Sunday, June 3, 2012

बच्चों की किताबों का मेला
'किताबों में बिल्ली ने बच्चे दिए हैं '
'देखी तेरी दिल्ली' बोला और दिल्ली को अलविदा कह दिया .और आगया गाँव .पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक गाँव .देश के अन्य गांवों से थोड़ा अलहदा इसकी तस्वीर है .गरीबी है .ग़ुरबत है . लेकिन गैर बराबरी कम है .यहाँ बेचैनी नहीं है ,न तड़प है .लोग जी रहें हैं तो जिए ही जा रहें हैं .सरकार भरपूर कोशिश कर रही है 'विकास'(?) का विस्तार हो ,योजनाये आरही हैं ,जनता मुह बाए देख रही है .रकम आ रही है ,मिल बाँट कर खा रहें हैं .सरकार कहती है जनता अपना हिसाब देखे उसपर नक्लेल लगाए जनता कसमसाती जरूर है लेकिन 'ऊपर भी तो येही हो रहा है ' कह कर संतोष कर ले रही है .एक दिन मन में आया कुछ किया जाय ....चाचे तो चोर और मुह्मोट हो ही चुके हैं भतीजों को देखा जाय .हमने एक सवाल उठाया -बच्चों के लिए क्या किया जाय ? कई महिला मित्रों से राय ली .(पुरुषों से बाद में .. कारण भी बाद में बताउंगा ) दीदी (सुमीता चक्रवर्ती ,जानी मानी चित्रकार .मूर्तिशिल्पी .और सबसे बड़ी बात संवेदन शील है .बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और शान्ति निकेतन से प्रशिक्षित हैं ,बच्चों से जुड़ी रही हैं , विश्वविद्यालय (B.H.U.) की अध्यापकी छोड़ कर अपने घर पर ही रह कर बच्चों को चित्रकारी सिखाती हैं )ने सुझाया बच्चों की किताबों का मेला लगाओ ....बात में दम था .और उस पर मै काम करने लगा .लेकिन जबर दस्त निराशा हाथ लगी .यहाँ गाँव में लोंगो की इच्छा शक्ति ही मर चुकी है .हमसे कई तरह के सवाल पूछे गए -
       -इससे क्या होगा ?
       -कोइ आएगा भी ?
       -किताबें कहाँ से आयेगी ?
     - कौन खरीदेगा ?
      -कोर्स की किताब पढ़ने से बच्चों को फुर्शत ही नहीं .....किताब खरीदेंगे ?
     -खर्चा कौन देगा ? वगैरह वगैरह और सबसे मजेदार टिप्पणी तो आड़ से मिली ' ये मुह और मसूर की दाल ?' बाप मरा अधिअरिया बेटा पावर हाउस ?' कोइ सरकारी योजना मारा होगा .. कुछ नकुछ तो दिखानाही होगा ..' चूतियापा है .. खाली दिमाग सैतान का घर ..' भसक जाने  के लिए इतना काफी था .लेकिन मैंने सोचा और राय लूं ...हमारी एक दोस्त लन्दन में रहती है साधना ..दस्तकारों के साठ काम कर चुकी है उससे बात की ,उसने हौसला दिया ..तुम घबराओ नहीं .. हजारों हजार साल से गाँव उपेक्षित पड़ा है .. यह दिक्कत तो आयेगी ही लेकिन काम शुरू तो करो .और मैंने काम शुरू कर दिया ....अभी बताता हूँ बात कहाँ तक पहुँची ..?

No comments:

Post a Comment