Tuesday, February 2, 2016

राज नारायण /चंचल
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राज नारायण , नेता जी , लोकबन्धु सब एक ही शख्सियत का बयान है . जवान होते ही भिड पड़े अंगेजी हुकूमत से .महात्मा गांधी  ने एक सबक पढ़ा दियाकि किसीपर हाथ मत उठाना , ताउम्र उसका निर्वहन करते रहे , अगर कहीं ज्यादा जरूरत पडी तो  कुहनी से दबा देते थे , या फिर कुबरी जिसके सहारे चलते थे उसे सामने वाले के मुह की तरफ ऐसा लगाते थे जैसे वह बांस का डंडा न होकर बोफोर्स की नली हो . और बापू को लगेहाथ याद भी कर लेते थे ' जाओ , बापू ने कसम दिलाया है कि हाथ मत उठाना .... नहीं तो / राम बचन पांडे जैसा कोई खांटी समाजवादी मिल जाता तो चुनौती भी मिल जाती थी -नहीं तो क्या कर लेते ? और नेता जी फिस्स से हंस देते . गरज यह कि नेता जी एक अहिंसक सिपाही थे . राजनीति में थे , चुनाव लड़ते थे . उत्तर प्रदेश की विधान सभा में नेता समाजवादी रहे . प्रवेश करते थे अपने पैरों से निकलते थे मार्शल के मार्फ़त . लेकिन कब तक , चुनांचे लखनऊ छोड़ कर जब डिल्ली की तरफ रुख किये तो लगे देश को हिलाने . दुनिया की सियासत में इस तरह का कोइ दूसरी नहीं मिलेगा जिस मुकाम को नेता जी ने बनाया . खुद डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन तीन प्रधान मन्त्रीको उनकी कुर्सी से बे दखल किया . श्रीमती इंदिरा गांधी , मोरारजी रणछोंड जी भाई देसाई , और चौधरी चरण सिंह . इसे सीधा कर दिया जाय तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि कुल डेढ़ चुनाव जीतने वाले नेता जी ने तीन प्रधान मंत्री ही नहीं एक राष्ट्रपति भी बनाया . राय बरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ और हार गए . इस चुनाव को उन्होंने न्यायालय में पहुचाया और श्रीमती गांधी का चुनाव रद्द हो गया . देश में आपात काल लगने के जो कई कारण थे ,उसमे एक कारण राजनारायण भी रहे . आपातकाल के बाद जब चुनाव की घोषणा हुयी तो नेता जी सीधे रायबरेली पहुंचे और चुनाव में श्रीमती गांधी को हरा कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किये . जनता पात्री बहुमत से आयी लेकिन प्रधानमंत्री के कई दावेदार रहे , चौधरी चरण सिंह , जगजीवन राम और मोरार जी भाई . नेता जी ने यहाँ भी एक खेल खेला . समाजवादी पार्टी बाबू जगजीवन राम के पक्ष में थी लेकिन संघ और कांग्रेस ओ नहीं चाहते थे कि राम को प्राइम मिनिस्टर बनाया जाय . नेता जी उन दिनों चरण सिंह के साथ थे , एक नया फार्मूला निकाले कि मोरारजी भाई को प्रधान मंत्री बनाया जाय चौधरी चरण को गृह मंत्री और बाकी मुख्य विभाग संघ को सौंप दिया जाय , साथ ही यह भी तय हो गया कि आगामी विधान सभाओं के चुनाव के बाद हिन्दी पत्ती के जो छ राज्य हैं जहां जनता पार्टी का आना तय है उसमे तीन चरण सिंह को और तीन संघ संघ को सौंप दिया जाय . और यही हुआ . इस कहानी से सब वाकिफ हैं . अब दूसरा हिस्सा सुनिए जो शोध का विषय है -
       राजनारायण ने मोरार जी भाई की सरकार क्यों गिराई ?
कुछ लोंगो ने नेता जी पर यह आरोप लगाने की कोशिश किया है कि नेता जी और संजय गांधी के बीच कुछ समझौता हुआ था . लेकिन यह सरासर गलत है . नेता जी पैसे के लोभीकभी नहीं रहे वे आजीवन सत्ता, संपत्ति और संतति से दूर रहे . जमींदार परिवार से ताल्लुकात रखनेवाले नेता जी ने समाजवादी राजनीति अपनाते ही सबसे पहले अपनी सैकडो बीघा जमीन हरिजनों को बाँट दिया  था . नेता जी का खेल दूसरी जगह से चल रहा था . अब उस हिस्से को देखिये जब जनतापार्टी से सांसद शपथ ग्रहण कर रहे थे , उस एन वक्त पर जे पी इंदिरागांधी के घर पर थे . जे पी के साथ कुमार प्रशांत जी भी थे . जे पी को देखते ही श्रीमती इंदिरा गांधी जे को पकड़ कर उनके कंधे पर सिर रख दिया और रोने लगी . जे पी भी अपने को नहीं रोक पाए दोनों लोग रोते रहे , फिर जे पी ने कहा था - घबड़ाओ मत इंदु सब ठीक होगा . क्या नेता राजनारायण इसी ' सब ठीक होगा ' के तहत काम तो नहीं कर रहे थे ? दो एक बार और पीछे चलिए . जे पी ने आंदोलन को जेल तक क्यों पहुचाया ? डॉ लोहिया अस्पताल में थे उनकी देख रेख में जे पी और उनकी पत्नी अस्पताल में ही रहते थे . श्री मती गांधी प्रधान मंत्री थी और बगैर नागा सुबह शाम डॉ लोहिया को देखने जाती थी . एक दिन डॉ लोहिया ने प्रभावती से कहा - जे पी को कहना कि अगर इतिहास में ज़िंदा रहना है तो एक बार जेल चला जाय . एक तरह से डॉ लोहिया समाजवादी आंदोलन की कमान जे पी को सौंप रहे थे . और वही हुआ . यहाँ यह भी मान लेना चाहिए कि कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के बीच तमाम आंदोलनों और लड़ाइयों के बावजूद खटास कभी नहीं रही , और समाजवादी कभी भी नहीं चाहते रहे कि कांग्रेस सत्ता से बाहर जाय , लेकि वह एकाधिकार की तरफ भी न जाय . यही कारण है कि जब ज्ब्कान्ग्रेस एकाधिकार वाद्की तरफ बढ़ी है उसकी नक्लेल समाजवादी आन्दोलन ने ही पकड़ी है . समाजवादी आंदोलन कांग्रेस का परिमार्जन करती रही है . इसका अंदरूनी हिसा भी खोला जा सकता है   आजादी के बाद , सरदार पटेल की मृत्यु के बाद पंडित नेहरु कांग्रेस संगठन को ही समाजवादियों के हाथ सौपना चाहते थे लेकिन उनके सामने दो बड़ी दिक्कतें थी , एक संगठन पर पतेल्वादियों की पकड़ और दूसरा उनका अपने कार्यकाल में कांग्रेस का टूटना , नहीं देखना चाहते थे . कालान्तर में उनकी बेटी श्री मती इंदिरा गांधी ने वह जोखिम उठाया और पार्टी ने उन्हें कांग्रेस से बाहर निकाल दिया . उनके साथ बाहर निकलनेवाले पांचो ही समाजवादी थे जिन्हें युवा तुर्क के नाम से जाना गया . इसमें चंद्रशेखर , मोहन धारिया , रामधन , कृष्ण कान्त और अर्जुन अरोड़ा  थे . तो जब मोरार जी भाई प्रधान मंत्री बने समाजवादी एक बार फिर यथास्थित वादियों जिसमे मोमोरार जी भाई , नीलम संजीव रेड्डी , यस के पाटिल निजलिंगप्पा आदि आदि रहे के खिलाफ लामबंद होने लगे और उन्हें याद आया , इन्हें सब के दबाव के चलते तो समाजवादी कांग्रेस से बाहर आये थे . उन्हें स्थापित होते कब देख सकते थे ये समाजवादी . ?यह रहा नेता का इतिहास जो देश  का भी इतिहास है . 

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