Wednesday, July 1, 2015

मोहल्ला अस्सी पर इतना बवाल क्यों ?
हिंदी के चर्चित उपन्यासकार ,कहानीकार भाई काशी नाथ सिंह के 'रेखा चित्र ' काशी की अस्सी पर एक फिल्म बनी .उसके रिलीज होने के पहले ही उस पर बवाल शुरू हो गया .और मामला अदालत तक गया . सुना जा रहा है कि अदालत ने उस पर रोक लगा दिया . अदालत और बवालियों से कहना चाहता हूँ कि भाई यह किताब तीन साल से भी ज्यादा हो गयी है बाजार में बिक रही है . उस समय इस पर बवाल क्यों नहीं हुआ ? अदालत ने उसे उस समय क्यों नहीं प्रतिबंधित किया ? ये कला की दो अलग अलग विधाएं हैं उनकी अंतर्धारा एक है . तर्क दिया जा रहा है कि उसमे गालियाँ हैं . तो इनको गालियों से परहेज है ? और जब गालियों से परहेज रहा तो पढ़े क्यों ? और अगर नहीं पढ़े हो तो कैसे मालुम कि इसमें गाली है ? किस समाज में गाली नहीं है ? जिस समाज में गाली नहीं होता वो सदा हुआ समाज होता है , सवाल यह होता है कि वो गालिया जबरदस्ती ठूंसी गयी हैं कि वे सहज रूप से बह रही है. और गाली है क्या ? अगर कोइ कह दे तुम संघी हो ,तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी गाली है क्यों कि हमने यह मान लिया है . कुछ नाम गिना दे रहा हूँ बवाल करनेवाले गिरोहियों को - कालीदास ,राही मासूम रजा , यशपाल और भी बहुत नाम हैं . 'आधा गाँव ' गालियों का खजाना है लेकिन अखरता एक भी जगह नहीं . राज कमल प्रकाशन की तत्कालीन मालकिन शीला संधू ने डॉ राही मासूम रजा को खत लिखा कि डॉ साहब अगर आधा गाँव में गालियाँ न होती तो तो इसे साहित्य अकादमी का पुरष्कार मिल जाता . उसका बहुत ही माकूल जवाब दिया है राही जी ने - पुरष्कार के लिए हम अपने पात्र से संस्कृत का श्लोक तो बुलवा नहीं सकते , ..... य्ह्पाल ने तो अपने उपन्यास में लिखा - ये कांग्रेसी झांट के बाल के बराबर भी नहीं ' .कालिदास का कुमार संभवं पढ़ लो . शिव पार्वती के साथ समभोग का वर्णन है . मिटाओ उसे . खाहुराहो के मूर्तिशिल्प कनपुरिया गाली को भी शर्मिन्दा करते खड़े हैं . लगा दो तोप . चिहुंक रहे हो ' भोसडोके ' बहन चोद.. एकरी बहिन क .. बनारस की गलिया , सड़क , दूकान कहाँ जाओगे गाली हर जगह है . उसका रस लो . स्वाद देखो . चीखो मत यह क्योटो जाएगा . 

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