Tuesday, February 2, 2016

बतकही / चंचल
सवाल मत पूछो , लकीर को छोटी करो
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         .... कीन उपाधिया फंस गए हैं , जन्तुला , रामदेई , फेफना क माई सब घेरे हैं कीन को . एक बात बताओ पंडित जी चुनाव के बख्त त बड़ी लंबी हांके रहे , कौन धन रहा , जौने को काला सफ़ेद बोले रहा कि ऊ आयी त सब के खाते में डेढ़ डेढ़ लाख डाल दीन जाई . इही चक्कर में फंस के बबुल्वा कर्नाटक क नौकरी छोड़ के पगलान घूमत बाय . उहो मुआ पागल भाया रहा तोहरे पीछे कि रुपिया मिली तो एक खोखा बनवाके उसमे सब्जी की दूकान खोलूँगा . नद्दी क गाडू बर् बख्त कागद कलम लिए आलू पियाज क भाव लिखत लिखत पगले गयल मुला न पैसा आवा न भाव गिरा . देख दाल क कीमत .कौन चीज सस्ती हुयी ? रामलाल की दूकान पर मसाला खरीदने आये कीन उपाधिया ऐसे फंस जायंगे उन्हें उम्मीद नहीं थी , लेकिन अब तो फंस ही गए हैं , मन ही मन सरकार को घुन्सियाते हुए बुदबुदाए - अगर ई ससुरा ऐसे ही चलता रहा तो गाँव छोड़ के परदेस भागना पड़ेगा मुह छुपाने की कोइ जगह तक नहीं बची है . कीन को घिरता देख सलीम ने चुटकी ली - पंडित जी जिसके लिए वोट माँगा उससे क्यों नहीं कहते ई सब ? कीन को थोड़ी राहत मिली - मिले रहे भाई , लेकिन नतीजा वही गोल रहा , अब पूछोतो बोलता है कि हमारी सुनता कौन है , सूबे में अखिलेश की सरकार है ,समाजवादी है , समाजवादियों को संघी लोग एक आँख नहीं सुहाते , उनकी बात सुनेंगे ? औ केन्द्र जहां अपनी सरकार है वहाँ और भी पतली हाल है जब घर मन्त्रीको नहीं सुना जाता तो हमारी कौन सुनेगा ? जन्तूला गरिआते हुए चली गयी अपनी बकरी को देखने , नवल उपाधिया नमूदार हुए , उन्हें देखते ही कीन जल भून जाते हैं दोनों में छतीस का आंकडा है आते ही आते नवल ने गुगली मारा - का हो जुमला भाय ! का हाल बाय ? कीन के लिए इतना काफी था , - जुमला का मतलब भी जानते हो कि चले आये मुह उठाये ? लफंगा कहीं का . नवल ने फिस्स से हंस दिया . उमर दरजी ने मशीन रोक दी . ई जुमला कौन हैं भाई ? अब बात नवल और उमर के बीच जा कर फंस गयी और कीन समझ गए कि अब इ दोनों मिल कर पूरी राजनीति की भद्द पीटेंगे इससे अच्छा है चुपे रहा जाय .
नवल ने आँखे गोल की - जुमला नहीं बूझते ? इसे समझो . यह राजनीति का एक खेल है जो सन चौदह से लागू हुआ है , ठीक वैसय जैसे सन पचास की छब्बीस जनवरी को देश के आजादी दिलानेवाली कांग्रेस ने संविधान लागू किया था , उसी तर्ज पर सन चौदह में एक ऐसी सरकार आयी जिसने जुमला लागू किया . अब यह देश के पैमाने पर चलाया जायगा . बस सीखने की देर है . कहो कीन भाई ! उमर ! सुनो हम बताते हैं . जैसे हमने उमर को कुतिया छाप मारकीन दिया पूरे दो गज , और कहा कि उमर भाय अगर तुम कल तक इसको चड्डी बना कर दे दो तो हम तुम्हे डेढ़ मन मकई , खांची भर  भूसा , और चूल्हा में लगाए वास्ते बबूल की एक पूरी थाह देगें . तुमने पूरे मन से मारकीन की चड्ढी सिल दिया , मियानी समेत . और हम चड्ढी लेकर चलते बने . अब तुम क्या करोगे ?
तगादा करूँगा और क्या करूँगा .
अगर हम तब भी नहीं मकई , भ्हूसा और लकड़ी नहीं द्दिये तो ?
जनता जनार्दन को बुलाऊंगा , और मामले को पंचाईट में रखूंगा
तो इससे क्या होगा ?
तुम्हारी इज्जत जायगी , चारों ओर ठू ठू होगा और क्या , काठ की हांडी एक ही बार चढ़ती है
एक बात बताओ उमर , इज्जत महगी है कि मकई और भूसा ? इज्जत जाय भाड़ में मकई तो बच गयी , रही बात हांडी कि तो एक बार तो चढ़ गयी न . फिर देखा जायगा .
अगर पकड़ कर जलील करना शुरू करूँ तो .?
बच्चे इस नए निजाम से हम बच निकलेंगे और बोल देंगे गंगा में खड़े होकर कि यह तो जुमला था . इसे कहते हैं जुमला . नए निजाम का नया नुस्खा वायदा करो और फिर बोल दो वह वायदा नहीं था , जुमला था .
नवल अब कीन से मुखातिब हुए - पंडित परसू के पुत्र कीन कान खोल कर सुन लो , तुम्हारे जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए ही सरकार ने यह जुमला दिया है . जब भी कोइ वायदे की याद दिलाए एक लाइन बोल दिया करो , वह तो जुमला था .समझे ? कीन कुछ जवाब देते उसके पहले ही उमर दरजी ने कहा पंचो सुन लो , यह जुमला जनता जनार्दन भी जानती है अगली दफा उसी जमले से लैस होकर जनता भी स्वागत करेगी .  

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