Friday, July 3, 2015

खादी का खाता तो खोलो .
चंचल
         खादी की यात्रा भारत की आजादी की लड़ाई से शुरू होती है और उसी के साथ साथ चलती है . आजादी के बाद खादी उसी तरह स्थापित होती जैसे सरकार . खादी उसी तरह उतरती है जैसे सत्ता का मोह उतरता है . खादी के प्रति लोग उसी तरह आशंकित होते हैं जैसे सत्ता के प्रति . खादी के बारे में उसी तरह कुप्रचार होता है जैसे सत्ता के बारे में . भारत में सत्ता के केन्द्र में कांग्रेस ही रही है बात चाहे पक्ष की हो या उसके प्रतिपक्ष की . एक बार अपने एक मित्र के घर चल रही पार्टी में , जसमे तमाम देशों के प्रतिनिधि , हर दल के जाने माने लोग उपस्थित रहे ,उसमे मनोज कुमार की फिल्मो के लिए गीत लिखनेवाले संतोषानंद भी रहे और दिल्ली के हिसाब से संघियों के बीच घिरे पड़े रहे और गांधी जेरे बहस थे . संतोषानंद ने हमारी तरफ देखा और बोले - अब तुम संभालो भाई . और हमने एक बात कही . गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है .यह वहाँ जुटे फ़िल्मी लोंगों के लिए कत्तई अजूबा बात थी . एक फिल्म वितरक ने निहायत ही व्यंग्य भरे लहजे में पूछा - इसका खुलासा भी हो सकता है ? हमने कहा जी , हुआ पड़ा है , दिखाई न दे यह दीगर बात है . उन्हों ने फिर फिकरा कसा - तो आप दिखा दीजिए . हमने कहा अब आप पीछे चलिए , हिन्दुस्तान गुलाम है कांग्रेस आजादी की लड़ाई लड़ रही है गांधी ने एक पोस्टर दिया ' चरखा ' उसे चलानेवाले , उसके उत्पाद को पहननेवाले मान लिए जाते रहे कि यह कांग्रेस है . तुर्रा यह कि कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लग सकता था और कई बार लगा भी लेकिन कांग्रेस का पोस्टर " चरखा ' कभी भी प्रतिबंधित नहीं हुआ क्यों कि यह आजादी की लड़ाई का प्रतीक ही नहीं रहा बल्कि उत्पादन और रोजी का एक जरिया भी रहा . इससे निकला हुआ सूत एक दिन विचार बन गया . किसी भी तरह की गुलामी के खिलाफ एक सार्थक हथियार . इसी चर्चा में हम पहली बार काका ( राजेश खन्ना ) से मिले थे जो दिल्ली से चुनाव लड़ने आये थे . और हम दोस्त बन गए . अब खादी की यात्रा देखिये कांग्रस के साथ साथ चलती है . गांधी तक खादी 'स्वावलंबन ' और स्वरोजगार के साथ साथ स्वाभिमान को स्थापित करती रही हर कांग्रेसी नित्यप्रति चरखा चला रहा और अपने लिए खादी तैयार करता रहा . आहिस्ता अहिस्ता ज्यों ज्यों कांग्रेस आरामतलबी की तरफ बढ़ी और खादी खुद बनाने के बजाय बाजार से आने लगी , इसका भी   चरित्र बदलने लगा . ज्यों ज्यों सत्ता में चमक दमक आने लगी, खादी भी चमकाई जाने लगी . नील टीनोपाल स्टार्च जिसके खिलाफ खादी लड़ कर खड़ी हो रही थी , अन्य सेंथेटिक उत्पादों की गुलाम हो गयी . और अब यह कहा जाने लगा कि खादी बहुत महगा लिबास है . इसको संभालने और अन्य लिबास की तुलना में इसे खड़ा करना बहुत महगा धंधा है . एक नजर में यह सच भी लगता है विशेषकर उनको जो खादी का अर्थशास्त्र नहीं समझ पाए हैं . जब कि खादी अपने मूल रूप में आये तो यह निहायत ही सस्ता और स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक उत्पाद है . आइये खादी का अर्थ शास्त्र देखें -
         खादी उत्पाद का कच्चा माल किसान देता है . कपास उसके खेत में पैदा होता है . अगर किसी को वाकई खादी पहनने है और उसे इसकी महत्ता जाननी है तो उसे कम से कम एक अदद चरखा रखना पड़ेगा . एक परिवार में एक चरखा ही काफी होगा उसके पूरे परिवार को कपड़े की मांग पूरी करने के लिए . घर का प्रतिव्यक्ति यदि चरखे पर आधे घंटे भी बैठता है तो उसके पास किसी भी तरह की कपड़ों की पूर्ति आसानी होती रहेगी . खादी से यदि आप रूई खरीदते हैं तो वह आपको सस्ते में मिलेगी क्यों कि सरकार की तरफ से उसे सब्सीडी मिलती है . इस रूई से बने सूत को अगर आप खादी आश्रम को बेच कर एवज में कपड़ा खरीदेंगे तो उस कपड़े पर इतनी छूट मिलेगी कि आपको वह कपड़ा आपके आधे घंटे के श्रम के बराबर तक हो जाता है . एक तरह से मुफ्त . अब सूत कातने की प्रक्रिया देखिये . सूत कातते समय बैठने की मुद्रा और सूत टूटने न पाए को देखने की एकाग्रता जाने अनजाने आपको पातंजलि के योग के करीब पहुचा देती है . मन सात्विक होता है और आप हिंसक हिस्से से बाहर निकल कर सतो गुण की तरफ बढ़ जाते हैं . दूसरा - यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है .हर मौसम में यह शरीर के तापमान को संतुलित रखता है . गर्मी में ठंढक, ठंढ में गर्मी और बारिश में समानुपाती गुण रखता है . खादी में किसी भी चरम रोग से बचने की अपार क्षमता है . दूसरा कुप्रचार जो खादी को लेकर चलता है कि इसका रखरखाव महगा पड़ता है . यह खुद के ऊपर थोपी गयी एक भ्रान्ति है . खादी को किसी भी सेंथेटिक पदार्थ से बचाया जाना चाहिए इसमें नील टिनोपाल या स्टार्च इसके मूल गुण को खत्म कर देते हैं .खादी में इसके रोयें इस्तरी करने से जल जाते हैं . इसे इस्तरी से कत्तई  बचाना चाहिए . आज सारी दुनिया यह मान चुकी है कि खादी से बेहतर कोए दूसरा वस्त्र नहीं है . लिहाजा आज भारत जितना खादी निर्यात कर रहा है और विदेशी पूंजी अर्जित कर रहा है उसके आंकड़े बहुत दिलचस्प हैं . व्यक्तित्व विकास के लिए खादी से बेहत कोइ दूसरी चीज अब तक नहीं बनी है जो किसी भी तरह की गुलामी से बाहर खींच कर आपको स्वराज में ला खड़ा करें . 

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