Tuesday, July 14, 2015

मुकदमा यूँ है .
७८ का वाकया है . हम अपने बाजार महराज गंज में अपने प्रिय आत्मा राम की दूकान पर बैठे चाय पी रहे थे . इतने में हमारे  परिचित भारत यादव जो उन दिनों ब्लाक उप प्रमुख थे आ गए . उनका चेहरा उतरा  हुआ था . हने पूछा - कोइ बात हुयी है क्या ? वे चुपचाप डबडबाई आँख से जो किस्सा सुनाया वह वह बहुत ही खराब लगा . हुआ यूँ था कि उन दिनों सीमेंट के लिए सरकार से परमिट लेना पड़ता था और भारत जी उसी परमिट के लिए एडियम जौनपुर टी डी  गौड़ से मिले . गौड़ साहब उस दिन डी यम के चार्ज पर थे और ब्लाक का मुआयना करने आये थे . भारत जी ने बताया कि जैसे ही मैंने दरखास्त आगे की गौड़ साहब गर्म हो गए और जनता के सामने बहुत कुछ कहा इतनी बे इज्जती हमारी कभी नहीं हुयी थी . इस बात पर हमे भी गुस्सा आ गया .जो कि आना ही था क्यों कि उस जमाने हर छात्र नेता ऐसी बात पर गुस्सा कर लिया करता था , एवज में जेल जाना पड़ता था . अब शायद ऐसा नहीं होता . हम उठे और सीधे डी यम साहब के सामने जा पहुंचे जो बीडियो की कुर्सी पर बैठे थे . उनके अर्दली ने रोकना चाहा लेकिन हम अंदर पहुँच गए . हमने पहुँचते ही पूछा - आपने एक चुने हुए प्रतिनिधि को गाली दिया ? डी यम साब को गुस्सा आना जरूरी था . एक लफड़झंदूस की यह हिम्मत कि एक आफिसर से ऐसी बात करे ? और यहीं से तू तू मै मै शुरू हो गया . बाहर भीड़ लग गयी . पुलिस आयी और हमें थाने ले गयी . वही गौड़ साहब भी पहुंचे और थाने में भी भीड़ लग गयी . हम दोनों में समझौता हो गया . मौखिक . दरोगा को यह लगा कि भीड़ देख कर शायद  साहेब ने समझौता कर लिया और उन्होंने दो लोगों की जमानत लेकर हमें छोड़ दिया .लेकिन मुकदमा दर्ज हो गया . इस मुक़दमे में कई दिलचस्प मोड़ भी आये . ८२ म हम जब बनारस छोड़ कर दिल्ली आ गए तो सब भूल गए . एक बार हम गाँव गए तो तो पता चला हमारे दोनों जमानत दार राम आश्चर्य यादव और तेज बहादुर सिंह घर पर बैठे मिले . उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ अदालत ने गिरफ्तारी और कुर्की का फरमान जारी कर दिया है . अगर हम इसबार तारीख को नहीं पहुंचे तो हमारे दोनों जमानतदार जेल भेज दिये जांयगे और घर कुर्क हो जायगा . लिहाजा हम गए . अदालत पहुंचे . कई वकील जो हमारे दोस्त रहे ,हमारे साथ अदालत में खड़े हो गए . पेशकार ने हमारी फ़ाइल अदालत के सामने बढ़ा दी . अदालत ने पूछा मुजरिम ? हमारे वकील ने कहा हाजिर है सर . अदालत में मेरी तरफ देखा और बोले तारीख पर तो आना चाहिए . हमने कहा जी आउंगा . मुंसफ साहब मुस्कुराए . ठीक है कौन सी तारीख दे दूँ ? इसी बीच हमारे दोनों जमानतदार बोल उठे - हुजूर हमने मुजरिम हाजिर कर दिया है अब हमारी कुर्की और गिरफ्तारी तो रोक दी जाय और हम अब जमानत नहीं लेंगे . अदालत ने कहा अब आप दोनों बिलकुल बरी हैं जाइए .दोनों खिसक लिए . अदालत उठ गयी . पेशकार को उन्होंने कुछ कहा और हमसे बोले चैंबर में आइये . हम चैंबर में गए . मुंसफ साब हँसे - आपसे मिलना था ,हमे अच्छा लगा जब हमे यह पता चला कि आप का मुकदमा हमारी ही अदालत में है .हम आपके पुराने 'फैन ' हैं . आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव केसमय आये थे . आपने हालैंड  हाल में भाषण किया था , तब हम उसी हास्टल में रहते थे .तब उन्होंने सुझाव दिया जितनी जल्दी हो सके इसे खत्म कराइए . ऐसे मुकदमों में कुछ होता जाता नहीं लेकिन परेशानी तो होती ही है . इसके बाद वह मुकदमा जस का तस पड़ा रह गया और अब फिर हम अदालत बुलाये जा रहे हैं ,बतौर एक भगोड़ा ... 

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