Wednesday, September 18, 2013

गांधी और कांग्रेस .... 
अफलू /अफलातून देसाई . गांधी 'परिवार ' से ताअल्लुक रखते हैं . बापू के साथ एक परिवार साये की तरह बापू के साथ रहा है . प्यारेलाल , फिर महादेव देसाई जिनके सुपुत्र हैं प्रसिद्ध गांधीवादी नारायण देसाई . इस देसाई परिवार के दो सदस्य जो दोनों नारायण जी के सुपुत्र हैं हमारे मित्र है . नाचिकेता देसाई और यह अफलू . इन दिनों हमें कांग्रेस और गांधी कीओर चलते देख कर अफलू ने एक जुमला ठोंका है . कांग्रेस और गांधी ? यह आलेख उसी जिरह का एक हिस्सा है . - लेखक 
     गांधी और कांग्रस के रिश्ते पर जब सवाल उठता है तो वह एक कालखंड पर आकर टिक जाता है . और वह कालखंड है आजादी का आगाज और हिंद-पाक बटवारे का घटना क्रम . इसके पहले गांधी ही कांग्रेस रहे इसमें दो राय नहीं . लेकिन 'चर्चिल ' के  बटवारे की चाल ने एक साथ कई गुल खिलाए . -दुनिया की यह पहली घटना दर्ज होने जा रही थी कि भारत एक ऐसी लड़ाई लड़ कर आजादी हासिल की है जिसमे कोइ खून खराबा नहीं हुआ . एक ऐसी जंग जिसमे दोनों आमने सामने की ताकते एक दूसरे को दिल से शुक्रिया अदा करके अलग हो जाते . लेकिन यह चर्चिल को नहीं भा रहा था . चर्चिल व्यक्तिगत तौर पर गांघी जी से खफा था और चाहता था कि अहिंसा के इस पुजारी की आख़िरी ख्वाहिस को खून से रहगा जाय . जिसमे उनकी कौम (अंग्रेज ) बेदाग़ बच जायं और ये हिन्दुस्तानी आपस में ही लड़ मरें. इस खेल में चर्चिल सफल रहा . उसने एक ऐसे शख्स को 'खलनायक बनाया जो मुसलमान तो कत्तई नहीं था ,हाँ आधा अंग्रेज जरूर था . वह थे जिन्ना . जिन्ना को अंग्रेस सेअलग करने के लिए और गांधी को कमतर आकने लिए सियासत में पहलीबार 'लिबास' का खेल खेला गया . गांधी को 'अधनंगा फ़कीर ' कहने का मतलब केवल गांधी उपहास करना भर नहीं था . जिन्ना के लिबास को मान्यता भी देना था . और जिन्ना चर्चिल के चक्रव्यूह में फसते चले गए .  और एक दिन 'अनायास ' जिन्ना पाकिस्तान की मांग के सबसे बड़े नेता हो गए जब कि सच्चाई इसके बरक्स है . जिन्ना अदरूनी तौर पर विभाजन के पक्षधर नहीं थे ,लेकिन उनके गले में पाकिस्तान ऐसे फसा कि वे न तो उसे निगल सकते थे ,नहीं उगल सकते थे . ( कृपया लार्ड मौन्त्बेतन के दस्तावेजों को देखें ) .इतिहास चक्र देखिये जाजादी की लड़ाई के दो महत्वपूर्ण स्तंभ गांधी और जिन्ना दोनों अकेले हो गए थे . जिन्ना की उल जलूल बातों से लार्ड माउंट बेतन को झल्लाहट होने लगी थी . जिन्ना ने कहा हम उस पाकिस्तान को लेकर क्या करेंगे जिसमे न कल्कत्ता न बंबई . एक हरकत और की जिन्ना ने उन्होंने प्रस्ताव रखाकी कि पूर्वी पाकिस्तान और और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच सत्तर मील चौड़ा रास्ता दिया जाय . और इधर -
      बगैर गांधी को बताए कांग्रेस ने बटवारे का फैसला कर लिया था . कांग्रेस कार्य कारिणी में पहली बार यह मतभेद उभर कर सामने आया जब गांधी अकेले हो गए उनके साथ कांग्रेस के सामाजवादी लोग ही रह गए थे इनमे डॉ लोहिया , जेपी आचार्य नरेन्द्रदेव ,अशोक मेहता प्रमुख थे . लेकिन गांधी उस विष को भी पी गए . और कांग्रेस को अपनाए रखा . कांग्रेस की मजबूरी थी वह बापू को छोड़ नहीं सकती थी . आजादी के बाद कांग्रेस और गांधी के बीच कई मुद्दों पर असहमति थी . उसमे गाँव ' एक असल मुद्दा था . तब तक नेहरू सोवियत रूस के माडल से प्रभावित थे और उसी ढर्रे पर चलना चाहते थे जब कि गांधी जी का कहना था कि जब तक गाँव विकसित नहीं होगें देश मजबूत हो ही नहीं सकता . गांधी की ह्त्या के बाद नेहरू ने इसे स्वीकार किया और ग्रामोन्मुखी नीतियों की तरफ बढे . पंचायती राज , विकेन्द्रीकरण आदि को खुल कर स्वीकारा . आज तक कांग्रेस गांधी के उसी रास्ते पर चल रही है . . 

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