Sunday, September 8, 2013

दंगा तो होगा ही .........
.......अन्ना दिल्ली में था . ( हम थे भी लिख सकते थे , लेकिन जानबूझ कर 'था' लिख रहा हूँ . क्यों कि उसने संघ के उकसावे पर बहुत बड़ा पाप किया है . सड़क की उर्ज्वा को कम से कम तीस साल के लिए गोबर कर दिया है . जनता का यकीन 'सड़क ' से उठ गया है .जम्हूरी निजाम में संसद की ताकत सड़क से ही मापी जाती है .उसने सड़क को तोड़ा है जनता के अरमान को तोड़ा है ) आंदोलन गति के साथ आगे बढ़ रहा था .हम घुमते घामते हिन्दुस्तान टाइम्स के सामने पहुँच गए . सोचा अपने दोस्त शशि शेखर से मिल लूं . ( संपादक हिन्दुस्तान हिन्दी ) दफ्तर में गुसा तो लगा कि साउथ ब्लाक में जाना हो रहा है . सुरक्षा चाक चौबंद . मुलाहिजा हुआ . ऊपर गया फिर रोका गया . हम बैठे बैठे सोचते रहे भाई पहले तो ऐसे नहीं होता था ( गलती हमारी थी , बहुत दिनों बाद हम इस दफ्तर में जा रहे थे और उस जमाने में जाया करता था जब दहशतगर्दों का खौफ नहीं था . आज इन दफ्तरों की मजबूरी है ) मनोहर श्याम जोशी मृणाल पांडे .शीला झुनझुनवाल से मिलने ( झूठ बोल रहा हूँ ,कुछ लिखने और बनाने के लिए बे धड़क दफ्तर में घुसते थे और कहना नहीं पड़ता था काम तुरत मिल जाता था . जानते सब थे कि इस चिलचिलाती धूप में . हड्डी तोड़ ठंढ में , मूसलाधार बारिश में कोइ किसी से केवल 'मिलने ' नहीं आया है . एक वाकया मजेदार है तब साप्ताहिक हिन्दुस्तान चपटा था उसके संपादक थे मनोहर श्याम जोशी . कठिन गर्मी के दिन थे पसीने से तरबतर दफ्तर पहुंचा . बाहर ही केजरीवाल साहेब मिल गए मुस्कुराए बोले आज तुम लोगो की कोइ विशेष बैठक है ,अंदर तुम्हारा दोस्त रमेश दीक्षित भी है . मै कुछ जवाब दिए ही जोशी जी के कमरे में घुस गया . जोशी जी मुस्कुराए - बोलो कैसे चले ? हमने कहा बस ऐसे ही मिलने आ गया . जोशी जी गंभीर हो गए .घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया और उससे बोले केजरीवाल साहेब को बुलाओ . केजरीवाल साहेब आ गए . जोशी जी ने कहा -हमें सौ रूपये उधार दे दीजिए . अगर आपके पास न हो तो किसी से मांग कर लाइए जरूरी है . केजरीवाल साहेब थोड़ी देर बाद लौटे और सौ रूपये जोशी के हाथ में रख दिए . जोशी जी ने नोटों को देखा .. मुस्कुराए और बोले - कई लोगो से मांगना पड़ा आपको ? केजरीवाल कुछ जवाब देते इसके पहले ही जोशी जी ने सारे नोट टेबुल पर फैला दिए .ये तीन नोट उसके हैं जो बस से सफर करता है ,ये चार नोट कैंटीन के हैं , और ये आपके अपने हैं . सही ? केजरीवाल हक्का बक्का जोर का ठहाका लगा . फिर जोशी जी ने खुलासा किया . जो नोट लम्बाई में दोहरी गयी है यह बस कंडक्टर ही करता है . बाकी तीन पर बेसन लगा है ताजा वह इस समय ब्रेड पकौड़ा बना है बाकी आपके हैं इनमे आपके बनारसी तम्बाकू की महक है ... बहुत बहुत धन्यवाद केजरीवाल साहेब अब आप भी यहीं बैठिये और काफी पीजिए . अचानक जोशी जी ने उन नोटों को मेरी तरफ बढ़ा दिया और बोले - इन नोटों को चला कर दिखाना तो और नोटों को मेरी तरफ बढ़ा दिए . हमारी आँखे गोल हो गयी . देखो तुम समाज्बादी हो ,पत्रकार हो , कार्टूनिस्ट हो और सबसे बड़ी बात 'फ्रीलांसर हो .ये जो फ्रीलांसर समाज्बादी होता है वह किसी से मिलने यूँ ही नहीं जाता ... फिर केजरीवाल की तरफ मुड़े -एक काम करिये अगले अंक में जिन कहानियों और कविताओं को जाना है उसे चंचल को दे दीजिए समय पर मिल जाय यह आपकी जिम्मेवारी है .)
    विषयान्तर हो गया . मुआफी नहीं मांगूगा . भाई शशी शेखर के दफ्तर में बैठे बैठे यह याद आ गया था . बहरहाल जब शेखर जी को पता चला तो उन्होंने तुरत बुलाया . हम लोग काफी देर बतियाते रहे उसमे हम दोनों एक जगह सहमत रहे कि अन्ना सड़क को धोखा दे रहा है . सड़क की राजनीति मरती है है तो फिजूल की सियासत घेरा बनाती है . मुजफ्फर नगर इसका ताजा उदाहरण है . 

1 comment:

  1. क्या कहने सर, सड़क मरती है तभी ड्राइंग रूम की सियासत हावी होती

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