Friday, June 26, 2015

कल बड़ी बक बक हुयी . इमरजेंसी को लेकर . एक चैनल ने फोन किया - आप इमरजेंसी में जेल गए थे ?
- जी गया नहीं था , ले जाया गया था .
- कैसी रही जेल यात्रा ?
- सुखद रही
- यातना दी गयी थी ?
- जी नहीं .
- क्या हुआ था ?
- सेवा हुयी थी बिलकुल दामाद की तरह
- क्या बात कर रहे हैं , सब जानते हैं सारे नागरिक अधिकार बंद थे प्रेस पर प्रतिबन्ध था . लोग बधिया किये जा रहे थे ..
- यह सब कहाँ हुआ था भाई ?
- इसी देश में .
- हम इस देश में कहाँ थे ? हम तो जेल देश में थे . वहाँ कोइ नागरिक अधिकार नहीं बंद था . गरियाते हुए गए थे ,दिन भर अपना नागरिक अधिकार भोगते ,कोइ रोक टोक नहीं थी , अंडा से सुबह का जलपान करते शाका हारी मंशा हारी भोजन उठाते दंड बैठक करते बैडमिन्टन खेलते संघी जब रोता तो उसे दिलासा देते . और भी बहुत कुछ . ताला जंगला लालटेन सब ठीक रहा . चौवन किलो में गए थे अट्ठावन में बाहर निकले भाई तुमने गलत जगह नंबर मिला लिया है इमरजेंसी पर कार्यक्रम देना है तो उनसे पूछो जिन्होंने इमरजेंसी देखा था , जिया था .यह वो लोग हैं जो बाहर थे ,धूमिल को सुनिए -
      लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो , उस घोड़े से पूछो
     जिसके मुह में लगाम है
लेकिन एक बात बताओ ये चालीस साल बाद क्यों चीख रहे हो इमरजेंसी ?
- नयी पीढ़ी को बताने के लिए .
- परले दर्जे के मूर्ख हो . जिस पीढ़ी ने नागरिक अधिकार को लंगडाते हुए तक न देखा हो , जिसने बधिया होना जाना ही न हो , जिसे  बात करने पर पाबंदी तक की जानकारी न हो उसे क्या बताओगे ? वह चैनल बदल कर बिद्याबालन के पास चला जायगा .पत्रकारिता की पूंछ उखाडोगे तो पिछवाड़ा खंडहड हो जायगा . बात माफी नामा पर करो कि वक्त आता है तो किस तरह झुक कर सलाम किया जाता है .

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