Tuesday, February 2, 2016

चिखुरी / चंचल
ह्त्या अपराध नहीं है , चुनाव सामग्री है .
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    '........ हम कहाँ से चले थे , कहाना जाना था , अचानक एक मोड़ आया और हम इंसान की बुनियादी पहचान से ही कन्नी काटने लगे . हमारी आजादी की नीव में सत्य है और अहिंसा है . दुनिया का शायद ही कोइ निजाम होगा जो बेहतर  हुकूमत के साथ एक शांतप्रिय समाज का भी ढांचा बुनते चले थे ,लेकिन अचानक एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हो गए जहां काठ की अल्पजीवी कुर्सी के लिए बहुत सारे जरायम पेशे में लग गए और बेशर्मी की हद तब टूट गयी जब ह्त्या जैसे जालिमाने हरकत को वाजिब ठहराने लगे .अभी दादरी के के एक छोटे से गाँव में कायर ,दब्बू और सोच से अपाहिज एक खेल रचा गया कि अख़लाक़ नामन एक स्सख्स के घर में गाय का मांस बना है .बगल के मंदिर में जहां कीर्तन चल रहा था लाउड स्पीकर लगा था ,उससे घोषणा हुयी कि अख़लाक़ के घर में गो मांस बन रहा है . बस . इतना काफी था . भीड़ टूट पडी . अख़लाक़ का घर तोड़ा गया , बेरहमी से सब को मारा पीटा  गया अख़लाक़ की मौत मौकये वारदात पर हो गयी , उनका लड़का अस्पताल में मौत से लड़ रहा है . जिन लोंगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया उनके बचाव में खुल्लम खुल्ला तमाम हिंदू गिरोह एक जुट होने लगे हैं और कह रहे हैं यह एक ' स्वाभाविक ' प्रतिक्रया है .केन्द्रीय मंत्री तक बचाव में उतर आये हैं .आजादी के साथ साल बाद हम घूम कर बर्बर समाज की ओर बढ़ने लगे हैं .कह कर चिखुरी ने लंबी सांस ली और दूर अनंत में उनकी आँखे थम गयी . लाल साहब की चाय की दूकान जो गाँव की संसद बन चुकी है पर जुटे तमाम सदस्यों ने अरसे बाद चिखुरी को इतना संजीदा और दुखी देखा .कयूम मियाँ सर झुकाए बैठे रहे . उमर दरजी जो कभी भी अपने को असुरक्षित नहीं समझता ,बड़ी बेबाक जिंदगी काट रहा है थोड़ा चिंतित दिखा . नवल उपाधिया ने यह भांप लिया - देख उमर अगर तैं हमरे साथे न पढ़े रहते औ पधत वक्त एकै गठरी में बैठ के चबैना न खाए रहित तो तोको आजै मुलुक निकाला दे देइत् समझे .उमर दरजी दादरी से निकल आये और गाँव के उस माहौल में खड़े हो गए जहां इस तरह की तू तू मै मै होती रहती है निहायात ही बेलाग , बेलौस और संभ्रांत शहरी समाज जिन बिंदुओं पर टकराकर अलग अलग खांचे में खड़ा हो जाता है , उसके बरक्स यहाँ गाँव में इस तरह की बतकही का अंत जिस ठहाके पर आता है ,वह ठहाका सारी दीवारों को भासका कर समतल कर जाता है . सदियों से यह गाँव अपने इस तमीज को जीता आ रहा है . उमर ने बढ़ कर नवल की गर्दन पकड़ लिया - इ अकेल्ले तोरे बाप का मुल्क है का ? इ मुल्क मरहूम हीरामणि उपाध्याय वल्द विद्याधर उपाध्याय बना के गए हैं का कि नवल जब मन करे किसी को भी मुल्क बदल कर देना ? सुन नवल इ मुल्क बनावे में जितनि मेहनत तै किहे अहे ओसे ज्यादा हमार है , समझे ? पूछो हमार ज्यादा कैसे ? पूछो तो बता ता हूँ . तीन कलम के आगे त पढ़े ना , का जानबे इ सब . गाजीपुर में एक गाँव है गंगौली  उहाँ एक लेखक पैदा भये रहे राही मासूम रजा .जे महाभारत लिखे रहे टीवी वास्ते . एक बार किसी पत्रकार ने पूछा रहा उनसे यही सवाल जो तुम बोल रहे हो . जवाब का रहा मालुम है, जवाब रहा - सुन हिंदू के बच्चे ! मुल्क बटवारे के समय हमारे सामने दो 'आप्सन ' थे हम हियाँ रहते या फिर पाकिस्तान जाते . हमने यहीं रहने का फैसला किया . तुम्हारे सामने कोइ आप्सन ही नहीं था तुम्हे तो यहीं रहना ही था . देश से मोहब्बत करनेवाले हम हैं कि तुम ? समझे नवल . औ ज्यादा बोलबे त नोटा .... और सारा माहौल बदल गया . कीन उपाधिया जन्म के संघी , जब कुछ नहीं पाते तो गोधरा पहुच जाते हैं लेकिन अब वह रिकार्ड इतना घिस गया है कि कोइ सुनने को राजी नहीं . चुनांचे बात चली गयी बिहार .
         मद्दू पत्रकार ने अपने पसंदीदा विषय को उठा लिया . - चिखुरी काका ! कितने कमअक्ल लोग आ गए और इतनी बेशर्मी के साथ कि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए कितना भी गिर जायगें लेकिन शर्म नहीं लगेगी . गुजरात माडल का चुनाव कराना चाहते हैं . दृविकरण . हिंदू एक तरफ हो जाओ , मुसलमान एक तरफ . एक झटके में गुजरात में तो चल गया लेकिन काठ की हांडी अब नहीं चढ़ने वाली . यह बिहार है .राजनीति में सांस लेता है , उसी में उठता बैठता है . उसी में झूमर और सोहर गाता है . उसे ये काली दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी नहीं समझ पाए हैं न ही आखीर तक समझ पायेंगे . अब बताईये मांस का एक लोथडा उनकी चुनाव सामग्री बन रही . गो मांस . इन कमबख्तों को इत्ता भी नहीं मालुम यह प्रतिबंधित नहीं है . यह मुल्क इसका बड़ा निर्याता है . इस सरकार यह निर्यात बढ़ा भी है . पश्चिमी देशों की यह प्रिय पदार्थ है . एक तरफ उन्हें गले लगाओगे , उनके लिए बिछे पड़े रहोगे .दूसरी तरफ एक अफवाह को उड़ा कर क़त्ल जैसे घटिया काम में लग जाओगे . पूर्वोत्तर राज्यों को देखो , उनसे बात तो करो . गोवा में जाकर देखो वहाँ तो तुम्हातुम्हारी ही सरकार है  . जाओ क़त्ल कर के देखो . .... नवल से नहीं रहा गया - एक बात बता बकरे का मांस और गो मांस का फर्क करेगा यह पुजारी जिसने बदअमनी फैलाई है .? चू ... मुर्गी और मुर्गे के मांस में तो फर्क करी नहीं सकते चले हैं गो मांस पहचानने ? हम तो एक बात कह रहे हैं डंके की चोट पे सुन ले कीन .. बिहार पहले भिगोये , फिर धोबिया लदान मारे , निचोड़ के सुखेवास्ते दारा पे डालदेई कि कलकता की डगर भूल जाबे . समझे ? कहकर नवल गाते हुए आगे बढ़ गए - लागा झुलनिया क धक्का , बलम ... 

3 comments:

  1. behatreen.......yeh kaisi politics ho rahi hai aajkal

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  2. वाह गुरु.... एकदम करारा ... आज की राजनीती के उपर.... महादेव .... _/\_

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  3. आपके लेखन की इसी अदा का फैन हूं चंचल जी। एकदम कबीर के अंदाज में फक्कड़ी और बेबाकी।

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