Sunday, December 16, 2012

क्रान्ति सड़क से उठती है 
.......   "जन संचार के जितने भी माध्यम हैं सबकी अपनी एक सीमा है , वह क्रान्ति की दिशा और उसके उफान को  मापती है , आगे लेजाती है और बाज दफे उसे दफना देती है . "- यह एक भ्रम है भारतीय जमीन पर अभी हाल की दो एक घटनाओं ने इसका सबूत दे दिया है . अन्ना और केजरीवाल इसके उदाहरण हैं . इस विषय पर आज भाई अम्बरीश ने एक सवाल उठाया है - क्या इन्टरनेट पर ( से ) क्रान्ति संभव है ?
     ऋग्वेद की एक ऋचा है - जानाति इच्छति अथ करोति ' इच्छा , ज्ञान और शक्ति ये तीन आवश्यक तत्व हैं जो उड़ान भरने के लिए जरूरी होते हैं . जिस कौम की इच्छाशक्ति ही मर जाती है वह अपने आप लुप्त हो जाती है . पिछले दिनों यह सवाल जोर शोर से चला कि नेट के जरिये क्रान्ति संभव है उदाहरण के लिए मध्येसिया के तमाम् तानाशाहों के खिलाफ लड़े गए आंदोलनों का जिक्र किया जा सकता है . लेकिन एक बात लोग  नजरअंदाज कर देते हैं कि वहाँ जनतंत्र नहीं था , जनसंचार के माध्यम सरकारी थे , नेट ने वहाँ काम कर दिया . लेकिन जनतंत्र में गुस्से का एक मुस्त दबाव नहीं बन पाता वह रोजही होता है  और रोज रोज निकलता रहता है .
        मीडिया में जिन तीन चीजों से परहेज करने की नसीहत डी गयी है उसमे से एक है '  प्रिडिक्टसन ' आज मीडिया इसी बीमारी के चलते अपने आपको मार रही है . अचानक उसने अपनेआपको खुदा समझ लिया और सन्निपात में चला गया . इस विषय पर भाई प्रमोद जोशी ने अच्छी टिप्पणी की है उसे देखा जाना चाहिए . इसे और भी सरल बनाया है भाई संदीप वर्मा ने ' चौथी टांग भी टूट गयी ' . इसका मतलब यह नहीं कि अब कोइ रास्ता नहीं बचा या हम अपाहिज हो गए है . यहाँ दो पन्नों का खुलासा करना चाहता हूँ एक आजादी की लड़ाई में जब प्रेस पर सत्ता का जबर दस्त दबाव था तब भी सुराजियो की आवाज गाँव गाँव तक पहुच जाती थी . दूसरा आपातकाल के दौरान .
     इससे अलहदा जो मूल सवाल है आप बदलाव के हामी हैं तो आप चाहते क्या हैं ? जो चाहते हैं उसकी जमीन ( लोंगो में  इच्छाशक्ति) तैयार  है क्या ? उसका पूरा ज्ञान है कि नहीं ? कथनी और करनी के बीच की कम से कम की दूरी पर नेतृत्व का खड़ा होना जरूरी होता है इसके बाद सड़क आती है . यहाँ प्रसंग्वस् एक उदाहरण देना चाहता हूँ . फेसबुक पर ' कई दलित चिन्तक ' हैं जो हर वक्त एक ही र्रोना रोते रहते हैं उन्हें ब्राहमणवाद नेमारा है . उंच नीच का खेल उन्होंने बनाया है . हमारा उनसे यह कहना है कि भाई यह तो हर कोइ जानता है हम भी इसके खिलाफ हैं लेकिन पहले अपना घर तो देख आओ . आज डालियों में भी उंच नीच है . छुआ छूत है . कर्मकांड से भरा पड़ा है . उसे तो दूर करो . इसके लिए हमने रचनात्मक संघर्ष का सुझाव दिया . बापू का हथियार . इस रचनात्मक संघर्ष पर भी सवाल उठे -यह क्या होता है ? इसे अगली कड़ी में -

Wednesday, December 12, 2012

शुभ यात्रा पंडित जी !

 पंडित रवि शंकर के निधन का समाचार हमें यात्रा में मिला . ' शिशिर जी ' से . उनकी कामयाबी , उनकी बुलंदी . और उनकी उम्र देखते हुए उनके निधन की खबर दुःख नहीं देती लेकिन एक कमी खटकती रहेगी . संगीत की दुनिया का एक बेताज बादशाह अलविदा कह रहा है लेकिन उसकी झंकार सदियों तक समूची कायनात में गूंजती रहेगी . इंसानी सभ्यता लित्नी बार करवट लेगी सितार का एक तार जरूर झंझनायेगा . काशी अदब का एक प्रकाशपुंज और गया . उनकी समूची शख्सियत का खाका खीचना बहुत आसान नहीं है . उनके पास भैरवी की रुनझुन बयार है तो भीम  पलासी और यमन की लयकारी . उनके तार और उँगलियों के रिश्ते को अभिव्यक्ति नहीं किया जा सकता उसे महसूस किया जा सकता है और सारी दुनिया ने उसे महसूस किया है . पंडित जी ! जब भी कोइ परिंदा किसी भी भाव में  चहकेगा आप याद आयेंगे .
      पंडित जी बनारसी  ठाट , ठसक और रंग के बेजोड इंसान रहें . उनके ठहाके , उनकी मुस्कान सब जगह संगीत बजता था .
   काशी संगीत की दुनिया है  एक से बढ़ कर एक . उसमे पंडित रविशंकर थोड़ा अलग रहें . काशी ने उनके  जीते जी वो प्यार , मनुहार और आदर नहीं दिया जितना उनके हिस्से में आता था . यह काशी की अपनी ठसक है . लेकिन आज उनके न रहने पर सबसे ज्यादा अगर कहीं बेचैनी होगी तो काशी में . पंडित जी को पुष्पांजलि अर्पित करता हूँ .

Tuesday, December 4, 2012

सुषमा स्वराज हमें अच्छी लगती हैं . मै क्या करूं ..
...... बहुत दिनों बाद , कल हमने संसद की कार्यवाही देखा . देखन जोगू . कार्यवाही का फिल्मांकन कर रहें कैमरा मैन का नाम नहीं देख पाया लेकिन उसने अच्छा काम किया . स्क्रीन पर बार बार तीन फ्रेम दे रहा था एक साथ . बीच में मीरा कुमार एक  तरफ सोनिया गांधी , दूसरी तरफ सुषमा स्वराज . सारी दुनिया के सामने हम यह कह सकते हैं कि देखो यह है भारत की संसद . महिलायें महज घर के इंतजामात तक ही महदूद नहीं है बल्की मुल्क के मुस्तकबिल का भी फैसला इनके हाथ में है .
         यह अवसर था , -  खुदरा व्यापार में  विदेशी निवेश का . भाजपा अड़ी थी कि धारा १८४ के तहत बहस के साथ मत विभाजन भी हो . संसद के अध्यक्ष श्री मती मीरा कुमार . नेता संसद सुशील कुमार शिंदे समेत सभी दल इस पर सहमत हो गए . लेकिन एनवक्त पर भाजपा मुकर गयी . भाजपा की ओर से यशवंत सिन्हा ने व्यवस्था का प्रश्न उठा कर समूची कार्यवाही को एक एक नया मोड़ दे दिया. इस मुद्दे पर तीस दिन का समय और दिया जाय . कांग्रेस बार बार चुनौती देती रही कि मत विभाजन की मांग आप की थी हम उस पर तैयार हैं . लेकिन भाजपा किसी भी तरह से तैयार नहीं दिखी . बहरहाल बहस् शुरू हुई .
      बहस की शुरुआत सुषमा स्वराज बहैसियत नेता प्रतिपक्ष ने की . बहस की शुरुआत अच्छी रही लेकिन अचानक सुषमा जी ने बहस को पीछे ढकेल दिया . जनसंघ के जमाने में चली गयी और आढतियों के समर्थनमे उतर आयी . किसान और आढतियों के बीच के ' मानवीय संबंधो ' की वकालत करने लगी . हमें बड़ी हैरानी हुई . आज भी भाजपा आढतियों के साथ खड़ी है ? मोटू ने कहा सुन रहें हो -   साहूकार किसी जरूरत मंद किसान को जब मदद करता है तो एवज में खाल तक खींच लेता है . हमने मोटू को समझाने की कोशिश की कि सुषमा जी इसी लिए तो अच्छी लगती हैं कि वे कभी कोइ भी बात राज नीति में गोपनीय नहीं रखती . यह भाजपा की नीति और नियति दोनों है .