Saturday, June 2, 2012

मै 'काफी हाउस' गयाथा
अम्बरीश भाई की चिंता 'अखबार नवीसों ' के दलीय प्रतिबद्धता को लेकर थी तो पूजा जी बिहार में उठ रहें जातीय उन्माद को लेकर है .नीलाक्षी जी 'इधर' उधर' हैं .वहाँ दलित और मार्क्स दोनों अपने अपने ढंग से रंगे जा रहें है .मुखिया की ह्त्या पर मैंने अम्बरीश भी की खबर पर  टिप्पणी -यह दो 'अति' यों का पूर्वानुमानित परिणति है ,एक 'हिंसा' को अपनाता है और वही 'हिंसा' का शिकार भी  होता है .कहते हुए बाहर आ रहा था की पूजा जी की एक गंभीर आवाज सुनाई दी -क्या बिहार जातीय और वर्ग  संघर्ष का शिकार हुआ है ? बिहार सरकार इससे निपटेगी कैसे ?
   पूजाजी ! हम आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं .मार्क्स किसी भी संघर्ष के नींव में 'पूजी' को मुख्य कारण मानता है .और यह सच भी है .भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेजों की लूट संस्कृति ने पूंजी की शक्ल ही बदल दी .मशीन उनकी ,मशीन उनके पास उनके अपने देश में ,कच्चा माल यहा का .भारतीय उपमहाद्वीप की पूंजी से अंग्रेज संस्कृति फलती फूलती रही .और जब वे यहा से चले गए तो इस द्वीप के पास जो इसकी पूंजी बची वह न तो मशीन थी न ही सिक्का .इसके पास कुछ बचा रह गया था तो बस 'भूमि' थी .अब सवाल था इसके बटवारे का .१९५२ में संविधान लागू होता है .संविधान 'संपत्ति का  अधिकार ' दे चुकी है ,अन्य अधिकारों की तरह .जब जमींदारी उन्मूलन के तहत सरकार ने जमीन  बटवारे की चर्चा चलाई तो इसका जबरदस्त विरोध हुआ .कांग्रेस बटवारे के पक्ष में है और दक्षिण पंथी संघी घराना जमींदारी प्रथा चालू रखने के पक्ष में है साम्यवादी जमीन को पूंजी मानने के लिए तैयार नहीं .जमींदारों ने उच्चतम न्यायालय की शरण ली उनका आधार था संविधान में प्रदत्त 'संपत्ति का अधकार ' ...कांग्रेस सरकार ने पहला संविधान संसोधन किया और जमींदारी उन्मूलन क़ानून बना .जमीन की सीमा तय की गयी .'सीलिंग ' लागू हुई .जमीन बटवारे का सबसे वीभत्स रूप अगर किसी राज्य में देखने को मिलेगा तो वह बिहार है . आज भी ऐसे ऐसे किसान है जिनके पास जमीन ही जमीन है बाकी आबादी ही मजूर है .तो पूजा जी जब तक जमीन का फैसला नहीं होगा हिंसा का क्रम टूटेगा नहीं .

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