Friday, September 6, 2013

सिंहावलोकन

हम और मै .
.... उन दिनों ....
काशी विश्वविद्यालय बनारस के दाहिने सिस्से को काट-छांट कर बसाया गया है . यह एक बेहतर शिक्षण संस्थान भर नहीं है ,अपने आपमें एक मुकम्मिल 'एल्बम है .इसे पलटते जाइए और डूबते उतराते रहिये . अनोखी जगह  है . इस संस्थान में दाखिला लेना , अपने आपमें एक 'घटना ' होती है . और घटना बनने की ललक हर नौजवान में होती है . हम भी नौजवान रहे ( आज भी हूँ ) सो हमने भी यहा दाखिले का सपना देखा और चल पड़े सपना को पूरा करने .
गाँव के एक कालेज से इंटर की मार्कशीट , मोमजामे में दो पराठे , एक ढेला गुड़ . चालीस रूपये नकदी . पैंट और कमीज . बस इतना ही सब था . पर दाखिला नहीं मिला . दोस्तों ने खूब चिढाया ' बाप मरे अंधियारे बेटा पावर हाउस ' बहर लौट आया . यह कहते हुए कि चलो जब यहाँ महादेवी वर्मा जी दाखिला नहीं ले पायी तो मेरी क्या औकात . दिल मजबूत किया और काशी का मध्य क्षेत्र पकड़ा . काशी विद्यापीठ . 'शास्त्रियों ' का धर्मस्थल . बापू की डाली हुई नीव पर अपने तमाम अभावों के बीच टन कर खड़ा यह विश्वविद्यालय आजादी की लड़ाई का केन्द्र रहा है . दाखिला ले लिया . यहाँ लगे हाथ जिक्र कर दूं कि हम भाग्यशाली रहे ,हमारे कुलपति थे - राजाराम शास्त्री . दाखिले के तुरत बाद जेल जाना पड़ गया . हुआ यूँ कि उन दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे चौधरी चरण सिंह . उन्हें समाजवादियों से चिढ़ थी . और प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालयों , विद्यालयों के छात्र संघों पर समाजवादी युवजन सभा का कब्जा रहा . यह मुख्यमंत्री को रास नहीं आता था . सो उन्होंने छात्र संघों को बंद करने का फरमान निकाल दिया . 'आ बैल मुझे मार ' आंदोलन शुरू हो गया . उसी झटके में हम भी नेता हो गए . चौधरी चरण के मंच पर चढ़ कर उनसे माइक छीन लिया . बस इतना ही अपराध था . और जेल चला गया . इसकी चर्चा रही . डेढ़ महीने बाद जब लौटा तब तक अखबारों ने हमें उड़ने की जगह दे दी थी .उस समय काशी विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष थे भाई मार्कंडे सिंह . उन्होंने हमें विश्वविद्यालय में दाखिला दिलवा दिया . और मै फाइन आर्ट्स का छात्र बन गया .
         फाइन आर्ट्स उन दिनों विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए 'दर्शनीय स्थल ' था . क्यों कि यह अकेला विभाग था जहां लड़के लडकियां उन्मुक्त भाव से रहते थे . साथ साथ . यहीं पर हमने पहली बार 'लड़की ' से बात करना सीखा . उनके साथ चाय पीना सीखा . यह हमारे  तमीज का पहला कायदा था .
                                                                                                              जारी -

1 comment:

  1. इसका सुखद परिणाम यह रहा कि आपातकाल के खत्म होने पर चंचल छात्र संघ अध्यक्ष बने और उन्होंने लोहिया के 'खुला दाखिला -सस्ती शिक्षा,लोकतंत्र की सही परीक्षा' के नारे को चरितार्थ कर दिखाया जिसके फलस्वरूप हमें भी विश्वविद्यालय में दाखिला मिल सका।

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