Sunday, July 19, 2015

१८ जुलाई / संस्मरण
काका ; कहीं से  निकल आये जनमों के नाते
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० चंचल
           '.....बाबू मोशाय ! हमसब रंग मंच की कठपुतलिया हैं , हमारी डोर ऊपर वाले के हाथ में है .. कौन कब .....और आनद खामोश हो गया हमेशा के लिए ऋषी दा पर्देपर एक सन्नाटा बुनते हैं .अचानक आनंद ठहाका लगाता है हा हा हा कैमरा टेप रिकार्डर को मिडल शाट में लेता है और टेप टूट जाता है .जानीवाकर जिनकी मौजूद्गी ही दर्शक को हँसा देती रही ,वही जानी वाकर आज सब को रुला गया . फिल्म खत्म होती है दर्शक बाहर निकल रहे है हर एक की आँख गीली है . लोग चुप चाप निकल जाते . १८ जुलाई १२ को वही आनंद हमेशा के लिए विदा ले लेता है ,इसबार परदे पर नहीं असल जिंदगी से . जिसने जहां से सुना वहीं से भागा चला जा रहा है कार्टर रोड मुम्बई . उनका सुपर स्टार जा रहा . ऐसा प्यार और किसी को नहीं मिला इसके गवाह हैं लाखों वे लोग जिन्होंने काका को परदे पर देखा था . इस तरह फ़िल्मी दुनिया का एक अध्याय खत्म हुआ . एक दिन हम वसंत कुञ्ज के उनके आवास पर बैठे थे . बात गांधी पर चल निकली . हमने कहा -काका भाई आपने एटनबरो की गांधी देखी ? बड़े मासूमियत से बोले . पूरी फिल्म नहीं देख पाया हूँ साहिब .अचानक बच्चे की तरह कूदे अभी देखा जाय . साथ में बैठे जुनेजा जी और मामू थोड़ा दुखी लगे . - अच्छा अब आप लोग फिल्म देखिये ,हम लोग चले कुछ काम कर लें . और हम लोग फिल्म देखने बैठ गए . रात में दो बजे तक फिल्म चली . कई बार रोये . छुप कर . अंत में बोले वाकई कितना बड़ा आदमी था साहिब. क्यों मारा संघियों ने ? हमने कहा डर की वजह से . और बात खत्म हो गयी . दूसरे दिन फिर गांधी आ गए . साहिब ! आपको याद है इसी गांधी ने हम दोनों को मिलवाया . हमने एक टुकड़ा और जोड़ा - न मिले होते तो हम आपके नाम पर ब्लैक से टिकट खरीदते होते और आपको जय जय शिवशंकर गाते हुए मुमताज की बांहों में देख कर खुद को राजेश खन्ना समझ रहे होते और और आप दिल्ली की गलियों में वोट के लिए न भटक रहे होते . जो होना होता है वह होता है आज हम उसी काका के साथ बैठ कर गिलास भिडाये पड़े हैं . काका थोड़ी देर चुप रहे . फिर बोले - आप पहले क्यों नहीं मिले साहिब ? हमने हँसते हुए जवाब दिया - वक्त को यह नहीं मंजूर था की आप वक्त के पहले ही बिगड जाय . हम दोनों मिल कर पहली मुलाक़ात को साझा करते रहे . वह आप भी जान लीजिए .
        जिन्हें हम बार बार जुनेजा जी बोल रहे हैं वे बड़े कमाल के आदमी है . पहले फिल्म बितारक थे बाद में उसे छोड़ कर अपना नसिंग होम बनाया . बहुत अच्छा चलता है . उनकी शगल है खाना - खिलाना , दोस्ती और मस्ती . काका को जब राजीव गांधी राजनीति में लाये तो जुनेजा जी ही उनके संरक्षक बने . उनका मकां , उनकी गाड़ी , उनका ड्राइबर , उनका कुक सब कुछ जुनेजा ने दिया . एक दिन जुनेजा जी का फोन आया की आज शाम घर पर पार्टी है भाई साहब आ जाइयेगा . उनके घर पहुंचा तो देखाबहुत भीड़ है . विदेशी ज्यादा दिखे . तमाम दूतावासों के लोग .हम अंदर पहुंचे ही थे की हमे कहा गया आप बेड रूम में चले जाइए . बेड रूम भरा हुआ था . डाक्टर , फिल्म बितारक और कई फ़िल्मी लोग . सन्तर प्वाइंट बने हुए थे संतोषानंद जी . मनोज कुमार की फिल्मो के गाना लेखक . घोषित कांग्रेसी . बाद बाकी अधिक तर संघी ,और सब मिल कर गांधी के सवाल पर संतोषानंद को घेरे हुए थे . हमें देखते ही संतोषानंद ने कहा - आओ भाई अब तुम संभालो .हमने पूछा की क्या मामला है तो पता चला की गांधी महान है यह मुद्दा जेरे बहस है . हमने कहा आपको सियासत समझाने में वक्त लगेगा आइये एक और बात बाताते है - हमने जो बोला उसका लुब्बे लुबाब यह रहा की ' गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है . जिस पर कोइ भी सरकार प्रतिबन्ध लगा ही नहीं सकती , क्यों की वह उत्पादन का जरिया भी है . और वह पोस्टर है चरखा . एक सन्नाटा छा गया . इतने में पीछे से आवाज आयी - साहिब हम देर से आये हैं एक बार फिर इसे बटा देंगे ? सब लोग चौंक गए . यह आवाज थी राजेश खन्ना की . फिर हमे पकड़ कर दूसरे कमरे में लेकर चले गए . यह थी हमारी पहली मुलाक़ात . उसी पहली मुलाक़ात को हम दोनों मिल कर साझा करते रहे और हँसते रहे . काका नयी दल्ली संसदीय सीट से भाजपा उम्मेदवार शत्रुघ्न सिन्हा को हरा कर ससद में पहुचे नरसिंहा राव की सरकार थी और राव साहब काका को .बच्चे की तरश प्यार करते थे . एक रात हमसे बोले की यह जो आपकी अदालत का रजत शर्मा है हमे अदालत ले जाना चाहता है . हमने उन्हें सावधान किया - रजत से हमारे बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन वह एक संघी है और अपनी आदत से बाज नहीं आयेगा . खूब तैयारी के साथ आपको जाना चाहिए . काका का हर काम फिल्म के अनुशासन की तरह होता था .तय हुआ की तीन लोग बैठेंगे . दो हम एक बी आर इशारा जी . बी आर बंबई से आये और ठीक आठ बजे तैयारी शुरू हुयी . हमने कहा आप पर जो निगेटिव चीजे हैं उन पर क्या बोलना है उसे जान समझ लीजिए , तैयारी मुकम्मिल हो गयी . ' आपकी अदालत में यह पहला प्रिग्राम था जब रजत को पसीने आ गए थे . दो तीन सवाल सुनिए . रजत ने पूछा आप अद्वाने के खिलाफ चुनाव लड़े और अडवानी जी जीते .  काका ने रोका . - नहीं ! रजत जी इसे दुरुस्त कर लीजिए . अखबारों ने लिखा राजेश खान्ना चुनाव हारे . अडवानी जीते , किसी ने नहीं लिखा सब ने लिखा राजेश खन्ना चुनाव हारे . . आपको समझाता हूँ, वाटर लू की लड़ाई में नेपोलियन बोनापार्ट हारा . इसे सब जानते हैं जीता कौन था ? आप बता  दीजिए . रजत खामोश . अंततह रजत ने हामी भरी नहीं हमें नहीं मालुम  तब काका ने अपने अंदाज में कहा - हमे भी नहे मालुम . दर्शक दीर्घा में जो जनता बैठी थी  उसने जम कर ताली बजायी . रजत ने एक और विवादित सवाल पूछा - आप पर आरोप है की आप के सम्बन्ध कई महिलाओं से हैं .? काका मुस्कुराए बोले - किसी ने कोइ शिकायत की है ? नहीं न ? हाँ सम्बन्ध हैं . डॉ लोहिया ने कहा है ' वायदाखिलाफी और बलात्कार छोड़ कर औरत और मर्द के सारे रिश्ते जायज हैं . हम तो इसे मानते हैं साहिब . दर्शक दीर्घा से तालियाँ बजती रही . जज की कुर्सी पर बैठी मृणाल पांडे भी उसमे शामिल हो गयी .
      काका की जीवन शैली अपने आपमें कई स्क्रिप्ट है . १८ जुलाई १२ को उनकी मृत्यु के तीन हफ्ते पहले हमारी उनसे आख़िरी मुलाक़ात हुयी . हम बनारस से दिल्ली पहुंचे . अचानक जुनेजा जी का फोन आया . की भाई साहब हमतो अभी बंगलौर में हैं काका के सेक्रेटरी का फोन आया था की दो दिन से उन्होंने कुछ खाया नहीं है नौकरों को और सेक्रेटरी को मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया है . दो रात से सोये भी नहीं हैं ,लगातार पिए जा रहे है . आप दिल्ली में हैं तो जाकर संभाल लीजिए . जुनेजा जी ने काका को भी फोन करके बटा दिया की हम पहुँच रहे हैं . दिन के दो बजे हम जब घर पहुंचे तो दरवाजा खुला था आहत पाते ही बोले आ जाइए . अंदर गया तो उन्होंने उस कुर्सी की तरफ इशारा किया जो हमारे लिए आरक्षित थी . बैठ ही बोले चीयर्स . तब हमने बगल की टेबुल पर देखा गिलास बना कर पहले ही रख चुके थे . दो पेग हुआ तो हमने कहा काका भाई हमे तो भूख लगी हैं कुछ है किचेन में ? क्यों नहीं , आइये देखते हैं बड़ा सा टिफिन बाक्स खुला . हमने एक प्लेट में खाना निकाला और काका से बोला की इसे खाकर देखिये बहुत अच्छा बना है . बच्चे की तरह मुह खोल दिये . हम खिलाते रहे और काका खाते रहे . अचानक हमे पकड़ कर रोने लगे . रोते रहे . फिर हमने उनका मुह धुलाया और लेजाकर बिस्तर पर लिटा दिया . थोड़ी देर में सो गए .
         काका जो बाहर रहे , उसके बरक्स एक और जिंदगी अपने अंदर जीते रहे . यह उनकी अपनी बनायी हुयी तन्हाई थी . अब वह तन्हाई भी साथ छोड़ रही थी .उसे कब तक शराब से भरते . और आखिर १८ जुलाई को वे तमाम तन्हाइयों से बरी होकर नयी दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए . अलबिदा बाबू मोशाय बहुत रुलाओगे .    

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