Friday, June 26, 2015

राज बब्बर दोस्त बहुत अच्छा है /चंचल

साठ के बाद की बात है . हिंदी पट्टी में भाषा आंदोलन जोर पकड़ने लगा था . उस जमाने में सयु स (समाजवादी युवजन सभा ) चर्चा में आ चुकी थी . उत्तर प्रदेश के सचिव थे मुख्तार अनीस लखनऊ के पानदरीबा में जहां समाजवादी पार्टी का दफ्तर था ,वही बैठक चल रही थी . पीछे कहीं दूर हम बैठे थे . देवब्रत मजुमदार , मोहन सिंह , सत्यदेव त्रिपाठी हर्ष वर्धन . राजनाथ शर्मा वगैरह को पहली बार देख रहे थे . हमारे बगल में हमसे भी ज्यादा सिकुड़ा हुआ एक दुबला -पतला युवजन सभाई और भी था . सकुचाते हुए हम दोनों के बीच बात चीत शुरू हुयी . उसने बताया वह टूंडला से है ,और हमने बताया हम जौनपुर से है . वह टूंडला वाला राजबब्बर निकला और जौनपुर वाला यह खादिम जो राज के जन्मदिन के  बहाने समाजवादी आंदोलन को याद कर रहा है . बात आयी गयी हो गयी . हम काशी विश्वविद्यालय चले गए ,राज घुमते -घामते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय . तब भी मुलाक़ात नहीं हुयी . हम भाषा आंदोलन में फिर मिले . और मिलते रहे . एक दिन विवेक उपाध्याय जो कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के ही छात्र रहे और बाद में चल कर बहुत बड़े एक्टर बने ( मुख्यमंत्री , महाभोज आदि में दमदार चरित्र , फिल्मों में - जोनूं में मलंग , लगान में वह गंवई जो बाल को फेकने के लियी हाथ को चकर घिन्नी की तरह घुमाता है ) जौनपुर आये हुए थे ,उन्होंने सूचना दी कि राज ने अपने ही निदेशक नादिरा जी से पहले प्यार किया ,फिर बिआह कर लिया . हमने बधाई सन्देश भेजा जिसका जवाब अभी तक नहीं आया ,गो कि  इन दोनों ने मिल कर दो बच्चे भी पैदा किये . जूही और गोर्की . और दोनों ही राज से ज्यादा समझदार और प्यारे . बहर हाल . एक दिन बंबई में था तो पता चला राज ने स्मिता पाटिल से शादी कर ली है . बाकी जो हुआ वह सब को मालुम है . स्मिता की वजह से राज को जो सदमा पहुंचा .बहरहाल यह राज हमारा दोस्त है . कुछ मायने यह हमे लांघ जाता है मसलन अकल में शक्ल में . काम की गंभीरता , लगन और रिश्तों का निर्वहन . राज में जो खूबिया हैं ,हम उसके बरक्स हैं , इस वजह से कई बार राज से चिढता भी हूँ . आज जब राज का फोन आया कि क्या हुआ . ? हुआ यह था कि हमने कईबार फोन मिलाया मिल नहीं रहा था तो छोड़ दिया . फिर उधर से फोन आया कि क्या हुआ ? हमने कहा एक बच्चा पैदा हुआ है उसका जन्मदिन है फिर हम दोनों काफी देर तक गपियाते रहे . सियासत में राज के साठ थोड़ी गडबडी हुयी . यह कमबख्त हिंदी पट्टी में न पैदा हुआ होता ,और अगर कही दक्षिण में होता तो कम से कम सूबे का मुख्यमंत्री तो हुआ ही होता . राजनीति वालों की दिक्कत क्या है कि वे एक्टर पसंद तो करते हैं लेकिन मौक़ा नहीं देना चाहते .राज के साठ यह कई बार हुआ है . एक घटना सुनाऊं .वीपी सिंह जब कांग्रस से छटके तो उन्हें कंधे पर बैठाने वाले राज ही रहे. और जब वी पी सिंह एलाहाबाद से चुनाव लड़ने आये तो उन्कामं कत्तई नहीं था कि उनका प्रचार एक ऐक्टर करे .

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