Tuesday, June 23, 2015

 आपातकाल ,आफतकाल
चंचल
       आपातकाल लगा  २५ जून १९७५ को और हम गिरफ्तार हो गए .ठीक उसी तरह जैसे जे पी . चंद्रशेखर , मोहन धरिया , मधुलिमये समेत वे तमाम नेता जो श्रीमती  इंदिरा गांधी का ' तख्ता पलट ' रहे थे . इनमे समाजवादी , संघी , अकाली दल वगैरह शामिल रहे . १८ जनवरी १९७७ को श्रीमती इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि छठी लोक सभा का चुनाव मार्च में होगा . और हम लोग मार्च में जेल से छूट गए . इतनी सी बात है इसे कहते हैं आपातकाल . इमरजेंसी . क्यों लगा आपातकाल ? इसे एक सूत्र में कहा जाय तो देश की आजादी के बाद यह पहली लड़ाई थी जो सत्ता शक्ति और जनशक्ति के बीच हो रही थी .जनतंत्र की खूबी है कि वह इन दोनों ,सत्ताशक्ति और जन शक्ति के तनाव पर ज़िंदा रहती है . अगर जनशक्ति जीतती है तो अराजकता आती है और अगर सत्ताशक्ति जीतती है तो तानाशाही आती है . यहाँ दोनों जीते हैं . पहले जन जीता , फिर सत्ता जीती . इस जन शक्ति की शुरुआत की कहानी बहुत मजेदार है . इसके लिए एक विषयान्तर ले रहा हूँ .
      .७७ में जेल से छूट  कर आया था , उन दिनों एक पत्रिका निकलती थी 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान ' मनोहर श्याम जोशी इसके संपादक थे . उनके कमरे में गया तो वहा हमारे मित्र रमेश दीक्षित पहले से ही मौजूद थे . देखते ही जोशी जी ने सवाल पूछा - कैसी रही जेल यात्रा ? हमने कहा सुखद . दूसरा सवाल था - आपातकाल से लड़ कर आये हो क्या अनुभव् रहा ? हम आपातकाल से कहाँ लड़े ? हम तो समोसा की लड़ाई में लगे रहे .जोशी जी चौंके . - समोसा ?हमने कहा जी हाँ . आपातकाल तो २५ जून को लगा और सारे नेता उसी रात पकड़ लिए गए तो लड़ा कौन ? अकेले  जार्ज फर्नांडीस और उनके २५ साथी थे जो आपातकाल से लड़े हैं बाद बाकी सब समोसावाले हैं . फिर पूरी बात हुयी . उन्होंने कहा इसे लिख दो . हमने हामी भर ली और अक्सर जो हम जैसे कई अन्य उनके साथ करते आये रहे वही किया - पहले कुछ नगद दे दीजिए . ( जोशी जी के साथ हम लोगों के ऐसे ही रिश्ते रहे . जब भी हम और हमारे जैसे उनके दफ्तर में पहुँचते जोशी जी जान जाते कि क्यों आया है . कई बार तो बगैर कुछ बात हुए या बगैर मागे जेब में हाथ दाल कर नोट निकालते और बढ़ा देते - लो और जाओ अभी लिखना है . जोशी जी मुस्कुराए -जिंदगी भर समाजवादी ही बने रहोगे ?बात वही खत्म नहीं हुयी . यह बात हमने मधुजी को बता दिया कल जेल पर लिखने जा रहा हूँ.मधुजी से दो बातों के लिए डाट खाया एक - बोले अभी पार्टी बनी नहीं और लगे तोड़ने का उपक्रम करने ? (उन्ही मालुम था जेल में बंद संघी किस तरह रहे हैं ) दूसरा - तुम किस कांग्रेसी के सामने क्रांतिकारी बनोगे ? सब के सब जेल काटे हुए हैं उसी में इनका परिवार तक बर्बाद हो गया .और लिखना बंद हो गया . इसकी जगह पर हमने जोशी जी को ' .... और  टिकट बंट गया ' दिया और छपा . जो उसवक्त नहे लिख पाया था , आज उसी को याद कर रहाहूँ .
     ७३ में अहमदाबाद के छात्रावासों में मिलनेवाला समोसा व अन्य खाद्य सामग्री अचानक महगी हो गयी वजह थी कि मूंगफली का तेल अचानक महगा हो गया था . इसके खिलाफ छात्रों ने आंदोलन शुरू किया . मुख्यमंत्री थे चिमन भाई पटेल और छात्र आदोलन का नेतृत्व कर रहे थे हमारे मित्र उमाकांत माकड और मनीषी जानी . आंदोलन बढ़ता गया . छात्रों ने विधायको से इस्तीफे लिए . उनके घरों को घेर कर इस्तीफे दिल्वाये . नतीजा हुआ कि विधान सभा में कोरम के अभाव में स्पीकर ने विधान सभा भंग कर चुनाव कराये जाने की माग की जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया . जून ७५ में गुजरात का चुनाव हुआ और कांग्रेस पराजित हुयी . बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री बने . कांग्रेस को दूसरा झटका लगा १२ जून को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया और छ साल तक चुनाव से वंचित रहने का फैसला सुनाया . इसी बीच रेल हड़ताल हुयी जिसने कांग्रेस सरकार की चूलें हिला दी . जार्ज फर्नांडिस इसके हीरो थे . अन्तः आंतरिक सुरक्षा का हवाला देते हुए इंदिरा सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी .और आंदोलन से जुड़े तमाम नेताओं को रात में ही गिरफ्तार कर लिया गया .इस में कांग्रस के वे लोग भी शामिल रहे समाजवादी भूमि से आये थे और जिन्होंने १९६९ ,नेकीराम नगर कांग्रस में जब श्रीमती इंदिरा गांधी कांग्रस से निकाली गयी तोयही समाजवादी लोग थे .इनमे चन्द्र शेखर . मोहन धारिया , कृष्णकांत . अर्जुन अरोड़ा और रामधन प्रमुख थे .
      जेल यात्रा का विस्तार बहुत जगह लेगा लेकिन संक्षेप में - जेल को समाजवादियों और अकालियों ने हँसते हँसते काटा क्यों कि ये आदी रहे . संघ के लिए दिक्कत हुयी क्यों कि उनका वर्गीय चरित्र जेल काटने का नहीं है लिहाजा उन्होंने माफी नामा लिखा कि संघ को जेल के बाहर किया जाय और संघ के गण लोग इंदिरा गांधी के बीस सूत्रीय और संजय के छाए सूत्रीय कार्यक्रम को आगे बढायेंगे . लेकिन श्रीमती गांधी ने उनके माफीनामे पर कोइ प्रतिक्रया भी भी दी . सच कहा जाय तो महज दो लोग आपात से लड़े है. एक जार्ज फर्नांडिस जिसे इतिहास में बडौदा डायनामाईट के नाम से जाना जाता है और दूसरे अकाली दल के लोग . जत्थे में निकलते थे और आपातकाल के विरोध में नारा लगाते थे , गिरफ्तारी देते थे . 

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