Sunday, September 15, 2013

युसूफ भाई ....
खबर है कि युसूफ भाई जिन्हें देश दुनिया दिलीप कुमार के नाम से जानती और पहचानती है ,बीमार हैं .लीलावती अस्पताल में भर्ती है . डुआ मांगते है वो जल्द से जल्द ठीक हो जांय . हमारी उनसे जो जानपहचान हुई वह एक दिलचस्प वाकया है . 
बाबरी मस्जिद तोडी जा चुकी थी . देश एक अजीब से जद्दो जेहद से गुजर रहा था . हम उड़ीसा से लौट कर बंबई आये थे . नादिरा जी ने घर पर पार्टी दी थी . वहाँ से लौट कर मै होटल आया . और रिसेप्शन पर गया कि हमें दिल्ली की जो भी फ्लाईट मिले उससे भेज दीजिए . इतने में मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा ,और बोले आज नहीं कल का टिकट बुक होगा . यह थे हमारे अजीज सलमान खुर्शीद . उन दिनों विदेश राज्य मंत्री थे . मै भी चौका . हम दोनों गले मिले . सलमान भाई हमें लेकर लिफ्ट की तरफ बढ़ गए . यहाँ दिलीप साहब दिखे लंगडाते हुए चल रहे थे . सब एक ही साथ लिफ्ट में चढ़े . हमने दिलीप साहब से पूछा -युसूफ भाई पैर में चोट लगी है क्या ? दिलीप साहब ने बड़ी संजीदगी के साथ हमें देखते हुए कहा - नहीं जनाब ! चोट तो जिगर में लगी है . ' सलमान भाई समझ गए कि कुछ गडबड हो रहा है . दरअसल हुआ क्या था कि कटक में रवि दा (प्रसिद्ध समाजवादी और लोक सभा के पूर्वद्ध्य्क्ष ) ने हमें उडिया का एक गमछा दिया था ,वह मेरे गले में था . गडबड यह हुआ कि उस गमछे का रंग केसरिया था .सलमान भाई ने तुरंत परिचय कराया युसूफ भाई ये चंचल जी हैं . समाजवादी हैं जार्ज के बहुत नजदीकी है ,और्हमारे दोस्त हैं . दिलीप साहब बिलकुल फ़िल्मी हो गए . ऊपर जो चित्र आप देख रहे है हू ब हू यही अंदाज और हमें खीच कर गले से लगा लिए . फिर तो खूब जमी . 
    ऊपर हाल में जहां पार्टी थी वहाँ एक से बढ़ कर एक मिले . नौशाद साहब , जानीवाकर , सुनील दत्त . अमजद खान वगैरह वगैह . नौशाद साहब जब यह मालुम हुआ कि मै जौनपुर से हूँ तो उन्होंने हमें अपने पास बुला लिया उनसे बहुत लंबी और दिलचश्प बात हुई . इतने में खाना लगने का ऐलान हुआ . दिलीप साहब ने कहा वे खाना नहीं  खायेंगे . हम जिस टेबुल पर बैठे थे उसपर नौशाद साहब ,जानीवाकर . नरेश जुनेजा थे . नौशाद जी उस समय वो किस्सा सुना रहे थे जब गंगा जमुना में दिलीप कुमार ने काम करने से इस लिए मना कर दिया था कि यह तो अवधी भाषा में है मेरे ऊपर फिट नहीं बैठेगी . नौशाद जी ने किस तरह दिलीप जी को मना कर तैयार किया . दिलीप साहाब सब सुन रहे थे .वे भी वहीं आकर बैठ गए . चलते चलते बात सियासत पर आ गयी . जानीवाकर ने एक गंभीर जुमला बोला - समाजवादियों ने कांग्रेस से निकल कर गलत किया वरना आज मुल्क कहीं और होता . जानीवाकर और सियासत पर यह पकड़ ? मै पहलीबार उन्हें समझ रहा था . इसी बीच सुनीलदत्त जी अपनी प्लेट लेकर उसी टेबुल पर आ गए और एक पीस निकाल कर दिलीप साहब की ओर बढ़ाते हुए बोले युसूफ भाई इसका जायका देखिये . युसूफ ने बच्चे की तरह मुह खोल दिया . एक एक कर के दत्त जी खिलाते रहे और उसुफ़ खाते रहे . यह प्यार हमने वहाँ फ़िल्मी दुनिया में देखा . 
     नौशाद साहब ने एक गाना बताया ,बैजूबावरा का ( शायद , ) लिखनेवाला शकील बदायुनी . गायक मोहम्मद रफ़ी . संगीत नौशाद का और जिस पर फिल्माया गया वेही युसूफ खान ... मन तरसत हरि दर्शन को आज .....
       युसूफ भाई ठीक होइए , आइये गले मिल कर कुछ गप्पिया जाय .

3 comments:

  1. बैजू बावरा में दिलीप कुमार ने काम नहीं किया। मेरा ख्याल है राग मालकौंस में रफी साहब का गाया - मन तड़पत हरि दरसन को आज ' का जिक्र हुआ होगा।

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  2. आहा .....युसुफ साहब .....इश्क के सपनीले शहजादे .....बड़ी मुरीद हूँ उनकी ....खुदा उन्हें उम्रदराज करे !!

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  3. गड़बड़ कैसी ? अच्छा केसरिया रंग देख कर उनके कलेजे पर चोट लगती है ? गज्ज्ज़ब !

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