Thursday, September 19, 2013

छात्र की पहचान बने ....
     अफलू ने अपने एक पोस्ट में दो बातो का जिक्र किया है . एक -हर  शिक्षण संस्थान में खुली भर्ती .और दूसरा उसकी 'पहचान ' . अफलू ने ७७ के अपने कार्यकाल (अध्यक्ष छात्रसंघ काशी विश्वविद्यालय ) में किये गए कार्यों के लिए हमारी पीठ ठोंकी है .उसपर कुछ सवाल भी उठे हैं ,उसे बहस के लिए खोलना ज्यादा जरूरी है . डॉ लोहिया जिनके हम अनुआयी रहे हैं की एक परिकल्पना थी -अगर कोइ लड़का या लड़की आगे पढ़ना चाहता /चाहती है तो उसे दाखिला मिलना चाहिए . इसी परिकल्पना पर 'स यू स ' ने एक नारा दिया था -खुला दाखिला सस्ती शिक्षा , लोकतंत्र की यही परिक्षा ' .७७ में जब हम जेल से छूट कर बाहर आये तो हमें देबूदा ( काशी विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और हमलोगों के अभिभावक ) ने चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतार दिया . हम उतर भीगए . हमारा मुकाबला संघी से था . वह धन और बल दोनों से मजबूत था . लेकिन अगर कहीं से कमजोर था तो बस 'बुद्धि 'से .( यह स्थापना हमारी नहीं है , हमें इतनी छूट मिलती भी नहीं कि हम अपने अग्रज के बारे ऐसा कहें . यह परिपाटी अब तक चली आ रही है . कई संघी आज भी फेसबुक पर हमारी टिप्पणी से बौखला तो जाते हैं लेकिन वो उस परिपाटी का निर्वहन करते है जो कभी विश्वविद्यालय से जुड़े रहे .यह सथापना राजनीति विभाग के विभागाधाक्ष प्रोफ़ेसर हरिहर नाथ त्रिपाठी की थी ) चुनांचे हमने नयी तरकीब निकाली . ७२ में हमने राजाराम छात्रावास में जे पी की एक मीटिंग कराई थी जिसमे उन्होंने कहा था -जनतंत्र की रक्षा करनी है तो चुनाव को सस्ता करो ' इसे हमने जस का तस ले उठा लिया . फिर हमने कहा कि इस चुनाव में हम पोस्टर नहीं छापायेंगे . देबू दा ने पूछा - तो ? हमने कहा हमारे विभाग ( कालेज आफ फाइन आर्ट्स ) के लड़के और लड़किया हाथ से पोस्टर बनाएंगे और उसे प्रदर्शित करेंगे . वही हुआ . एक दिन लड़कियों ने हमें घेर लिया -आप जीत गए तो हमें क्या मिलेगा ? हमने मजाक किया - एक तो मै मिलूँगा कि विश्वविद्यालय की सबसे छोटी फैकल्टी का लड़का उड़ कुर्सी तक गया और दूसरा हम इस विश्वविद्यालय में स्थाई रूप से एक कोना दे कर जांएगें जिसे आप याद रखेंगी . जीत के बाद 'मधुबन ' का निर्माण जिसेफाइन आर्ट्स  के लडको और लड़कियों ने अपनी  कला से सजाया आज भी फलफूल रहा है . हमें खुशी है कि इस साल विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की है .कुलपति लालजी सिंह को बधाई . 
       अब आयी बात खुले दाखिला की . उसे भी हमने प्रशासन से हासिल कर लिया ज्यादा जद्दो जेहद नहीं करनी पडी . कुलपति अनंत रमण साहब मानते गए . हमारा तर्क था कि 'अगर सरकार की तरफ से ३३ फीसद अंक पास होने के लिए काफी है तो प्रवेश के लिए क्यों ना काफी है ? दूसरा हमारे अध्यापक अगर 'घोड़ों' को ही घोड़ा बनाएंगे तो वे इतनी मोटी राकन क्यों ले रहे हैं . यह उनकी जिम्मेवारी है कि बच्चे को हुनर मंद बनाए . अगर कोइ अध्यापक ऐसा नहीं कर सकता तो वह अपना नाम सार्वजनिक कर दे . और हम जीत गए . इस तरह विश्वविद्यालय ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया . शर कई कालेज बंद होने के कगार पर आ लगे . उस सने संघियों ने हम पर आरोप लगा था कि हम विश्वविद्यालय की गक्रिमा बिगाड़ रहे हैं .हम इसे  a.b.c.d ( आजमगढ़ ,बलिया . छपरा ,देवरिया ) बना दे रहे हैं . दूसरा प्रयोग विश्विद्याल ने देखा - लडकियां कैद के बाहर हो गयी . 
     चुनाव के समय एक दिन हम ज्योतिकुंज ( महिला छात्रावास ) में बोलने पहुचे . उस समय हमारे प्रतिद्वंदी संघी भाई बोल रहे थे . हमें देखते ही उनका सुर बदल गया और कुछ ज्यादा ही उत्तेजित आवाज में उन्होंने ऐलान किया कि अगर मै जीता तो कल से किसी लड़की को कोइ लड़का छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगा . लड़कियों ने जोरदार ताली मारी . इसी के बाद हमें बोलना था . हमने शुरुआत ही आक्रामक की , - किसी लड़की की सुरक्षा की गारंटी केवल दो है जो ले सकता है .एक गुंडा और दूसरा पुलिस हम दोनों ही नहीं हैं लेकिन दावे के साथ इतना कह सकते हैं कि हम आपके मोहब्बत के हिफाजत की गारंटी लेंगे . यह अप्रत्यासित था ,एक सन्नाटा छा गया . अचानक कोने से एक लड़की ने निहायत ही मस्ती के मूड में बालो को को पीछे झटक कर ताली बजानी शुरू की . उसकी गर्दन नीचे झुकी थी और उसके द्दोनो हाथ ऊपर थे . यह 'कान्फीडेंस ' मै पहलीबार देख रहा था . पूरा हाल तालियों से गूँज गया . मेरा दोस्त जो मेरे खिलाफ लड़ रहा था ,हमें हाथ के इशारे से कुछ बोला और आगे निकल गया . हमने बात आगे बढाई - अगर कल को हम छात्र संघ पर गए तो तो आप उसी वक्त 'जेल के बाहर हो जायंगी .( उस समय तक विश्वविद्यालय का नियम था कि अगर कोइ लड़की बाहर निकल रही है तो उसे रजिस्टर पर लिखना पड़ता था कि वह किसके साथ बाहर जा रही है ? ) हमने कहा कि जीत की घोषणा को आप यह मान लेना कि वह रजिस्टर अब जला दिया गया है . अब आप झूठ नहीं बोलेंगी क्यों कि अब आपसे कोइ पूछेगा नहीं . अगर लड़के आजादी का अर्थ जानते हैं तो आपको भी य७ह हक है कि आपाजादी से जियें . 
   बहर हाल हम जीते और वायदे को निभाया . डॉ काशी नाथ ने हँस में जब हमारे बारे में लिखा तो एक मजेदार जुमला लिखा यह पहला अध्यक्ष था जो केवल छात्रों का नहीं था ,छात्राओं का भी था . 
   अफलू ने 'अलग पहचान की बात ' कही है . देश के जितने भी विश्वविद्यालय हैं उनके छात्र संघ ने किसी 'सकारात्मक बदलाव ' की डगर न तो देख पाए न ही दिखा पाए . काशी विश्वविद्यालय इस मायने में अकेला है जो बापू के साथ है . भाषा आंदोलन का हीरो देवब्रत मजुमदार . विश्वविद्यालय से अनिवार्य हाजिरी समाप्त , भाई मार्कंडेय सिंह काशी विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष की देंन . यह खादिम तो सब का शिष्य रहा है . (ऊपर जो चित्र है वह मधुबन के निर्माण के समय का है . लड़के और लड़किया पत्थर को तोस कर आकृति दे रहे हैं ) शुक्रिया अफलू .शुक्रिया प्रमोद जोशी जी , और शुक्रिया बिपेंद्र जी . आप लोगो ने उकसाया हमें बता दिया . यथास्थितवादी संघी और सकारात्मक परिवर्तनवादी स्थितिया जस की तस ही नहीं हैं बल्की आज वे वे ज्यादा आक्रामक हो गए हैं . इस लिए हमने वाकयात को बीच में डाला .  
      

2 comments:

  1. वाह दादा , मधुबन में हम सब ने बहुत समय बिताया है .....ये भी आपकी ही भेंट है बीएच.यू. को ... ये जान कर बहुत अच्छा लगा ....और अब वो पर्यटन स्थल बन रहा है ये जान कर तो बड़ा ही गर्व महसूस हुआ .....कि कभी अतीत में हम उसका हिस्सा रहे हैं .......

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