Sunday, July 19, 2015

गिरोह और इस्लाम -१ (औरत के सवाल पर )
..... औरत के सवाल पर गिरोह और इसलाम  एक सोच रखता है .इन दोनों में एक समानता और है कि कि ये दोनों ही कमोबेश अतीत जीवी हैं और उसी अतीत से वर्तमान जीने की कोशिश करते हैं लिहाजा उनका भविष्य अन्धकार में जा कर खड़ा हो जाता है . औरत को दोनों ही इंसान नहीं मानते बल्कि उन्हें अपने बनाए हुए नियम क़ानून में रख कर तंग नजरिये से देखते हैं भारतीय उप महा द्वीप का  मुसलमान बहुत हद तक इन बेहुदिगियों को तोड़ कर आगे बढ़ा है . जब सारी दुनिया का मुसलमान दकियानूसी रवायत के चलते उसे बेवजह सजाएं दे रहा होता है तब भारतीय उपमहाद्वीप में रह रहा मुसलमान ,समाज में बह रहे समतामूलक बयार में अपने आपको ढालना शुरू कर देता है . एक तरफ इस्लाम यह प्रतिबन्ध लगाता है कि कोइ भी औरत गाड़ी नहीं चला सकती , किसी से मोहब्बत नहीं कर सकती , बुर्के से बाहर नहीं आ सकती , नृत्य संगीत या किसी भी तरह की कला को  नहीं अख्तियार कर सकती ,उसी समय भारतीय उपमहाद्वीप कीमहिलायें  अपने बल बूते पर निकल कर बाहर आती हैं और हुकूमत तक पहुँच जाती हैं इन्हें आगे ले जाने में पुरुष को गुरेज नहीं रहा बल्कि उन्होंने भरपूर सहयोग दिया . पाकिस्तान जिसने अपने आपको इस्लाम देश के तंग नजरिये में रख कर मुल्क का खांचा खींचा वहाँ  बेनजीर भुट्टो हुकूमत की अलम्बरदार बनी . पाकिस्तान से छिटक कर बना बँगला देश अपनी सियासत को दो महिलाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया . भारत में कांग्रेस की हुकूमत ने लगातार महिलाओं को आगे किया . यह उसकी रवायत रही . भारतीय उप महा द्वीप का मुसलमान देश , काल और परिस्थिति के अनुरूप अपने आपको बदल लिया और बदल रहा है ,लेकिन अभी और बदलना पड़ेगा पूरे इस्लाम समाज को . यह होगी मुख्य धारा से जुड़ने की नहीं बल्कि मुख्य धारा को गति देने की शुरुआत . अब उनकी सुनिए जो गिरोह हैं . औरत पर जितने फतवे इस्लाम ने जारी किये उसे दो गुनी गति से इस गिरोह ने उसे अपनाया . 'औरत परदे रहे नहीं तो उसके साथ बलात्कार होगा ही ' ' बलात्कार की जिम्मेवार औरत खुद है , उसका अंग प्रदर्शन ही बलात्कारी को उकसाता है ' यही औरत को परदे रहना चाहिए . वो बुर्का कहते हैं ये बुर्के का अनुवाद ' पर्दा ' करके उसे औरतों पर लादने की कोशिश में है . इस्लाम कहता है चार बीबी रख सकते हैं .यह उस वक्त की सामाजिक जरूरत रही जब समाज में जंग जारी था और महिलायें अनाथ हो रही थी, उस कालखंड पर तय किये गए निजाम वक्त के साथ बदलाव मागते हैं . भारतीय उप महाद्वीप का मुसलमान उस निजाम को मानता तो है लेकिन अमल करते समय ,एक औरत एक मर्द ; पर जाकर रुक जाता है . इस महाद्वीप का आंकडा देखा जाय तो समूची इस्लाम आबादी का एक भी फीसद मुसलमान चार बीविवों तक नहीं गया है . अब गिरोह की सुनिए - ' दो नहीं तीन नहीं , पूरे दर्जन दर्जन भर पैदा करो ' इस्लाम जिसे निजाम में बोलता है , गिरोह उसे अपनी भाषा में उतार कर लादना चाहता है . कि औरत परदे में रहे और अंडा दे . मजेदार बात कि पश्चिम की नकारा सोच इन दोनों के प्रति सचेत और सोची समझी साजिश रचता रहता है और वो बार बार ऐसे सवाल खड़ा करेगा  कि  इन दोनों को अपनाने वाले जलील भी होते रहे और उनके सामने झुके भी रहें .

No comments:

Post a Comment