Thursday, August 2, 2012

वो क़त्ल हो गया  बद्सूरतों की  महफ़िल में .......

कतील सिफाई की एक सतर है -वो क़त्ल हो गया  बद्सूरतों की महफ़िल में ,जो सारे शहर के आईने साफ़ किया करता था ./ 
जो अन्ना को अच्छी तरह नहीं जानते थे ,जो यह भी नहीं जानते थे कि अन्ना किसके इसके इशारे पर काम कर रहें हैं ,जिन्होंने अन्ना को मसीहा मान लिया था ,कल के अन्ना के इस फैसले से कि अन्ना अब एक पार्टी बनाएंगे जो चुनाव लड़ेगी तब 'मजबूत ' लोकपाल लायेगी .वे बहुत मायूस हुए हैं .जिस जनता ने बहुत लगन के साथ अन्ना का साथ दिया वह इस हद तक दुखी है कि गालिया तक निकाल रही है .आइये अब इस पूरे खेल की पड़ताल की जाय .
     अन्ना को गांधीवादी क्यों बताया गया ? 
बाँझ हो चुकी प्रतिपक्षी राजनीति बौने नेतृत्व से फिसलने लगी थी .७७ के बाद देश में न तो कोइ बड़ा सवाल उठा ,न ही कोइ आंदोलन हुआ .महगाई पर एक 'प्रायोजित और दिखावटी ' लड़ाई जरूर शुरू हुई लेकिन उसे बीच में ही मरना था सो मर गयी .इसी बीच संधी धराने ने अन्ना को प्रस्तुत किया . बड़े सलीके और गाजे-बाजे के साथ .चुकी मीडिया के पास विशेष कर इलेक्टोनिक मीडिया एक ऐसे दौर से गुजर रही थी जब उसके पास कोइ ऐसी खबर नही थी जिसे वह बेच सके और उत्तेजना पैदा कर सके .ऐसे में अन्ना आ गए .खादी का लिबास और टोपी को देखते ही इस मीडिया ने अपनी तरफ से अन्ना को गांधीवादी घोषित कर दिया .जब कि  इस मीडिया को इतना भी नहीं मालुम कि अन्ना का लिबास समूचे महाराष्ट्र का लिबास है .यह इस मीडिया की सबसे बड़ी भूल थी .अन्ना आंदोलन में संघी घराने ने पूरी ताकत लगा दी .लेकिन जब दिशा ,कार्यक्रम और विकल्प की बात आई तो आपसी मतभेद उभरने लगे और अन्ना टीम का एक एक सदस्य उघार होने लगा .इसी में रामदेव यादव भी बाबा बन कर कूद पड़े .आहिस्ता अहिस्ता जनता को यह पता चल गया कि यह कोइ आंदोलन नहीं है बल्कीभ्रष्टाचार  को सामने रखकर  राजनीति खेला जा रहा है .अपने चरम पर यह साबित हो ही गया जब अन्ना ने एक पार्टी बनाने की बात कही .इस पार्टी का अगला कदम होगा प्यात्यक्ष या परोक्ष रूप से संघी घराने से ताल मेल .
   इस खेल का पटाक्षेप हो गया लेकिन जिस सवाल पर जनता में एक कुतूहल मचा था - भ्रष्टाचार  उसका क्या होगा .? क्योकि सवाल तो जस का तस बना हुआ है इसके कम से कमतर करने के लिए कांग्रेस को ही पहल करनी पड़ेगी और उसे संकल्प लेना होगा .और इस लड़ाई को दोनों मुहानो पर एक साथ लड़ना होगा संसद और सड़क दोनों को सचेत करना होगा .

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