Monday, June 11, 2012

एक कार्टून और फंसा  सियासत में
अभी अम्बेडकर ,संविधान बनने की गति ,और जनता की उत्कंठा को ले कर बने शंकर पिल्लई के कार्टून का विवाद थमा भी नहीं की 'अंग्रेजी हटाओ 'के विरोध में दक्षिण भारत की प्रतिक्रया पर आर . के . लक्ष्मण .का बनाया हुआ कार्टून विवाद में आगया .अभी तक करुणा निधि और वाइको का विरोध आचुका है .उनका कहना है की इस कार्टून से यह सन्देश जाता है की दक्षिण भारत के लड़के अंगरेजी नहीं जानते .१० जून और ११ जून के हिन्दू में इस पर लंबी चर्चा चली है .इस समूचे प्रकरण में जो मुद्दे उभर रहें है  उन गांठों को खोलना जरूरी है .
      अगर आपको याद हो तो आजादी की लड़ाई में एक भी ऐसा मुद्दा नहीं था जिस पर कांग्रेस ने अपनी राय न स्पष्ट कर दी हो . इसमें एक मुद्दा था राष्ट्र भाषा का .कांग्रेस ने 'हिन्दी' को राष्ट्रभाषा के रूप में इसे स्वीकार कर लिया .गांधी हिन्दी के सबसे बड़े पैरोकार थे .दक्षिण को और कई गैर हिन्दी इलाको को यह समझाया गया की हिन्दी हम पर थोपी जा रही है .चुनांचे इसका विरोध हुआ .१९३९ में तमिल नाडू इसके विरोध में उतरा लेकिन आजादी के जूनून में यह विरोध ज्यादा मुखर नहीं हो पाया .आजादी के बाद डॉ लोहिया ने जब भारतीय भाषा को बहस के केन्द्र में रख कर अंगरेजी हटाने की बात कही तो दक्षिण ने उसका गलत अर्थ निकाला कि हम पर हिन्दी थोपने की बात हो रही है .डॉ लोहिया के भाषा नीति पर समूचा देश आंदोलित हुआ .और सच कहा जाय तो आजादी के बाद यह पहला सवाल था जिस पर समूचा मुल्क कसमसाया .और नौजवानों की एक नई खेप राजनीति में सक्रीय हुई .उत्तर भारत में 'अंग्रेजी हटाओ 'एक बड़ा मुद्दा बना .उत्तर भारत के सारे शिक्षण संस्थान इसके घेरे में आ गए .बनारस विश्वविद्यालय इसका केन्द्र बना .देवब्रत मजुमदार ने जिस हिम्मत और दिलेरी के साथ इस आंदोलन की अगुआई की वह आज तक एक नजीर बनी हुई है .इलाहाबाद से श्याम पांडे ,नरेंद्र गुरू ,नरेंद्र देव पांडे ..बहुत सारे नाम है ...समाजवादी आंदोलन में जनेश्वर मिश्रा और आनान्देश्वर सिंह के बाद यह नई पीढ़ी आरही  थी .गोरखपुर से कल्पनाथ राय ,मेरठ से सत्यपाल मलिक बनारस से मार्कंडेय सिंह ,आनाद कुमार ,राम बचन पांडे ..
     उधर गैर हिन्दी इलाको में इस आंदोलन को गलत ढंग से पेश किया गया .उन लोंगो को यह स,म्झाया गया कि उत्तर भारत के लोग आप पर हिन्दी थोप रहें हैं .इसी विषय को लेकर आर. के. लक्षमण ने कार्टून बनाया .वही कार्टून फिर विवाद में आ गया है .हमारे मित्र वाइको जो कि एक दमदार और निर्भीक नेता हैं इस मुद्दे को लेकर मैदान में कूद चुके हैं .लगता है यह दौर ही कार्टून के विरोध का दौर है .

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