजा सबसे मुलायम समाजवादी आचार्य कृपलानी अध्यक्ष बने .ये सारी घटनाएं इंदिरा गांधी के सामने घट रही थी .( भरत विभाजन के अपराधी  पुस्तक में डॉ लोहिया ने एक घटा का जिक्र किया है जिसमे गांधी जी और लोहिया के ईच इंदिरा गांधी मौजूद रही ) दयानंद पांडे जी जब व्यक्तियों के हवाले से इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्री बनने के दास्ताँ कहते हैं तो उसके पीछे जो वैचारिक यात्रा चली आर रही होती है उसकी तरफ  भी चलना चाहिए .
       इंदिरा गांधी का इतिहास पंडित नेहरू की   राजनीतिक ख्वाहिसों  की पूर्ति का सम्यक यात्रा है .जिसे पांडे जी ने इंडीकेट और सिंडी केट कह कर छोड़ दिया है .कांग्रेस का यह टर्निंग प्वाइंट है .इंदिरा गांधी  ने देखा है प्रधान मंत्री नेहरू तीन मूर्ती के लान में डॉ लोहिया के साथ बैठे हैं .भारत आजाद हो चुका है ,गांधी जी की ह्त्या की जा चुकी है , समाजवादी कांग्रेस से निकल चुके है .लौह पुरुष पटेल की मृत्यु हो चुकी है .नेहरू और लोहिया लान में बैठे है .इंदिरा गांधी जग रही है रात के दो बजे तक नेहरू लोहिया को मनाते रहें .लोहिया की तीन शर्ते हैं .दो पर पंडित नेहरू सहमत हैं एक पर असहमत बात टूट गयी लेकिन एक लोच के साथ ' चलिए हम इस पर फिर चर्चा करेंगे ' .नेहरू के समाजवाद के प्रति मोह का असर इंदिरा  गांधी   पर पड़ा . नेहरू संगठन के दबाव पर जो नहीं कर पाए उसे इंदिरा गांधी ने १९६९ ' नेकीराम कांग्रेस ' में कर के दिखा दिया .१९५४ में एक प्रखर समाजवादी जे. पी. की लिखी एक चिट्ठी जो उन्होंने पंडित नेहरू को लिखी थी और वह कांग्रेस के ठंढे बस्ते में पडी थी उसे इंदिरा गांधी ने सामने रख कर दिग्गजों से टक्कर लिया . कुल पांच समाजवादी इंदिरा के साथ रहें - चंद्रशेखर ,मोहन्धारिया ,कृष्णकांत ,अर्जुन अरोड़ा ,रामधन /इंदिरा गांधी कांग्रेस से निकाल  दी गयी .एक नयी कांग्रेस बनी  कांग्रेस इंडीकेट .इस इन्दी केट ने जे. पी. की चिट्ठी को जस का तस स्वीकार किया , कांग्रेस ने पहली दफा समाजवादी समाज के लिए अपनी प्रतिवद्धता का ऐलान किया . बैंको का राष्ट्रीयकरण , प्रिविपर्ष की सामप्ति  आदि चौदह कार्यक्रमों को लेकर इंदिरा गांधी मैदान में उतारी और सिंडी केट का सफाया हो गया .
     पांडे जी ने द्वारिका प्रसाद मिश्र और कामराज नादार का जिक्र किया है .लेकिन उन लोंगो को भी देखिये जिनका समाजवाद से शुरुआती लगाव रहा है . पंडित कमलापति त्रिपाठी ,हेमवती नंदन बहुगुणा , नारायण दत्त त्रिपाठी .बहुत नाम है हर सूबे में रहे ....
    पूजा जी आप बधाई की पात्र हैं , इतिहास् के अनछुए हिस्से को उजागर कर आप उसे सामने लाई. ऐसे मुद्दों पर शोध की जरूरत है . पांडे जी ! अगला पन्ना उठाइये .. बहुत कुछ सीखने को मिलता है आप लोंगो से ..