Wednesday, July 8, 2015

चंद्रशेखर ; इकला चलो
.... जानता तो पहले से था ,लेकिन मिला पहली बार ७७ में . हम गए थे दिल्ली ,काशी विश्वविद्यालय के लिए एक कुलपति तलाशने . जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी ,पार्टी बन रही थी . हम मधुलिमये से मिले . हमने प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए हमारे पास दो नाम हैं. इन दो में से किसी एक को कुलपति बनवा दीजिए . एक अशोक मेहता या अच्य्त पटवर्धन . मधु जी चुप रहे फिर कुछ सोच कर बोले चलो पार्टी आफिस और चंद्रशेखर से बात कर लो . यह थी चंद्रशेखर से पहली मुलाक़ात . चंद्रशेखर जी से जब मधु जी ने मिलवाया तो मिलते ही चंद्रशेखर बोले -  हाँ जानता हूँ . फिर हमारी तरफ मुड़े और अपनी पुर्बहिया भाषा में बोले - त संघ के घसीट देह ल ? क्या क्या हुआ इस समय कैसा है विश्वविद्यालय आदि आदि पूछने के बाद बोले . एक गो रिपोर्ट विश्वविद्यालय चुनाव को लेकर लिख द ' यंग इंडिया ' के लिए . (चंद्रशेखर जी संपादक रहे. नेता और किसी पत्र का संपादन करना ,एक रवायत रही है . आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी के बाद तक यह परम्परा चलती रही . आज की राजनीति के लिए नेताओं को संपादन तो छोड़ दीजिए चिट्ठी तक लिखने की तमीज नहीं है ) चंद्रशेखर जी साथ थोड़ी देर बात हुयी और बोले हम कोशिश करेंगे ,लेकिन शायद वे दोनों ही न तैयार हों . एक बार मोरार जी भाई से मिल लो . और दूसरे ही दिन प्रधानमंत्री कार्यालय को बोल कर मिलने का समय तय करा दिये . मोरार जी भाई से जिस तरह की मुलाक़ात हुयी वह हैबतनाक रही और हम पांच जन जेल जाते जाते रह गए , गनीमत थी कि एन वक्त पर नेता जी ( राजनारायण ) आ गए . वहाँ क्या हुआ , कैसे हुआ , इसकी पूरी खबर ' दिनमान ' और 'रबिवार ' में विस्तार से छपी थी , जरूरी समझें तो उसे देख लीजियेगा . उसी दिन जनता पार्टी के टूटने की नीव पड गयी थी . क्यों कि उस झगडे में मोरारजी भाई ने बोल दिया था - लोहिया झूठ बोलते थे ' . बाद में मोरार जी भाई ने इस बात के लिए खेद व्यक्त किया और माफी मागे . बहरहाल वह अलग का किस्सा है . बात चन्द्र शेखर जी पर चल रही है . चंद्रशेखर जी से हमारे रिश्ते आखीर तक बने रहे . चंद्रशेखर जी पर गांधी , आचार्य नरेंद्र देव का बहुत प्रभाव था . हंसी मजाक का पुट उन्होंने इन्ही दोनों लोगों से लिया था . ८४ में चंद्रशेखर जी ने हमे तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा के खिलाफ चुनाव लड़ा दिया .नतीजा जो होना था वही हुआ हम इज्जत के साथ हारे . चुनाव के बाद हम फिर मिले . मिलते ही उन्होंने चुटकी काटा - कैसा रहा हो चुनाव ? हमने जवाब दिया - ठीक बलिया माफिक . खूब जोर का ठहाका लगा . ( चंद्रशेखर जी ८४ का चुनाव बलिया से हार गए थे ) आज वे हमारे बीच नहीं हैं लगता है हम किसी और माहौल में फंस गए हैं . बहुत याद आते हैं दाढ़ी . प्रणाम करता हूँ . आपके कृत्य याद किये जाते रहेंगे . 

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