Friday, February 19, 2016

chanchal: चिखुरी / चंचलपढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब----------...

chanchal: चिखुरी / चंचल
पढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब
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: चिखुरी / चंचल पढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब -------------------------------------------------------------------------------------------------...
चिखुरी / चंचल
पढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब
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       - ई जनेऊ का बवाल का है , फलाने ? लखन कहार के सवाल पर नवल उपाधिया को हंसी आ गयी . जनेऊ ? जनेऊ के बारे में कीन उपधिया को ज्यादा जानकारी होगी , क्यों कि वे इसके घोर समर्थक हैं , दिन में जितनी बार भी उन्हें लघु शंका सताती है , उतनी बार ये इसे बंदी में हाथ डाल कर निकालते हैं और कान को पकड़ कर बांध देते हैं फिर लघुशंका कर्ण भागते हैं . क्यों भाई  कीन सही कहा न ? कीन मुस्कुराए , वे जानते हैं ये जितने भी गैर संघी हैं सब के सब किसी न किसी बात पर हम्मे लापेंटँगें ही , चुनांचे इनसे बच के ही रहना चाहिए . लाल साहेब जो अब तक भट्ठी सुलगा रहे थे ,ने नया जुमला फेंका - लघुशंका मतलब यही न ? कहते हुए उन्होंने दाहिने हाथ की कँगुरिया खड़ी कर दी . नवल ने तस्दीक कर दिया , हाँ वही भाई जो हम लोग बचपन में स्कूल मास्टर को दिखा कर , भाग जाते थे झाडी की तरफ . लाल साहेब ने अब दुसरा सवाल ठोंका - एक बात बताओ गुरु ! कान क्यों बाधते हो ? कि इधर से न निकल जाय ? कीन गुस्सा हो गए - ये तो हद्द है , किसी का मजाक ऐसे उडाया जाता है ? यह हमारा धर्म है . हिंदू धर्म . भिखई मास्टर ने सवाल को ऐसा टेढ़ा किया कि उसका जवाब कीन के पास नहीं था - मत्लाब्जो जनेऊ न पहने वह हिंदू नहीं है ? मद्दू पत्रकार को मौक़ा मिल गया - ये अज्ञानी है , कीन . इसे माफ कर दो भाई , किसी जमाने जब समाजवादियों ने जनेऊ तोडो आंदोलन शुरू किया तो , ये हाफ पैत्वालों ने जम्मू की एक सभा में जे पी पर हमला कर दिया था . चिख्री जो अब तक अखबार में उलझे थे उन्हें कोइ आहत मिली - ये अचानक जनेऊ कहाँ से आ गया ? मामले को सम्भाला लखन कहार ने - आप तो जानते ही हैं दादा ! जिस दिन से आपने कहा कि अखबार बिक गए हैं , हमने पढ़ना और टीवी देखना दोनों ही बंद कर दिया ,लेकिन ससुरा मन नहीं मानता. बिल्लुआ से पूछ लेटा हूँ , वह जो बता देता है वही समझ लेता  हूँ . आज दो दिन से वह एक ही बात बोल रहा है - जनेऊ का बवाल . कयूम मियाँ चौंके - जनेऊ का बवाल ? मद्दू पत्रकार ने ठहाका लगाया . जे बात ! भाई वो जनेऊ नहीं है , जे यन यू है . जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी .
 इस्स्स ! कह कर लखन कहार ने गर्दन झुका  ली . बस इतना सुनना था कि , कीन उपाधिया पार्टी लाइन पर आ गए - बवाल नहीं जे सब सच है , वहाँ राष्ट्रद्रोही रहते हैं , भारत माता के खिलाफ नारे लगाते हैं , पाकिस्तान जिन्दावाद बोलते हैं , पाकिस्तान के झंडे फहराते हैं , इन्हें तो गोली मार देनी चाहिए . नवल भड़क गए - कौनो पनही ना पहने अहे रे , मार तो चार पनही उही मुह पे , के कहत रहा बे कि हुआँ इ सब होता है ? मद्दू पत्रकार ने रोका - रुको , शान्ति , शांत ... असल बात जे है कि उस विश्वविद्यालय में ज्यादा तर छात्र और अध्यापक कम्युनिस्ट विचार के हैं . यह बात संघी घराने को कत्तई नहीं पसंद है . तो जब सरकार में आ गए तो लगे उसके खिलाफ  षड्यंत्र करने . इसके लिए अपने ही लोगों से देश बिरोधी नारे लगवाए और नाम डाल दिये छात्र संघ अध्यक्ष कन्हया कुमार का .और लगे हाथ गिरफ्तार भी कर लिए . इतना ही नहीं घर मंत्री ने ताबक तोड़ हाहिज सईद के समर्थन का भी ऐलान कर दिये .
- कयूम मियाँ ने पूछा - ये हाफिज कौन है भाई ?
यह दुनिया का माना हुआ आतंकी है , इसके बारे में अपने घर्मंत्री ने बोल दिया कि इसने विश्वविद्यालय के अलगाववादी ताकतों का समर्थन किया ,जो कि गलत साबित हुआ . इस तरह तो अपनी सरकार चल रही है . और जेल में जलालत झेल रहा एक बेगुनाह कन्हैया कुमार .
- ये कन्हैया कुमार क्या है ?
- कन्हैया कुमार की कई गलतिया हैं . एक - कन्हैया कुमार बिहार का है . उसी बिहार का जिस बिहार ने अभी हाल के चुनाव में सरकारी पार्टी को घर का रास्ता दिख दिया था . सरकार को लगा कि बिहार डिल्ली में आकर मुह चिढा रहा है . दो - कन्हैया जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष बना , और यह बिश्व्विद्यालय खुदा न  खास्ता डिल्ली में है , बिहार या उत्तर प्रदेश में होता तो कोइ बात नहीं लेकिन दिल्ले में आकर चुनौती देगा ? तीन - कन्हैया कम्युनिस्ट भी निकला . कम्युनिस्ट नाम सुनते ही संघ का खून खुल जाता है . इन तीन खामियों के अलावा और भी कई बाते हैं जो इन्हें नहीं पचती . चुनांचे सरकार को पूरा हक है कि जो उससे सहमत न हो उसे उसकी मरम्मत कर दे . कन्हैया को इसी फेर में फंसा कर
तीनो सजा दी जाय . एक - जेल , दो - यातना . तीन अपने लोगों को खुली छूट कि उसे अदालत के सामने शारीरिक धुलाई की जाय . और वही हुआ .
नतीजा का रहा ? लखन कहार का जवाब दे रहे हैं चिखुरी . - होना क्या था , सब खेल उजागर हो गया , नारा लगानेवाले संघी , पुलिस में शिकायत करनेवाले संघी , गिरफ्तारी करने वाली पुलिस संघ की मेहर . अब कह रही है गलती हो गयी . घर मंत्री की एजेंसी कह रही है कन्हैया निर्दोष है . सारा देश कुनमुना गया . आज कन्हैया के लिए देश के सबसे बड़े वकील सोली सोराब जी वकालत करने को तैयार हैं .
नवल ने सवाल उठाया - तो ये लोग ऐसा करते क्यों हैं  ?
- माहौल बिगड़े , तनाव बढे , अभी बीजा पुर में संघ के छ लड़के पकडे गए हैं जिन्होंने पाकिस्तानी झंडा , तहसील की इमारत पर चुपचाप लटका आये थे . पकडे गए हैं . इसका जवाब देश की सरकार नहीं दे पा रही है . यह हैः गुजरात माडल .
- हूँ . तो ये है गुजरात माडल ? कहके नवल ने कीन की ओर देखा और फगुआ गाते हुए आगे निकल गए -
   

Monday, February 8, 2016

बतकही / चंचल
पैसा फेंको ,तमाशा देखो
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               'इ भाई बिहार तो कमाल की जगह है , पता नहीं यहाँ की पानी में का सिफत है कि जहां भी हाथ डालेगा ,कुछ न कुछ ' डैमेज ' करके ही छोडेगा . ...कीन अभी शुरू ही हुए थे कि उमर दरजी ने टोक दिया - क्या डैमेज हुआ , उपाध्याय जी ? कीन पलटे , मन ही मन बुदबुदाए ,कीन जानते हैं कि ,उमर जब भी बे वजह अतिरिक्त इज्जत देता है ,तो इसके मतलब उसमे कुछ बदमाशी जरूर है . और ऐसेमे जब से कीन परधानी हारे हैं ,उमार चोट करने से बाज नहीं आता . जिस दिन नतीजा घोषित हुआ , सब को मालुम हो गया कि कौन जीता है कौन हारा है ? लेकिन दूसरे दिन सुबह लाल्साहेब की दूकान पर जहां परधानी के सारे उम्मीदवार एक जगह एक साठ बैठे मिले वहाँ भी उमर दरजी का मुर्हप्पन कम नहीं हुआ . नतीजा जानते हुए कि कीन उपाधिया चुनाव हार गए हैं ,  उमर ने तपाक से कीन को गले लगाया और काफी देर तक चिपका खड़ा रहा - गुरु बधाई !हम माला फूल लाना भूल ही गए ,  इस नतीजे ने तो पुरे गाँव को बचा लिया... वरना कोइ ताकत नहीं कि इस गाँव को डूबने से कोइ रोक पाता .... बहुत अच्छा हुआ .. जो होता है ,अच्छा ही होता है . शपथ कब होगा भाई उपाधय जी ?
          कीन को करेंट लगा . समझ गए कि उमर कहाँ चोट कर रहा है . तुरत अपने को अलग किये , गमछे से मुह पोछे , और लोंगों के मुस्कुराते चेहरे को देखे और चुपचाप बैठ गए ये कहते हुए कि - हम सब जानते हैं उमर , ...... वो नहीं हैं ... .लाल साहेब ने चटकी काटा .- ये किसने कहा कि आप ओ नहीं हैं .. ? आप ओ न  होते तो चुनाव कैसे लड़ते . ई का हो रहा बा भाई ! इहाँ कीन हार गए , डिल्ली में हारे , बिहार ने पतली गली से निकल जाने का रास्ता दिखा ही दिया . सुना है गुरात में लोकल बाड़ी के चुनाव में भी मुह के बल पटखनी खा चुके हैं ,यह हाल है गुजरात माडल का ? अब सुना है कोइ कीर्ती आजाद हैं , उन्होंने बता दिया कि डिल्ली क्रिकेट बोर्ड में बहुत लंबा घपला हुआ है कई सौ करोड डकारे गए हैं ? भिखई मास्टर जो अबतक अखबार देख रहे थे ,उसे सामनेवाले को देते हुए बोले - आज अखबार में है उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया गया है . निकाल दिया ? लखन कहार ने खैनी मलते हुए , मुस्कुराए - का का बताए भाई ? बहुत कुछ बताए ,अब बारी मद्दू पत्रकार की थी - ठेका दिया गया , निर्माण कार्य का . जितने में दिया गया उससे दुगना बढ़ा दिया गया , खरीद फरोख्त में घपला और तो और बीस हजार में मिलनेवाले कम्प्यूटर को सोलह हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर लिया गया . इसी को कीर्ती आजाद ने सबके सामने बोल दिया .
          - तो इसके लिए पार्टी क्यों बौखला गयी ? उन्होंने ये तो कहा नहीं कि पार्टी ने चोरी की है ,तो पार्टी से क्यों निकाला ?कोलाई डूबे का वाजिब सवाल रहा . चिखुरी मुस्कुराए . - हुआ यूँ है कि जिस समय ये घपले हुए उसके सर्वे-सर्वा अपने अरुण जेटली रहे , चोट सीधे अरुण जेटली को लगी ,अरुण जेटली के पास कोइ जवाब तो रहा नहीं ,चुनांचे एक ही रास्ता बचा रहा कि उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाय . उमर दरजी मुस्कुराए - तो एक विकेट और गिरा ?
   अभी देखते जाओ कितने और छटके गें . ये सरकार ही नाबालिगों की फ़ौज लगती है जिसने तोप का मुह अपनी तरफ कर रखा है और कह रहे हैं दुश्मनों को सफा करके ही दम लेंगे .
कीन से नहीं रहा गया ,अपनी हार भूल गए ,लगे अपने सरकार की तरफ से बोलने - यह सब कांग्रेस का खेल है . आप कीर्ती आजाद को नहीं जानते ? लेकिन उमर से नहीं रहा गया - कीन ! ऐसा बोल रहे हो जैसे कीर्ती आजाद नहीं भये , सनलाईट साबुन हो गए है ? मजाक नहीं , सुनो जो बोल रहा हूँ , कीर्ती आजाद  कांग्रेस के रहे भागवत आजाद उनके लड़के हैं ,वह खून का असर तो जायगा नहीं और फिर बिहारी . कोलाई डूबे ने टोका - इसमें बिहारी का मतलब ? कीन संजीदा हो गए - बिहार ने कम किया है , देश दुनिया में भाजपा की ऐसी की तैसी करके रख दी . पहले यशवंत सिन्हा फिर शत्रुघ्न सिन्हा , अब कीर्ती आजाद . एक एक करके सब पैतरा बदल रहे हैं .और यह सब कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है .   चिखुरी जोर का ठहाका लगाए - सुन कीन ये सही है ये तीनो ही संघी नहीं हैं . मूलतः ये ये दिल और दिमाग से बड़े लोग हैं संघ की मजबूरी थी कि समाज में चेहरा दिखाने के लिए कुछ ऐसे चमकदार और समझदार लोगों लोंगों को भाजपा में लाया जाय . यशवंत सिन्हा चंद्रशेखर के साथी हैं , शत्रुघ्न जे पी से प्रभावित रहे हैं , कीर्ती आजाद का सुन ही रहे हो . तुम्हारे पास जो अपने लोग हैं उनके बारे में मुह मत खुलवाओ . कोइ किसी से कम नहीं . इत्ते में नवल उपाधिया नयी खबर लेकर नमूदार हुए - कुछ सुना पंचो ! देश के खनन मंत्री ने क्या खोदा ? एक गाड़ी होती है फार्चून . बीस लाख के ऊपर की है . वह खरीदी गयी थी उड़ीसा के जंगलों को देखने के लिए , उसेमंत्री जी लेकर घूम रहे हैं डिल्ली में ...... गोलमाल .. गोलमाल है सब गोलमाल है ... रुके नहीं , गाते हुए आगे बढ़ गए .... 

chanchal: चिखुरी / चंचलचलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोब...

chanchal: चिखुरी / चंचल
चलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोब...
: चिखुरी / चंचल चलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोबासी -------------------------------------------------------------------------------...
चिखुरी / चंचल
चलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोबासी
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...'राजनीति का होती है , इस सवाल को जड़ी कोइ हल करदे तो हम उसे पाइथागोरस से भी बड़ा बिद्वान मान लेंगे . नवल उपाधिया जब भी ऐसा सवाल पूछते हैं तो पूछ कर त्रिभंगी मुद्रा में हो जाते हैं ,गर्दन बायीं तरफ झुक जाती है , कमर दाहिनी तरफ और दोनों पैर एक दुआसरे के साथ कैंची मार लेते है .आँख सिकुड़ जाती है मुह ऊपर से नीचे की तरफ चिपक जाता है और भरपूर ढंग से कान तक बढ़ जाता है थिल वैसे लगता है जैसे सावन में सूखा पड़े से जमीन में दरार . सवाल सदन में है ,उस पर लोग सोचें , इधर नवल व्यस्त है खैनी मलने में . मद्दू पत्रकार को नवल की यह ' हरकत ' कत्तई नहीं पसंद है .नवल का इस तरह तीन टेढ़े का टेढ़ होना नहीं , न ही उसका मुह बनाना , मुह उसका है कमबख्त जैसा चाहे बनाए हमसे का लेना , लेकिन उसका इस तरह से खैनी बनाना ? उफ़ ! देखिये न कितना वीभत्स लगता है , पूरा लुच्चा लगता है बायीं मुठ्ठी में गदोरी पर खैनी और चूना रख कर मुत्थ्थी बंद करके उसमे अंगूठे के बगल वाली बड़ी उंगली दाल कर ऐसे रगड़ता है कि ... ' आपकी खैनी बन गयी हो तो उसे उंगली समेत मुह में डाल लीजिए और बैठ जाइए ' नवल जानते हैं ,मद्दू जब आप जोड़ कर किसी से बात करते हैं तो उसका मतलब क्या होता है . नवल ने फिस्स से हंस दिया .कयूम मियाँ डीएम साढ़े बैठे थे , जुम्बिश हुयी - बरखुरदार ! आपका सवाल है तो बहुत माकूल . पर पेचिंदा भी है .उमर दरजी ने बीच में ही रोका - ई पेठा गोरस है , कि पेठा गोरख है ? कीन उपधिया को मौक़ा मिल गया - जाहिल के जाहिल ही रहोगे , आठवीं ने नहीं पढ़ा था त्रिभुज के तीनो कोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है . ? इसे कहते हैं पैथ्गोरस का सिद्धांत . लेकिन तुम्हे इससे का लेना देना , कैंची चलाओ और सुथने की मियानी बनाओ . उमर की आँख गोल हो गयी - अहिये अब हाफ पैंट ठीक कराये , उमर अभी कुछ और बोलते तब तक लखन कहार ने पूछ लिया - राजनीति पर बात शुरू हुयी थी ,,,, भिखई मास्टर ने अखबार रख दिया - यह एक कुटीर उद्योग है , जो घर घर में चलता है इसे झूठ , प्रपंच , लफ्फाजी , लालच से चलाया जाता है , जिससे एक काठ की कुर्सी निकलती है पर उसको आम भाषा में ओहदा बोला समझा जाता है , इस कुर्सी में एक छेद होता है , कुर्सी को जितना बेहुर्मत करोगे छेद से उतना ही पैसा गिरेगा . पहले इसे भर्ष्टाचार माना जाता रहा लेकिन अब यह रसूख है और रवायत है .चिखुरी बड़े गौर से भिखई मास्टर को सुनते रहे . भिखई मास्टर समझ गए कि अब चुप हो जाना चाहिए , और चुप हो गए .
            भिख्यी मास्टर ने जो कुछ भी कहा उसे सबने अपने अपने खांचे के हिसाब से नापना शुरू कर दिया . लखन कहार ने गाँव के परधान को सामने रख कर मन ही मन छीलने लगे . मनरेगा . सरकार की कितनी बड़ी सोच . गंवई मजदूर , बेरोजगार मजूर , सब को उनके अपने गाँव में रोजगार मिले . शहर की तरफ हो रहे पलायन को रोका जाय . बैंक में खाता कहने एक दिन में दस करोड़ लोग इस योजना से जुड़े . लेकिन हो क्या रहा है , परधान जी के रोजनामचे में ऐसे ऐसे लोग दर्ज हुए जिन्होंने कभी फावड़ा को छुआ तक नहीं है. वो बैठे दूकान चला रहे हैं , सब्जी बर्च रहे हैं , तहसील में राजनीति करने जाते हैं . किसी काम के नहीं है सब कार्ड धारक हो गए. उनके नाम पर रोजगार गारंटी के नामपर सरकार भुगतान कर रही है खाते से पैसा निकल रहा है , सौ रूपये कार्ड धारक को सोलह सौ परधान के खीसे में . खुश दोनों है - घर बैठे एक दस्तखत से अगर आपको सौ , दो सौ मिल जाय तो हर्ज का है ? लम्मरदार के घर से मुख्य सड़क तक तीन तीनबार सड़क बनती है . लाखों का बजट .खानेवाले भी तो कम नहीं , परधान है , सचिव है इंजीनियर है जो सड़क पास कर्त्या है . फिर कागद तो ब्लोक अधिकारी ही आगे बढ़ाएगा न , सब का हिस्सा बंधा हुआ है कितना साफ़ सुथरा बँटवारा होता है किसी को कोइ टेंशन नहीं .राहीव गांधी ने सही कहा था केन्द्र दस रुपया भजेगा तो गाँव तक पहुँचते पहुँचते आठ आना हो जाता है . सब जगह यही हाल है . लूट हमारी राष्ट्रीय मान्यता में दर्ज हो गयी है . गाँव प्रधान से शुरू होता है ऊपर ऊँची कुर्सी तक बढ़ता चला जाता है . और बड़ी बेहयाई के साथ . तर्क सुन लीजिए - ऊपर भी तो यही हो रहा है ' भइये ये सब राजनीति में है .
      चाय की भट्ठी सुलग चुकी है इसलिए लाल साहेब भी अब खाली हैं बोलने के लिए - एक बात बताया जाय , क्या बगैर ओहदे के राजनीति नहीं हो सकती , ? यस सवाल और भी टेढ़ा होकर सामने आया . चुनांचे सदन में सन्नाटा छा गया , चिखुरी मुस्कुराए . - होती थी , कारगर तरीके से होती थी अब उसका रिवाज खत्म हो गया . वह पुरुषार्थ की राजनीति थी आज जो राजनीति चल रही है यह अनुदान की राजनीति है , बगैर ओहदे की राजनीति करनेवाले आज भी चमक रहे हैं . इतिहास में वही मिलेंगे . मोहन दास करमचंद गांधी . जे पी . लोहिया , आचार्य नरेंद्र देव और भी बहुत से नाम हैं . इनकी हर बात पर जनता भरोसा रखती थी .क्यों कि इनकी बात जन हिट की होती थी . इसमें नेता का अपना कोइ स्वार्थ नहीं रहता था . और आज देखो हर कदम पर झूठ , फरेब , ओट के लिए कुछ भी कह सकते हैं ,और बाद में उसी गति मुकर भी जाते हैं बड़ी बेशर्मी के साथ और कहेंगे यह तो ' जुमला ' था . देखना इसी बंगाल में आएगा मदारी . लाव लस्कर के साथ . बा बुलंद आवाज में बोलेगा - की रे की खबोर . आमी तोमार बंधू , तुमी आमार मीत , आमी तोमार के भालोबासी . बउ डी कोहनी से झुम्पा को झाक्झोरेगी - देखून ! की बालो मानुष . लेकिन अब नहीं चलेगा . चोलबे ना . नवल को याद आया गेहूं के खेत में पानी खोल कर आये हैं . भागे . गाते गाते - जदी केऊ डाक सुने ना तोर , एकलएकला चलो ..

Wednesday, February 3, 2016

राज नारायण /चंचल
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राज नारायण , नेता जी , लोकबन्धु सब एक ही शख्सियत का बयान है . जवान होते ही भिड पड़े अंगेजी हुकूमत से .महात्मा गांधी  ने एक सबक पढ़ा दियाकि किसीपर हाथ मत उठाना , ताउम्र उसका निर्वहन करते रहे , अगर कहीं ज्यादा जरूरत पडी तो  कुहनी से दबा देते थे , या फिर कुबरी जिसके सहारे चलते थे उसे सामने वाले के मुह की तरफ ऐसा लगाते थे जैसे वह बांस का डंडा न होकर बोफोर्स की नली हो . और बापू को लगेहाथ याद भी कर लेते थे ' जाओ , बापू ने कसम दिलाया है कि हाथ मत उठाना .... नहीं तो / राम बचन पांडे जैसा कोई खांटी समाजवादी मिल जाता तो चुनौती भी मिल जाती थी -नहीं तो क्या कर लेते ? और नेता जी फिस्स से हंस देते . गरज यह कि नेता जी एक अहिंसक सिपाही थे . राजनीति में थे , चुनाव लड़ते थे . उत्तर प्रदेश की विधान सभा में नेता समाजवादी रहे . प्रवेश करते थे अपने पैरों से निकलते थे मार्शल के मार्फ़त . लेकिन कब तक , चुनांचे लखनऊ छोड़ कर जब डिल्ली की तरफ रुख किये तो लगे देश को हिलाने . दुनिया की सियासत में इस तरह का कोइ दूसरी नहीं मिलेगा जिस मुकाम को नेता जी ने बनाया . खुद डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन तीन प्रधान मन्त्रीको उनकी कुर्सी से बे दखल किया . श्रीमती इंदिरा गांधी , मोरारजी रणछोंड जी भाई देसाई , और चौधरी चरण सिंह . इसे सीधा कर दिया जाय तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि कुल डेढ़ चुनाव जीतने वाले नेता जी ने तीन प्रधान मंत्री ही नहीं एक राष्ट्रपति भी बनाया . राय बरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ और हार गए . इस चुनाव को उन्होंने न्यायालय में पहुचाया और श्रीमती गांधी का चुनाव रद्द हो गया . देश में आपात काल लगने के जो कई कारण थे ,उसमे एक कारण राजनारायण भी रहे . आपातकाल के बाद जब चुनाव की घोषणा हुयी तो नेता जी सीधे रायबरेली पहुंचे और चुनाव में श्रीमती गांधी को हरा कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किये . जनता पात्री बहुमत से आयी लेकिन प्रधानमंत्री के कई दावेदार रहे , चौधरी चरण सिंह , जगजीवन राम और मोरार जी भाई . नेता जी ने यहाँ भी एक खेल खेला . समाजवादी पार्टी बाबू जगजीवन राम के पक्ष में थी लेकिन संघ और कांग्रेस ओ नहीं चाहते थे कि राम को प्राइम मिनिस्टर बनाया जाय . नेता जी उन दिनों चरण सिंह के साथ थे , एक नया फार्मूला निकाले कि मोरारजी भाई को प्रधान मंत्री बनाया जाय चौधरी चरण को गृह मंत्री और बाकी मुख्य विभाग संघ को सौंप दिया जाय , साथ ही यह भी तय हो गया कि आगामी विधान सभाओं के चुनाव के बाद हिन्दी पत्ती के जो छ राज्य हैं जहां जनता पार्टी का आना तय है उसमे तीन चरण सिंह को और तीन संघ संघ को सौंप दिया जाय . और यही हुआ . इस कहानी से सब वाकिफ हैं . अब दूसरा हिस्सा सुनिए जो शोध का विषय है -
       राजनारायण ने मोरार जी भाई की सरकार क्यों गिराई ?
कुछ लोंगो ने नेता जी पर यह आरोप लगाने की कोशिश किया है कि नेता जी और संजय गांधी के बीच कुछ समझौता हुआ था . लेकिन यह सरासर गलत है . नेता जी पैसे के लोभीकभी नहीं रहे वे आजीवन सत्ता, संपत्ति और संतति से दूर रहे . जमींदार परिवार से ताल्लुकात रखनेवाले नेता जी ने समाजवादी राजनीति अपनाते ही सबसे पहले अपनी सैकडो बीघा जमीन हरिजनों को बाँट दिया  था . नेता जी का खेल दूसरी जगह से चल रहा था . अब उस हिस्से को देखिये जब जनतापार्टी से सांसद शपथ ग्रहण कर रहे थे , उस एन वक्त पर जे पी इंदिरागांधी के घर पर थे . जे पी के साथ कुमार प्रशांत जी भी थे . जे पी को देखते ही श्रीमती इंदिरा गांधी जे को पकड़ कर उनके कंधे पर सिर रख दिया और रोने लगी . जे पी भी अपने को नहीं रोक पाए दोनों लोग रोते रहे , फिर जे पी ने कहा था - घबड़ाओ मत इंदु सब ठीक होगा . क्या नेता राजनारायण इसी ' सब ठीक होगा ' के तहत काम तो नहीं कर रहे थे ? दो एक बार और पीछे चलिए . जे पी ने आंदोलन को जेल तक क्यों पहुचाया ? डॉ लोहिया अस्पताल में थे उनकी देख रेख में जे पी और उनकी पत्नी अस्पताल में ही रहते थे . श्री मती गांधी प्रधान मंत्री थी और बगैर नागा सुबह शाम डॉ लोहिया को देखने जाती थी . एक दिन डॉ लोहिया ने प्रभावती से कहा - जे पी को कहना कि अगर इतिहास में ज़िंदा रहना है तो एक बार जेल चला जाय . एक तरह से डॉ लोहिया समाजवादी आंदोलन की कमान जे पी को सौंप रहे थे . और वही हुआ . यहाँ यह भी मान लेना चाहिए कि कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के बीच तमाम आंदोलनों और लड़ाइयों के बावजूद खटास कभी नहीं रही , और समाजवादी कभी भी नहीं चाहते रहे कि कांग्रेस सत्ता से बाहर जाय , लेकि वह एकाधिकार की तरफ भी न जाय . यही कारण है कि जब ज्ब्कान्ग्रेस एकाधिकार वाद्की तरफ बढ़ी है उसकी नक्लेल समाजवादी आन्दोलन ने ही पकड़ी है . समाजवादी आंदोलन कांग्रेस का परिमार्जन करती रही है . इसका अंदरूनी हिसा भी खोला जा सकता है   आजादी के बाद , सरदार पटेल की मृत्यु के बाद पंडित नेहरु कांग्रेस संगठन को ही समाजवादियों के हाथ सौपना चाहते थे लेकिन उनके सामने दो बड़ी दिक्कतें थी , एक संगठन पर पतेल्वादियों की पकड़ और दूसरा उनका अपने कार्यकाल में कांग्रेस का टूटना , नहीं देखना चाहते थे . कालान्तर में उनकी बेटी श्री मती इंदिरा गांधी ने वह जोखिम उठाया और पार्टी ने उन्हें कांग्रेस से बाहर निकाल दिया . उनके साथ बाहर निकलनेवाले पांचो ही समाजवादी थे जिन्हें युवा तुर्क के नाम से जाना गया . इसमें चंद्रशेखर , मोहन धारिया , रामधन , कृष्ण कान्त और अर्जुन अरोड़ा  थे . तो जब मोरार जी भाई प्रधान मंत्री बने समाजवादी एक बार फिर यथास्थित वादियों जिसमे मोमोरार जी भाई , नीलम संजीव रेड्डी , यस के पाटिल निजलिंगप्पा आदि आदि रहे के खिलाफ लामबंद होने लगे और उन्हें याद आया , इन्हें सब के दबाव के चलते तो समाजवादी कांग्रेस से बाहर आये थे . उन्हें स्थापित होते कब देख सकते थे ये समाजवादी . ?यह रहा नेता का इतिहास जो देश  का भी इतिहास है . 

Tuesday, February 2, 2016

चिखुरी / चंचल
ह्त्या अपराध नहीं है , चुनाव सामग्री है .
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    '........ हम कहाँ से चले थे , कहाना जाना था , अचानक एक मोड़ आया और हम इंसान की बुनियादी पहचान से ही कन्नी काटने लगे . हमारी आजादी की नीव में सत्य है और अहिंसा है . दुनिया का शायद ही कोइ निजाम होगा जो बेहतर  हुकूमत के साथ एक शांतप्रिय समाज का भी ढांचा बुनते चले थे ,लेकिन अचानक एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हो गए जहां काठ की अल्पजीवी कुर्सी के लिए बहुत सारे जरायम पेशे में लग गए और बेशर्मी की हद तब टूट गयी जब ह्त्या जैसे जालिमाने हरकत को वाजिब ठहराने लगे .अभी दादरी के के एक छोटे से गाँव में कायर ,दब्बू और सोच से अपाहिज एक खेल रचा गया कि अख़लाक़ नामन एक स्सख्स के घर में गाय का मांस बना है .बगल के मंदिर में जहां कीर्तन चल रहा था लाउड स्पीकर लगा था ,उससे घोषणा हुयी कि अख़लाक़ के घर में गो मांस बन रहा है . बस . इतना काफी था . भीड़ टूट पडी . अख़लाक़ का घर तोड़ा गया , बेरहमी से सब को मारा पीटा  गया अख़लाक़ की मौत मौकये वारदात पर हो गयी , उनका लड़का अस्पताल में मौत से लड़ रहा है . जिन लोंगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया उनके बचाव में खुल्लम खुल्ला तमाम हिंदू गिरोह एक जुट होने लगे हैं और कह रहे हैं यह एक ' स्वाभाविक ' प्रतिक्रया है .केन्द्रीय मंत्री तक बचाव में उतर आये हैं .आजादी के साथ साल बाद हम घूम कर बर्बर समाज की ओर बढ़ने लगे हैं .कह कर चिखुरी ने लंबी सांस ली और दूर अनंत में उनकी आँखे थम गयी . लाल साहब की चाय की दूकान जो गाँव की संसद बन चुकी है पर जुटे तमाम सदस्यों ने अरसे बाद चिखुरी को इतना संजीदा और दुखी देखा .कयूम मियाँ सर झुकाए बैठे रहे . उमर दरजी जो कभी भी अपने को असुरक्षित नहीं समझता ,बड़ी बेबाक जिंदगी काट रहा है थोड़ा चिंतित दिखा . नवल उपाधिया ने यह भांप लिया - देख उमर अगर तैं हमरे साथे न पढ़े रहते औ पधत वक्त एकै गठरी में बैठ के चबैना न खाए रहित तो तोको आजै मुलुक निकाला दे देइत् समझे .उमर दरजी दादरी से निकल आये और गाँव के उस माहौल में खड़े हो गए जहां इस तरह की तू तू मै मै होती रहती है निहायात ही बेलाग , बेलौस और संभ्रांत शहरी समाज जिन बिंदुओं पर टकराकर अलग अलग खांचे में खड़ा हो जाता है , उसके बरक्स यहाँ गाँव में इस तरह की बतकही का अंत जिस ठहाके पर आता है ,वह ठहाका सारी दीवारों को भासका कर समतल कर जाता है . सदियों से यह गाँव अपने इस तमीज को जीता आ रहा है . उमर ने बढ़ कर नवल की गर्दन पकड़ लिया - इ अकेल्ले तोरे बाप का मुल्क है का ? इ मुल्क मरहूम हीरामणि उपाध्याय वल्द विद्याधर उपाध्याय बना के गए हैं का कि नवल जब मन करे किसी को भी मुल्क बदल कर देना ? सुन नवल इ मुल्क बनावे में जितनि मेहनत तै किहे अहे ओसे ज्यादा हमार है , समझे ? पूछो हमार ज्यादा कैसे ? पूछो तो बता ता हूँ . तीन कलम के आगे त पढ़े ना , का जानबे इ सब . गाजीपुर में एक गाँव है गंगौली  उहाँ एक लेखक पैदा भये रहे राही मासूम रजा .जे महाभारत लिखे रहे टीवी वास्ते . एक बार किसी पत्रकार ने पूछा रहा उनसे यही सवाल जो तुम बोल रहे हो . जवाब का रहा मालुम है, जवाब रहा - सुन हिंदू के बच्चे ! मुल्क बटवारे के समय हमारे सामने दो 'आप्सन ' थे हम हियाँ रहते या फिर पाकिस्तान जाते . हमने यहीं रहने का फैसला किया . तुम्हारे सामने कोइ आप्सन ही नहीं था तुम्हे तो यहीं रहना ही था . देश से मोहब्बत करनेवाले हम हैं कि तुम ? समझे नवल . औ ज्यादा बोलबे त नोटा .... और सारा माहौल बदल गया . कीन उपाधिया जन्म के संघी , जब कुछ नहीं पाते तो गोधरा पहुच जाते हैं लेकिन अब वह रिकार्ड इतना घिस गया है कि कोइ सुनने को राजी नहीं . चुनांचे बात चली गयी बिहार .
         मद्दू पत्रकार ने अपने पसंदीदा विषय को उठा लिया . - चिखुरी काका ! कितने कमअक्ल लोग आ गए और इतनी बेशर्मी के साथ कि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए कितना भी गिर जायगें लेकिन शर्म नहीं लगेगी . गुजरात माडल का चुनाव कराना चाहते हैं . दृविकरण . हिंदू एक तरफ हो जाओ , मुसलमान एक तरफ . एक झटके में गुजरात में तो चल गया लेकिन काठ की हांडी अब नहीं चढ़ने वाली . यह बिहार है .राजनीति में सांस लेता है , उसी में उठता बैठता है . उसी में झूमर और सोहर गाता है . उसे ये काली दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी नहीं समझ पाए हैं न ही आखीर तक समझ पायेंगे . अब बताईये मांस का एक लोथडा उनकी चुनाव सामग्री बन रही . गो मांस . इन कमबख्तों को इत्ता भी नहीं मालुम यह प्रतिबंधित नहीं है . यह मुल्क इसका बड़ा निर्याता है . इस सरकार यह निर्यात बढ़ा भी है . पश्चिमी देशों की यह प्रिय पदार्थ है . एक तरफ उन्हें गले लगाओगे , उनके लिए बिछे पड़े रहोगे .दूसरी तरफ एक अफवाह को उड़ा कर क़त्ल जैसे घटिया काम में लग जाओगे . पूर्वोत्तर राज्यों को देखो , उनसे बात तो करो . गोवा में जाकर देखो वहाँ तो तुम्हातुम्हारी ही सरकार है  . जाओ क़त्ल कर के देखो . .... नवल से नहीं रहा गया - एक बात बता बकरे का मांस और गो मांस का फर्क करेगा यह पुजारी जिसने बदअमनी फैलाई है .? चू ... मुर्गी और मुर्गे के मांस में तो फर्क करी नहीं सकते चले हैं गो मांस पहचानने ? हम तो एक बात कह रहे हैं डंके की चोट पे सुन ले कीन .. बिहार पहले भिगोये , फिर धोबिया लदान मारे , निचोड़ के सुखेवास्ते दारा पे डालदेई कि कलकता की डगर भूल जाबे . समझे ? कहकर नवल गाते हुए आगे बढ़ गए - लागा झुलनिया क धक्का , बलम ... 
चिखुरी / चंचल
कहाँ रखे थे ,ये लाखैरे
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     तीब्र गति , और उमर दरजी की माने तो बुलेट ट्रेन की स्पीड से नवल उपाधिया आते दिखाई दिये . पूरा भार साइकिल की हैंडिल पर ,दोनों गोलार्ध जो सीट पर रहता है वह ऊपर उठा हुआ , भरपूर गति से साइकिल लाल साहेब की दूकान पर  आयी . जोर का ब्रेक लगा तो कयूम मियाँ थोड़ा चिहुंक कर खसक गए , उन्हें लगा कि अब नवल साइकिल समेत ऊपर आ गिरेगा . बहरहाल ब्रेक लगा और नवल कूद कर लाल साहेब की दूकान पर ,भरी महफ़िल के सामने आकर खड़े हो गए .लोंगो को मालुम है कि  नवल ऐसी हरकत तब करते हैं जब कोइ नायाब ' मसाला ' उनके खीसे में रहता है और मुह के रास्ते बाहर आना चाहता है . चुनांचे लोग चुप हो जाते हैं और नवल के लिए मौक़ा दे दिया जाता है . भिखई मास्टर ने यह ताड़ लिया और उंगली के इशारे से उकसाया - बोलिए नवल जी कुछ खास ? नवल ने आँख गोल की . फिर पूरी संसद को देखा . एक चिखुरी को छोड़ कर बाद बाकी सब नवल से मुखातिब रहे . नवल अखबार में धंसे पड़े रहे . नवल ने मंडल को बगल खिस्काय्सा और बेंच पर बैठ गए . - देखिये मास्स साब ! हम वक्त के पहले पैदा हो गए रहे ....कयूम को मौक़ा मिल गया ,धीरे से फुसफुसाए - पैदा कहाँ भये रहे ? खींच तान के बाहर निकालना पड़ा था ... नवल चूक गए - देखो चचा ! मामला गंभीर है मजाक मत करो सुनो - हम इस लिए जे कह रहे हैं कि अगर आज का ज़माना रहा होता होता तो हम मिडिल स्कूल न फेल भये रहते . गणित औ नागरिक शास्त्र दोनों में इकट्ठे फेल हो गए थे .गणित तो गणित रहा नागरिक शास्त्र में एक विषय पर निबंध लिखना था लिखह भी मुला फेल . काहे से कि हमने सही लिखा था कापी जांचने वाला अगर लोकल रहा होता तो पास भी हो जाते लेकिन वो गैर जिले का जांचनेवाला था ,गधे ने फेल कर दिया . लखन कहार ने पूछा किस विषय पर निबंध लिखा था ? नवल ने विस्तार से बताना शुरू किया - सवाल था आजादी का अर्थ बताओ और देश ने किस तरह से आजादी हासिल किया . बस  इतना .सच्ची बताऊँ , आजादी का होती है अभी दू घंटा पहले तक ना मालुम रहा सो उस वक्त की तो बात ही छोड़िये , हम सीधे उतर गए कि आजादी कैसे मिली और हमने पूरा बिबरन लिख डाला कि देश को आजादी दिलानेवाले हरी उपधिया रहे . आगे आगे हाजो दुबे घोड़ी पे बैठे ,पीछे बलई कहार और हरी उपाधिया होत भिनसार निकल गए नारा लगाते हुए भारत माता की जय , गान्ही बाबा की जय औरतों ने तिलक दिया , गाँव की सरहद तक गाते बजाते पूरा गाँव गया ,तब तो हम बच्चे रहे . पूरे गाँव में चर्चा रही कि हाजो दुबे , हरी उपाधिया औ बलई कहार आहादी लेने जा रहे हैं यही सब लिखा रहा और जे भी लिखा कि कीन उपाधिया क बाप जो कि संघी रहे ,पूरे खेत्ता में अफवाह फैला दिये कि ये तीनो जेल चले गए हैं बहादुर अंग्रेज बहादुर से भिडना इत्ता आसान है का ? पर एक दिन आजादी आ गयी . गान्ही चबूतरे पर तिरंगा फहरा पर ये तीनो महीने भर बाद वापस आये . यही लिखा रहा . फिर भी फेल . लेकिन अभी तक नहीं समझ पाए रहे कि आजादी होती का है . अभी डू घंटा पहले पता चला कि आजादी का होती है . मद्दू पत्रकार मुस्कुराए - तो लगे हाथ यह भी बता दो कि आजादी होती का है ? नवल उठ कर खड़े हो गए खीसे से एक पर्ची निकाले ,तह को खोला - सुना जाय ! वस्त्र विहीन घूमना ही आजादी है . ब कलम खुद म ला ख . आजादी के बारे में .
- ई मलाख का है भाई ? मद्दू ने जिज्ञासा जाहिर की .
चिखुरी जो अब तक अखबार में धंसे पड़े थे ,अखबार को एक तरफ बढ़ाया - मलाख . ऐसय है जैसे मद्दू . महंथ दुबे से मदु और मदु से मद्दू . मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री हरियाणा . अपने प्रधानमंत्री के पुराने सहयोगी . दोनों जब प्रचारक थे तो रात को दोनों की खिचड़ी पकती थी .मौक़ा मिला तो मुख्यमंत्री बन गए . कह रहे हैं - अगर भारतीय औरतों को आजादी चाहिए तो वे वस्त्रहीन क्यों नहीं घूमती ? ' कह कर चिखुरी मुह घुमा लिए - कोइ मर्यादा नहीं , कोइ सलीका नहीं , औरतों के बारे में ये राय ? लखन कहार ने टुकड़ा जोड़ा - सब उनचास हाथ . एक से बढ़ कर एक हैं . दादरी का देख लो अख़लाक़ को मारा गया , दंगा भड़काने की कोशिश हुयी . बात में पता चला उनका अपना ही विधायक सोम गीत अलीगढ़ में बूचडखाना चलाता है और सरकार से परमीसन माँगा है किउसकी फक्ट्री को एक दिन में पचास हजान जानवर काटने का पमीसन मिले . ये सब जिम्मेदार लोग हैं . उसना मंत्री , उनके सांसद क्या क्या बोल रहे हैं कोइ सुनने वाला नहीं है . कयूम ने एक लंबी सांस ली - बिहार में इनकी हाल बिगड़ी है . पनडुब्बी डूबे चार हाथ , पनडुब्बी क बच्चा बारह हाथ . अब ऊँट पहाड़ के नीचे आया है . इनका जवाब लालू दे रहे हैं . उन्ही की भाषा में . अब घिघी बंध गयी है कहरहे हैं लालू की जमानत खारिज करो और जेल भेजो . यह हमें पिशाच बोल गया. चिखुरी हत्थे से उखड गए - क्यों , कुछ गलत बोला क्या ? गुजरात में जो कुछ भी हुआ देश के माथे पर कलंक है . शाव्राज के जमाने में क्या हो रहा है ? व्यापम के नाम पर पचासों लोग मारे गए हैं . कई हजार लोग जेल में हैं , कई लाख लोगों की जिंदगी खराब हुयी पडी है . नवल ने जुमला जोड़ा - और भी कुछ सुना ? बापू , अम्बेडकर , वगैरह की तस्वीर खरीदी गयी . ग्यारह रूपये की फोटो तेरह सौ तिरपन के हिसाब से खरीदी दिखाई गयी . चलो बच्चू ! बिहार जवाब देगा . और नवल गाते हुए चलता बने - तोर बोलिया सुने कोतवाल तूती बोलेला ..... 
राज नारायण /चंचल
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राज नारायण , नेता जी , लोकबन्धु सब एक ही शख्सियत का बयान है . जवान होते ही भिड पड़े अंगेजी हुकूमत से .महात्मा गांधी  ने एक सबक पढ़ा दियाकि किसीपर हाथ मत उठाना , ताउम्र उसका निर्वहन करते रहे , अगर कहीं ज्यादा जरूरत पडी तो  कुहनी से दबा देते थे , या फिर कुबरी जिसके सहारे चलते थे उसे सामने वाले के मुह की तरफ ऐसा लगाते थे जैसे वह बांस का डंडा न होकर बोफोर्स की नली हो . और बापू को लगेहाथ याद भी कर लेते थे ' जाओ , बापू ने कसम दिलाया है कि हाथ मत उठाना .... नहीं तो / राम बचन पांडे जैसा कोई खांटी समाजवादी मिल जाता तो चुनौती भी मिल जाती थी -नहीं तो क्या कर लेते ? और नेता जी फिस्स से हंस देते . गरज यह कि नेता जी एक अहिंसक सिपाही थे . राजनीति में थे , चुनाव लड़ते थे . उत्तर प्रदेश की विधान सभा में नेता समाजवादी रहे . प्रवेश करते थे अपने पैरों से निकलते थे मार्शल के मार्फ़त . लेकिन कब तक , चुनांचे लखनऊ छोड़ कर जब डिल्ली की तरफ रुख किये तो लगे देश को हिलाने . दुनिया की सियासत में इस तरह का कोइ दूसरी नहीं मिलेगा जिस मुकाम को नेता जी ने बनाया . खुद डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन तीन प्रधान मन्त्रीको उनकी कुर्सी से बे दखल किया . श्रीमती इंदिरा गांधी , मोरारजी रणछोंड जी भाई देसाई , और चौधरी चरण सिंह . इसे सीधा कर दिया जाय तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि कुल डेढ़ चुनाव जीतने वाले नेता जी ने तीन प्रधान मंत्री ही नहीं एक राष्ट्रपति भी बनाया . राय बरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ और हार गए . इस चुनाव को उन्होंने न्यायालय में पहुचाया और श्रीमती गांधी का चुनाव रद्द हो गया . देश में आपात काल लगने के जो कई कारण थे ,उसमे एक कारण राजनारायण भी रहे . आपातकाल के बाद जब चुनाव की घोषणा हुयी तो नेता जी सीधे रायबरेली पहुंचे और चुनाव में श्रीमती गांधी को हरा कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किये . जनता पात्री बहुमत से आयी लेकिन प्रधानमंत्री के कई दावेदार रहे , चौधरी चरण सिंह , जगजीवन राम और मोरार जी भाई . नेता जी ने यहाँ भी एक खेल खेला . समाजवादी पार्टी बाबू जगजीवन राम के पक्ष में थी लेकिन संघ और कांग्रेस ओ नहीं चाहते थे कि राम को प्राइम मिनिस्टर बनाया जाय . नेता जी उन दिनों चरण सिंह के साथ थे , एक नया फार्मूला निकाले कि मोरारजी भाई को प्रधान मंत्री बनाया जाय चौधरी चरण को गृह मंत्री और बाकी मुख्य विभाग संघ को सौंप दिया जाय , साथ ही यह भी तय हो गया कि आगामी विधान सभाओं के चुनाव के बाद हिन्दी पत्ती के जो छ राज्य हैं जहां जनता पार्टी का आना तय है उसमे तीन चरण सिंह को और तीन संघ संघ को सौंप दिया जाय . और यही हुआ . इस कहानी से सब वाकिफ हैं . अब दूसरा हिस्सा सुनिए जो शोध का विषय है -
       राजनारायण ने मोरार जी भाई की सरकार क्यों गिराई ?
कुछ लोंगो ने नेता जी पर यह आरोप लगाने की कोशिश किया है कि नेता जी और संजय गांधी के बीच कुछ समझौता हुआ था . लेकिन यह सरासर गलत है . नेता जी पैसे के लोभीकभी नहीं रहे वे आजीवन सत्ता, संपत्ति और संतति से दूर रहे . जमींदार परिवार से ताल्लुकात रखनेवाले नेता जी ने समाजवादी राजनीति अपनाते ही सबसे पहले अपनी सैकडो बीघा जमीन हरिजनों को बाँट दिया  था . नेता जी का खेल दूसरी जगह से चल रहा था . अब उस हिस्से को देखिये जब जनतापार्टी से सांसद शपथ ग्रहण कर रहे थे , उस एन वक्त पर जे पी इंदिरागांधी के घर पर थे . जे पी के साथ कुमार प्रशांत जी भी थे . जे पी को देखते ही श्रीमती इंदिरा गांधी जे को पकड़ कर उनके कंधे पर सिर रख दिया और रोने लगी . जे पी भी अपने को नहीं रोक पाए दोनों लोग रोते रहे , फिर जे पी ने कहा था - घबड़ाओ मत इंदु सब ठीक होगा . क्या नेता राजनारायण इसी ' सब ठीक होगा ' के तहत काम तो नहीं कर रहे थे ? दो एक बार और पीछे चलिए . जे पी ने आंदोलन को जेल तक क्यों पहुचाया ? डॉ लोहिया अस्पताल में थे उनकी देख रेख में जे पी और उनकी पत्नी अस्पताल में ही रहते थे . श्री मती गांधी प्रधान मंत्री थी और बगैर नागा सुबह शाम डॉ लोहिया को देखने जाती थी . एक दिन डॉ लोहिया ने प्रभावती से कहा - जे पी को कहना कि अगर इतिहास में ज़िंदा रहना है तो एक बार जेल चला जाय . एक तरह से डॉ लोहिया समाजवादी आंदोलन की कमान जे पी को सौंप रहे थे . और वही हुआ . यहाँ यह भी मान लेना चाहिए कि कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के बीच तमाम आंदोलनों और लड़ाइयों के बावजूद खटास कभी नहीं रही , और समाजवादी कभी भी नहीं चाहते रहे कि कांग्रेस सत्ता से बाहर जाय , लेकि वह एकाधिकार की तरफ भी न जाय . यही कारण है कि जब ज्ब्कान्ग्रेस एकाधिकार वाद्की तरफ बढ़ी है उसकी नक्लेल समाजवादी आन्दोलन ने ही पकड़ी है . समाजवादी आंदोलन कांग्रेस का परिमार्जन करती रही है . इसका अंदरूनी हिसा भी खोला जा सकता है   आजादी के बाद , सरदार पटेल की मृत्यु के बाद पंडित नेहरु कांग्रेस संगठन को ही समाजवादियों के हाथ सौपना चाहते थे लेकिन उनके सामने दो बड़ी दिक्कतें थी , एक संगठन पर पतेल्वादियों की पकड़ और दूसरा उनका अपने कार्यकाल में कांग्रेस का टूटना , नहीं देखना चाहते थे . कालान्तर में उनकी बेटी श्री मती इंदिरा गांधी ने वह जोखिम उठाया और पार्टी ने उन्हें कांग्रेस से बाहर निकाल दिया . उनके साथ बाहर निकलनेवाले पांचो ही समाजवादी थे जिन्हें युवा तुर्क के नाम से जाना गया . इसमें चंद्रशेखर , मोहन धारिया , रामधन , कृष्ण कान्त और अर्जुन अरोड़ा  थे . तो जब मोरार जी भाई प्रधान मंत्री बने समाजवादी एक बार फिर यथास्थित वादियों जिसमे मोमोरार जी भाई , नीलम संजीव रेड्डी , यस के पाटिल निजलिंगप्पा आदि आदि रहे के खिलाफ लामबंद होने लगे और उन्हें याद आया , इन्हें सब के दबाव के चलते तो समाजवादी कांग्रेस से बाहर आये थे . उन्हें स्थापित होते कब देख सकते थे ये समाजवादी . ?यह रहा नेता का इतिहास जो देश  का भी इतिहास है . 
बतकही / चंचल
पैसा फेंको ,तमाशा देखो
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               'इ भाई बिहार तो कमाल की जगह है , पता नहीं यहाँ की पानी में का सिफत है कि जहां भी हाथ डालेगा ,कुछ न कुछ ' डैमेज ' करके ही छोडेगा . ...कीन अभी शुरू ही हुए थे कि उमर दरजी ने टोक दिया - क्या डैमेज हुआ , उपाध्याय जी ? कीन पलटे , मन ही मन बुदबुदाए ,कीन जानते हैं कि ,उमर जब भी बे वजह अतिरिक्त इज्जत देता है ,तो इसके मतलब उसमे कुछ बदमाशी जरूर है . और ऐसेमे जब से कीन परधानी हारे हैं ,उमार चोट करने से बाज नहीं आता . जिस दिन नतीजा घोषित हुआ , सब को मालुम हो गया कि कौन जीता है कौन हारा है ? लेकिन दूसरे दिन सुबह लाल्साहेब की दूकान पर जहां परधानी के सारे उम्मीदवार एक जगह एक साठ बैठे मिले वहाँ भी उमर दरजी का मुर्हप्पन कम नहीं हुआ . नतीजा जानते हुए कि कीन उपाधिया चुनाव हार गए हैं ,  उमर ने तपाक से कीन को गले लगाया और काफी देर तक चिपका खड़ा रहा - गुरु बधाई !हम माला फूल लाना भूल ही गए ,  इस नतीजे ने तो पुरे गाँव को बचा लिया... वरना कोइ ताकत नहीं कि इस गाँव को डूबने से कोइ रोक पाता .... बहुत अच्छा हुआ .. जो होता है ,अच्छा ही होता है . शपथ कब होगा भाई उपाधय जी ?
          कीन को करेंट लगा . समझ गए कि उमर कहाँ चोट कर रहा है . तुरत अपने को अलग किये , गमछे से मुह पोछे , और लोंगों के मुस्कुराते चेहरे को देखे और चुपचाप बैठ गए ये कहते हुए कि - हम सब जानते हैं उमर , ...... वो नहीं हैं ... .लाल साहेब ने चटकी काटा .- ये किसने कहा कि आप ओ नहीं हैं .. ? आप ओ न  होते तो चुनाव कैसे लड़ते . ई का हो रहा बा भाई ! इहाँ कीन हार गए , डिल्ली में हारे , बिहार ने पतली गली से निकल जाने का रास्ता दिखा ही दिया . सुना है गुरात में लोकल बाड़ी के चुनाव में भी मुह के बल पटखनी खा चुके हैं ,यह हाल है गुजरात माडल का ? अब सुना है कोइ कीर्ती आजाद हैं , उन्होंने बता दिया कि डिल्ली क्रिकेट बोर्ड में बहुत लंबा घपला हुआ है कई सौ करोड डकारे गए हैं ? भिखई मास्टर जो अबतक अखबार देख रहे थे ,उसे सामनेवाले को देते हुए बोले - आज अखबार में है उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया गया है . निकाल दिया ? लखन कहार ने खैनी मलते हुए , मुस्कुराए - का का बताए भाई ? बहुत कुछ बताए ,अब बारी मद्दू पत्रकार की थी - ठेका दिया गया , निर्माण कार्य का . जितने में दिया गया उससे दुगना बढ़ा दिया गया , खरीद फरोख्त में घपला और तो और बीस हजार में मिलनेवाले कम्प्यूटर को सोलह हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर लिया गया . इसी को कीर्ती आजाद ने सबके सामने बोल दिया .
          - तो इसके लिए पार्टी क्यों बौखला गयी ? उन्होंने ये तो कहा नहीं कि पार्टी ने चोरी की है ,तो पार्टी से क्यों निकाला ?कोलाई डूबे का वाजिब सवाल रहा . चिखुरी मुस्कुराए . - हुआ यूँ है कि जिस समय ये घपले हुए उसके सर्वे-सर्वा अपने अरुण जेटली रहे , चोट सीधे अरुण जेटली को लगी ,अरुण जेटली के पास कोइ जवाब तो रहा नहीं ,चुनांचे एक ही रास्ता बचा रहा कि उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाय . उमर दरजी मुस्कुराए - तो एक विकेट और गिरा ?
   अभी देखते जाओ कितने और छटके गें . ये सरकार ही नाबालिगों की फ़ौज लगती है जिसने तोप का मुह अपनी तरफ कर रखा है और कह रहे हैं दुश्मनों को सफा करके ही दम लेंगे .
कीन से नहीं रहा गया ,अपनी हार भूल गए ,लगे अपने सरकार की तरफ से बोलने - यह सब कांग्रेस का खेल है . आप कीर्ती आजाद को नहीं जानते ? लेकिन उमर से नहीं रहा गया - कीन ! ऐसा बोल रहे हो जैसे कीर्ती आजाद नहीं भये , सनलाईट साबुन हो गए है ? मजाक नहीं , सुनो जो बोल रहा हूँ , कीर्ती आजाद  कांग्रेस के रहे भागवत आजाद उनके लड़के हैं ,वह खून का असर तो जायगा नहीं और फिर बिहारी . कोलाई डूबे ने टोका - इसमें बिहारी का मतलब ? कीन संजीदा हो गए - बिहार ने कम किया है , देश दुनिया में भाजपा की ऐसी की तैसी करके रख दी . पहले यशवंत सिन्हा फिर शत्रुघ्न सिन्हा , अब कीर्ती आजाद . एक एक करके सब पैतरा बदल रहे हैं .और यह सब कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है .   चिखुरी जोर का ठहाका लगाए - सुन कीन ये सही है ये तीनो ही संघी नहीं हैं . मूलतः ये ये दिल और दिमाग से बड़े लोग हैं संघ की मजबूरी थी कि समाज में चेहरा दिखाने के लिए कुछ ऐसे चमकदार और समझदार लोगों लोंगों को भाजपा में लाया जाय . यशवंत सिन्हा चंद्रशेखर के साथी हैं , शत्रुघ्न जे पी से प्रभावित रहे हैं , कीर्ती आजाद का सुन ही रहे हो . तुम्हारे पास जो अपने लोग हैं उनके बारे में मुह मत खुलवाओ . कोइ किसी से कम नहीं . इत्ते में नवल उपाधिया नयी खबर लेकर नमूदार हुए - कुछ सुना पंचो ! देश के खनन मंत्री ने क्या खोदा ? एक गाड़ी होती है फार्चून . बीस लाख के ऊपर की है . वह खरीदी गयी थी उड़ीसा के जंगलों को देखने के लिए , उसेमंत्री जी लेकर घूम रहे हैं डिल्ली में ...... गोलमाल .. गोलमाल है सब गोलमाल है ... रुके नहीं , गाते हुए आगे बढ़ गए .... 
बतकही / चंचल
सवाल मत पूछो , लकीर को छोटी करो
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         .... कीन उपाधिया फंस गए हैं , जन्तुला , रामदेई , फेफना क माई सब घेरे हैं कीन को . एक बात बताओ पंडित जी चुनाव के बख्त त बड़ी लंबी हांके रहे , कौन धन रहा , जौने को काला सफ़ेद बोले रहा कि ऊ आयी त सब के खाते में डेढ़ डेढ़ लाख डाल दीन जाई . इही चक्कर में फंस के बबुल्वा कर्नाटक क नौकरी छोड़ के पगलान घूमत बाय . उहो मुआ पागल भाया रहा तोहरे पीछे कि रुपिया मिली तो एक खोखा बनवाके उसमे सब्जी की दूकान खोलूँगा . नद्दी क गाडू बर् बख्त कागद कलम लिए आलू पियाज क भाव लिखत लिखत पगले गयल मुला न पैसा आवा न भाव गिरा . देख दाल क कीमत .कौन चीज सस्ती हुयी ? रामलाल की दूकान पर मसाला खरीदने आये कीन उपाधिया ऐसे फंस जायंगे उन्हें उम्मीद नहीं थी , लेकिन अब तो फंस ही गए हैं , मन ही मन सरकार को घुन्सियाते हुए बुदबुदाए - अगर ई ससुरा ऐसे ही चलता रहा तो गाँव छोड़ के परदेस भागना पड़ेगा मुह छुपाने की कोइ जगह तक नहीं बची है . कीन को घिरता देख सलीम ने चुटकी ली - पंडित जी जिसके लिए वोट माँगा उससे क्यों नहीं कहते ई सब ? कीन को थोड़ी राहत मिली - मिले रहे भाई , लेकिन नतीजा वही गोल रहा , अब पूछोतो बोलता है कि हमारी सुनता कौन है , सूबे में अखिलेश की सरकार है ,समाजवादी है , समाजवादियों को संघी लोग एक आँख नहीं सुहाते , उनकी बात सुनेंगे ? औ केन्द्र जहां अपनी सरकार है वहाँ और भी पतली हाल है जब घर मन्त्रीको नहीं सुना जाता तो हमारी कौन सुनेगा ? जन्तूला गरिआते हुए चली गयी अपनी बकरी को देखने , नवल उपाधिया नमूदार हुए , उन्हें देखते ही कीन जल भून जाते हैं दोनों में छतीस का आंकडा है आते ही आते नवल ने गुगली मारा - का हो जुमला भाय ! का हाल बाय ? कीन के लिए इतना काफी था , - जुमला का मतलब भी जानते हो कि चले आये मुह उठाये ? लफंगा कहीं का . नवल ने फिस्स से हंस दिया . उमर दरजी ने मशीन रोक दी . ई जुमला कौन हैं भाई ? अब बात नवल और उमर के बीच जा कर फंस गयी और कीन समझ गए कि अब इ दोनों मिल कर पूरी राजनीति की भद्द पीटेंगे इससे अच्छा है चुपे रहा जाय .
नवल ने आँखे गोल की - जुमला नहीं बूझते ? इसे समझो . यह राजनीति का एक खेल है जो सन चौदह से लागू हुआ है , ठीक वैसय जैसे सन पचास की छब्बीस जनवरी को देश के आजादी दिलानेवाली कांग्रेस ने संविधान लागू किया था , उसी तर्ज पर सन चौदह में एक ऐसी सरकार आयी जिसने जुमला लागू किया . अब यह देश के पैमाने पर चलाया जायगा . बस सीखने की देर है . कहो कीन भाई ! उमर ! सुनो हम बताते हैं . जैसे हमने उमर को कुतिया छाप मारकीन दिया पूरे दो गज , और कहा कि उमर भाय अगर तुम कल तक इसको चड्डी बना कर दे दो तो हम तुम्हे डेढ़ मन मकई , खांची भर  भूसा , और चूल्हा में लगाए वास्ते बबूल की एक पूरी थाह देगें . तुमने पूरे मन से मारकीन की चड्ढी सिल दिया , मियानी समेत . और हम चड्ढी लेकर चलते बने . अब तुम क्या करोगे ?
तगादा करूँगा और क्या करूँगा .
अगर हम तब भी नहीं मकई , भ्हूसा और लकड़ी नहीं द्दिये तो ?
जनता जनार्दन को बुलाऊंगा , और मामले को पंचाईट में रखूंगा
तो इससे क्या होगा ?
तुम्हारी इज्जत जायगी , चारों ओर ठू ठू होगा और क्या , काठ की हांडी एक ही बार चढ़ती है
एक बात बताओ उमर , इज्जत महगी है कि मकई और भूसा ? इज्जत जाय भाड़ में मकई तो बच गयी , रही बात हांडी कि तो एक बार तो चढ़ गयी न . फिर देखा जायगा .
अगर पकड़ कर जलील करना शुरू करूँ तो .?
बच्चे इस नए निजाम से हम बच निकलेंगे और बोल देंगे गंगा में खड़े होकर कि यह तो जुमला था . इसे कहते हैं जुमला . नए निजाम का नया नुस्खा वायदा करो और फिर बोल दो वह वायदा नहीं था , जुमला था .
नवल अब कीन से मुखातिब हुए - पंडित परसू के पुत्र कीन कान खोल कर सुन लो , तुम्हारे जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए ही सरकार ने यह जुमला दिया है . जब भी कोइ वायदे की याद दिलाए एक लाइन बोल दिया करो , वह तो जुमला था .समझे ? कीन कुछ जवाब देते उसके पहले ही उमर दरजी ने कहा पंचो सुन लो , यह जुमला जनता जनार्दन भी जानती है अगली दफा उसी जमले से लैस होकर जनता भी स्वागत करेगी .