Saturday, October 12, 2013

कांग्रेस का परिमार्जन जरूरी है , खात्मा नहीं ......
चंचल 
    आजादी के बाद     कांग्रेस को ज़िंदा रखना ,कांग्रेस कीसबसे बड़ी दिक्कत थी . विशेष कर तब जब वह स्थापित संस्थान की तरह स्थापित होने जा रही हो और उसमे अधिनायकवादी डगर की तरफ बढ़ने की संभावना हो..ऐसे समय गांधी की यह चिंता एक नए अध्याय की शुरुआत करती है ,जब वह कहते हैं कि कांग्रेस का काम समाप्त हो गया है ,अब उसे 'समाप्त ' कर दिया जाना चाहिए .
        चूंकी देश नया नया आजाद हुआ था ,एक उमंग , जोश और उल्लास पूरे वातावरण में में था चुनांचे गांधी की बात नतो देश ने सुना न ही कांग्रेस ने .और इसके लिए कोइ तैयार भी नहीं था . जब कि गांधी कांग्रेस को नया जीवन देने जा रहे थे .कांग्रेस को उस तरह ले जाना चाहते थे जो सारी दुनिया के सामने एक मिसाल बने .गांधी ने बड़े सहज ढंग से कहा 'कांग्रेस का काम समाप्त हो गया है ' उनका इशारा इतिहास की एक गाँठ खोलता है -कल तक कांग्रेस एक सत्ता से लड़ रही थी ,उसकी वरीयता दूसरी थी .आज कांग्रेस स्वयं 'सत्ता है ' इसकी वरीयता अब दूसरी है .कांग्रेस अपने को शासक न समझे 'सेवक ' समझे ' और उस लिहाज से अपनी वरीयता तय करे . गांधी कांग्रेस के 'नए अवतार 'की बात करते हैं .वे कांग्रेस की काया और आत्मा के पुनर्जन्म की वकालत करते हैं .यह पहला परिमार्जन था .लेकिन नए जोश में सब काफूर हो गया और एन वक्त पर  गांधी की ह्त्या कर दी गयी . तुर्रा यह कि जिस दक्षिणपंथी ,कट्टर और कायर सोच ने गांधी की ह्त्या की ,वही ताकते बार बार  गांधी को याद करती हैं और कहते नहीं अघाती कि गांधी जी ने तो कांग्रेस को समाप्त करने की बात कही थी .
     प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक मधुलिमये ने अपनी पुस्तक 'राजनीति के अंतर्विरोध ' में एक पूरा अद्ध्याय ही कांग्रेस को दिया है .कांग्रेस काया और उसकी आत्मा पर मधु जी बड़ी बेबाकी से कते हैं कि कांग्रेस देश की ही नहीं दुनिया की सबसे बड़े जनाधार की पार्टी है .सुदूर गाँव गाँव इसकी पैठ है .मधु जी इस पार्टी की तुलना बोल्शेविक पार्टी से करते हुए कहते हैं कि सोवियत संघ ने इसी आधार पर एक पार्टी के तंत्र को स्वीकारा जब कि कांग्रेस ने बहुदलीय व्यवस्था को जन्म दिया . यहाँ फिर गांधी का हवाला देना चाहूँगा जब वे पहली अंतरिम सरकार में तीन ऐसे लोगों को कबिनेट में जगह दिया जो निजी रूप से गांधी और कांग्रेस के विरोधी थे . और ये तीनो तीन अलग अलग दिशाओं से रहे . मद्रास , महाराष्ट्र और बंगाल से . इनमे से दो तो आज तक चर्चा में हैं -बी आर  अम्बेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी . मधु लिमये यहाँ पंडित नेहरू की प्रशंसा करते हैं और उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा 'डेमोक्रेट ' बताते हैं और कई उहारण भी देते हैं .पंडत नेहरू के कार्यकाल तक कांग्रेस के अधिनायक वाद की तरफ बढ़ने का खतरा नहीं है इससे सब आस्वस्थ हैं . लेकिन नेहरू के बाद ?
         यहाँ थोड़ा विषयान्तर चाहूँगा और उस कालखंड का जिक्र करने की इजाजत लेता हूँ जब कांग्रेस सत्ता में है और देश ने संवैधानिक रूप से जनतंत्र और बहुदलीय व्यवस्था को धर्म की तरह स्वीकार कर लिया है .कांग्रेस अगर अधिनायकवाद की तरह बढ़ती है तो उसे रोकेगा कौन ? और रोकने का 'साधन ' क्या होगा ?ये दो बड़े सवाल थे . .. और तब जब की गांधी नहीं हैं . ? कांग्रेस स्थापित संस्था बन कर जड़ न हो जाय ,अधिनायकवाद के जरिये तानाशाही न ठोंक दे ,इससे 'लड़ने ' के लिए गांधी के ही एक उत्तराधिकारी ने यह जिम्मेवारी ली वह हैं डॉ राममनोहर लोहिया . और उनका गढा हुआ समाजवादी आंदोलन . ( एक गैर जरूरी सच यह है कि समाजवादी  कभी भी 'पार्टी' नहीं रही ,यह आंदोलन रहा .और जब यह पार्टी बनने की कोशिश की तो बिखर गयी .इस विषय पर फिर कभी .) यहाँ एक बात का जिक्र कर देना जरूरी है कि कांग्रेस स लड़नेवाली दो ताकते और भी रही .वामपंथी साम्य्वादी और दक्षिण पंथी संघी . इन दोनों एक साम्य रहा जो सिद्धांतः आज भी है वह है - दोनों  का जनतंत्र में यकीन नहीं है और न ही बहुदलीय व्यवस्था में . एक मजदूर और सर्वहारा की तानाशाही चाहता है दूसरा 'एक नेता ,एक झंडा . एक पार्टी फिर एक राष्ट्र " चाहता है . गो कि उसी जनतंत्र और बहुदलीय व्यवस्था के तहत दोनों 'सत्ता सुख ' भी लेते रहते हैं . चुनांचे यह तय हो गया कि अगर कांग्रेस अधिनायकवादी हो जाती है तो उसका विरोध या प्रतिकार करने की कोइ ताकत मुल्क में नहीं है . समाजवादी आंदोलन कांग्रेस को चुनौती देता है . संसद में और सड़क पर . कांग्रेस पर दबाव बढ़ता है और यह  नेहरू के ही कार्यकाल से शुरू हो गया था . ६३ में पहली बार संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव आया . संसद में पहली बार हिन्दी बोली गयी . तीन आने बनाम तेरह आने की बहस चली . देश के आम आदमी ने पहली बार जाना कि संसद उसकी अपनी है . और चार साल पहुचते -पहुचते गैरकांग्रेसवाद का नतीजा सामने आगया , सात सात सूबों से कांग्रेस का सफाया हो गया .जनतंत्र के लिए और सबसे ज्यादा कांग्रेस के लिए यह शुभ था .
     यहाँ गैर कांग्रेसवाद का 'प्रयोग 'समझ लेना जरूरी है . डॉ लोहिया आम आदमी की भाषा में गैरकांग्रेसवाद की व्याख्या करते हैं , 'रोटी को सेंकते समय उल्तोगे ,पलटोगे नहीं तो जल जायगी 'सत्ता को उलटो पलटोगे नहीं तो तानाशाह बन जायगी . डॉ लोहिया का गैरकांग्रेसवाद कांग्रेस को समाप्त नहीं करता परिमार्जित करता है .परिमार्जन का पहला नतीजा ६७ में आया . कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया .६९ में कांग्रेस नए रूप में आयी .
      ६९ नेकीराम नगर कांग्रेस में श्रीमती गांधी ने समाजवादी प्रस्ताव (१९५४ में जे पी ने पंडित नेहरू को एक प्रस्ताव भेजा था ,१४ सूत्रीय कार्यक्रम का , जिससे नेहरू सहमत थे लेकिन उस समय संगठन पर य्थास्थित्वादियों का इतना दबाव था कि नेहरू उस मुद्दे पर जोखिम नहीं लेना चाहते थे .लिहाजा वह पत्र जस का तस पड़ा रह गया था उसे इंदिरा गांधी ने ६९ कांग्रेस में पेश कर दिया और उस पर अड् गयी .)पेश कर समूचे राजनीति को ही झकझोर दिया . नतीजा हुआ इंदिरागांधी को कांग्रेस ने बाहर निकाल दिया . यह कांग्रस का परिमार्जित रूप था जिसने ७१ के चुनाव में इंदिरा कांग्रस को देश की सबसे बड़ी ताकत के रूप में स्थापित कर दिया .
           अब एक बार फिर कांग्रेस के सामने वही ख़तरा 'अधिनायकवाद ' की तरफ झुकने का आ गया . और वही  हुआ भी चार साल बीते बीतते इंदिरागांधी एक अधिनायक की तरह उभरी . और उनके विरोध में फिर एक समाजवादी आया जे पी . आपातकाल लगना . अगले चुनाव में कांग्रेस का सफाया . यह इतिहास सब को मालुम है . जो दबा और अन कहा है उसे देखिये .
       जनता पार्टी की सरकार बन रही है . जे पी अपने पसंद के किसी भी पुराने समाजवादी को सरकार में नहीं भेजते . चंद्रशेखर , मधु लिमये , यस यम जोशी . सब संगठन में जाते हैं सत्ता उनके हाथ जाती है जिसके खिलाफ समाजवादी आंदोलन मुखर रहा है -मोरार जे भाई , नीलम संजीव रेड्डी , संघ का उच्च नेतृत्व . उधर सरकार बन रही है दूसरी तरफ जे पी इंदिरा गांधी के घर पर हैं .दोनों एक दूसरे को पकड़ कर रो रहे हैं . इन्दिरा गांधी का जे पी के सामने रोना कांग्रेस का प्रायश्चित है . जे पी कहते हैं धैर्य रखो ' यह धैर्य कांग्रेस का परिमार्जन है .आगे की कहानी पूरी कथा बता देती है .
      मोरार जी सरकार के एक मंत्री राज नारायण जो लगातार इंदिरागांधी से टक्कर लेते रहे हैं ,समाजवादी हैं और मोरार जी सरकार से टक्कर ले लेते हैं और सरकार से बाहर हो जाते हैं . दोसाल जाते जाते समाजवादियों मोरार जी की सरकार को गिरा दिया . अगल चुनाव आया . कांग्रेस ने अपने किये के लिए जनता से माफी माँगी .कांग्रेस एक बार फिर परिमार्जित होकर चुनाव मैदान में आयी और  बहुमत उसके हाथ रहा .
लेकिन आज कांग्रेस से ऐसी ताकत टकरा रही है जो देश में सदैव के लिए तानाशाही लाना चाहती है .फैसला जनता के हाथ में है .


 

1 comment:

  1. भाई साहब, सब जौनपुरिये एक दूसरे से सहमत हों, क्या ये जरूरी है? पर मैं आपसे सहमत हूँ । जो बात आप कर रहे हैं वह बात आज के युवा वर्ग तक पहुंचे ये जरूरी है। पर क्या हम युवाओं का प्रबोधन कर पा रहे हैं?

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