Tuesday, June 23, 2015

 बात बतकही
भाजपा सियाह खाने का ऊंट है /चंचल
     '........ अगर आप शतरंज के खेल  से वाकिफ नहीं हैं तो सियासत में मत आइये , जनहित के और भी कई काम हैं वहीं कहीं अपने आपको फंसा लीजिए . मसलन मिट्टी ,गिट्टी,लोहा या कोयला  और बालू की खदान में जुट जाइए और फिर आइये सियासत में . एक दिन हम सूबों की सियासत देख रहे थे . जनाब लोग जो हमारी रहबरी करते है ,मोटी रकम उठाते हैं और हमारे सवालों को सूबे की पंचाईत  में उठाने के जिम्मेवारी लेते हैं वो अतिरिक्त समय में और विकास के लिए ठेकेदारी भी करते हैं .कहते हुए भीखइ मास्टर ने चुप्पी साध ली क्यों कि इस मौजू विषय पर बोलनेवाले कई और मुह रहे जो खुले पड़े है बस मौक़ा चाहिए . यह न सांसद है विधान सभा यह गाँव की सांसद है जो सलीके से चलती है और किसी को अपनी वाजिब बात्काहने का मौक़ा देती है यह बात दीगर है कि यह बहस तभी तक जारी रहती है जब तक के लाल साहेब चाय न परोस दें . बाज दफे तो लाल साहेब जान बूझ कर चाय छानने में देर करते हैं कि चाय पीनेवालों का कोरम तो पूरा हो जाय . आज भी ऐसा ही रहा सो लाल साहेब को खुद सवाल उठाना पड़ा - ये बताओ पंचो ! यह राजनीति क्या होती है ? इस एक सवाल ने सब को घेर लिया . लेकिन मद्दू पत्रकार ( पूरा नाम है महंथ दुबे पुराने जमाने के है . उन दिनों 'दिनमान ' सीधे सवालों की कठिन पत्रिका मानी जाती थी और उसको पढ़नेवाले पत्रकार लोग ज्यादा होते थे एक दिन उन्होंने देखा कि पत्रकार चाहे तो अपना नाम सिकोड़ ले और विषय को भरपूर जगह दे दे इसी में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपना नाम स द स लिखा तो महंथ दुबे भी मदू हो गए जो कालान्तर में मद्दू के नाम से जाने गए ) को कुछ न कुछ तो समझाना ही था - राजनीति ,राजनीति होती है . इसमें लोंगो का होना जरूरी होता है यह बगैर आदमी के नहीं चल सकती चुंकी इसे चलना पड़ता हैतो लंबे समय तक यह पैदल चली . इस राजनीति को गांधी , नेहरु , डॉ लोहिया , अच्युत पटवर्धन , आचार्य नरेंद्र देव जैसे लोग पैडल चले या सरकार की गाड़ी से चले ,टिकस लेकर . बाद के लोगों ने रवायत बदली और अपनी गाड़ी से अपनी सेना के साथ चलने लगे .आज के जमाने राजनीति संदूक और बन्दूक के साथ चलती है . इसे कहते हैं राजनीति . समझे . ? लम्मरदार ने टोका - एकबार हमने डॉ लोहिया को सुना था जब वे पंडित नेहरु के खिलाफ फूलपुर से चुनाव लड़ रहे थे बोले थे राजनीति लोगों को बेहतर जिंदगी बसर करने का सलीका है . मद्दू को राहत मिली - चलिए इसे भी मान लेतेहैं . तो यह हुआ राजनीति . यह राजनीति तीन तरह की होती है .  एक - राजनीतिक .दो - गैर राजनीतिक .तीन राजनीति विरोधी . इन तीनो में एक बात साफ़ होती है कि एक तरह की सोच रखनेवाले लोग एक गिरोह बनाते हैं . यह गिरोह अपने काम काज की वजह से तीन खांचे खड़ा होता है . आज हम इस तीसरे गिरोह जिसे हम संघ के नाम से जानते आये है की बात करेंगे . और चर्चा इस गिरोह पर चल पडी . - सुनो पंचो ! एक होते हैं जो आगे देखू होते हैं ,असल में ये ही राजनीतिक होते है . जैसे कांग्रस और उस घर से अलगौझी करके बाहर निकले समाजवादी . दूसरे - अगल बगल देखू . चीं में क्या हो रहा है रूस में क्या हो रहा है उसके मुताबिक़ चलते फिरते हैं इसमें साम्यवादी आते है . और तीसरे हैं जो पीछे देखते है . इन्हें देखो तो ये बहुत मजेदार गिरोह है . अतीत जीवी हैं . बाप घी खाए रहा पहुंचा सूँघो के तर्ज पर चलता है . देश में दूध और घी की नदिया बहती थी , हम नदियों में घी बनाने की तरकीब बताएँगे . पहले जमींदारी वापस लाओ . मंदिर बनाओ . घर तो बनते रहेंगे . यह एक गोत्र का देश रहा ,इसे उसी गोत्र के पास भेजो . एक गोत्र , एक झंडा , एक नेता . बस एक और एक . इसके अलावा सब लफ्फाजी . और अगर लफ्फाजी ही करनी है तो उतरो मैदान में . हम साबित करदेंगे कि  दुनिया में हमसे बड़ा कोइ लफ्फाज नहीं . तक्षशिला पाकिस्तान में नहीं नालंदा के बगल बिहार में सुशील मोदी के घर में है . देखने के लिए आँख चाहिए . तालियों की गडगडाहट बता रही है हम कितने बलवान थे और फिर होंगे . भूख , महगाई , काला धन ? कौन चीख रहा है ? बंद रखो जुबान . हम बताते हैं . भूख लगे तो योगा करो . किसने टोंका ?  योग पुरानी चीज है , उसमे 'आ ' लगाकर चलाओ पश्चिम में में खूब चलेगा . तुम पवनमुक्त आसान करो पूरे जोर से . हम अपने पड़ोसी को बताएँगे कि आँख मत दिखाओ जब इस आसन में इतनी आवाज है तो ज़रा तोप के बारे में अंदाज लगाओ . काला धन ? इसका जवाब ऐसे वक्त पर देने के लिए ब कायदे कई रफूगर होते है मसलन जेटली साब ! आप बोलिए हमे देश में बोलने की मोहलत नहीं है . और वो एलान रफू हो गया - किस सरकार ने कहा था हम काला धन लायेंगे ? वाकई वो बयां तो सरकार बनाने के लिए था , बनने कके बाद थोड़े ही .इसे कहते हैं जुमला . भारतीय जुमला पार्टी . समझे कि नहीं ? नवल उपधिया जो इस सांसद के स्थायी सदस्य है ऐसे सुन रहे थे ,जैसे सत्नारायण  की कथा . आखीर में बोले - हे देवता !इ सब कब तक झेलना पड़ेगा ? यह तुम्हारी अपनी खाल की मोटाई पर है ,, वरना तुम चाहो तो कल बदल सकता है . डॉ लोहिया को सुना है न ? एक बार फिर सुन लो - ज़िंदा कौम पांच साल तक इन्तजार नहीं करती .

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