Wednesday, October 2, 2013

बापू ता उम्र लोगों को जोड़ते रहे .....
               कल आटोवाले ने पते की बात की . उसने कहा -साहब जल्दी चलिए .हमने जल्दी कर दी और ऑटो में बैठ गया . दिल्ली में कोइ भी चीज अकेले नहीं चलती अगल बगल को चलाते हुए चलती है . उधर ऑटो चला उसी के साथ उसकी जुबान भी चली . है क्या कि ये जो दिल्ली है न क़ानून से चलती है . इधर से उधर हुए हुए नहीं कि गए काम से . हमने पूछा तो तुम्हे चलने की क्या जल्दी थी ? उसने कहा -कल गांधी का जन्मदिन है न ,तो ड्राई डे होगा . इस लिए जल्दी कर रहा था कि एक बार दूकान बंद हो जायगी तो मिलेगा नहीं . गांधी का जन्मदिन इस भी तरह से याद किया जाता है यह पहला अनुभव था . काफी देर तक सोचता रहा गांधी जो ताउम्र एक एक पल रचना और उत्पादन में लगाते रहे उनका जन्मदिन सरकारी छुट्टी से मनाया जाता है . बाद बाकी पूरा मुल्क अपने काम में लगा रहता है . किसान ,मजदूर . कुम्हार . लोहार ,मुसहर सब काम में लगे रहेंगे क्यों कि ये उत्पादक जाति है . दूसरी तरफ कलम घिस्सू अनुत्पादक जाति है जिसे सरकारी कर्मचारी कहते है वह छुट्टी पर रहेगा .होना तो यह चाहिए कि आज तमाम सरकारी लोग उस तरफ रुख करें जो दबे कुचले हैं . मजबूर हैं ,मजलूम है .जलालत और जिल्लत की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं ,उनके साथ ,उनके बीच पूरा दिन गुजारें .इसका असर यह होगा कि कल कोइ भी फ़ाइल 'पेंडिंग' में नहीं जायगी तुरत कार्यवाही होगी क्यों कि हर फ़ाइल पर किसी न किसी मजलूम का चेहरा दिखाई पड़ेगा जिनके साथ दो अक्टूबर गुजरा है . ... यही मजबूर ,मजलूम गांधी का ईश्वर था .
         एक दिन काका (राजेश खन्ना ) ने ऐलान कर दिया कि 'आज मै नहीं पिऊँगा ' .८१ लोधी  रोड में यह खबर खबर बन रही थी कि आज काका नहीं पियेंगे .  सांझ सात बजे के करीब ज्यो ही मै गेट से अंदर घुसा अशोक रंधावा काका का सबसे खास उसने हमें रोक कर बता या -साहेब ! आज की खबर सुनते जाइए , काका आज नहीं पियेंगे ,जो भी आ रहा है सब को यही बोल रहे हैं . हमने पूछा क्या बात हो गयी ? उसने कहा उन्ही से पूछिए ज्यादा अच्छा रहेगा . मै अंदर गया .पहुचते ही शुरू हो गए .-साहिब ! आज हम नहीं पियेंगे . हमने कहा -यह तो बहुत अच्छी बात है . चुप रहे . नहीं रहा गया तो बिलकुल बच्चों के अंदाज में बोले तो आप यह नहीं पूछेंगे कि क्यों ? हमने कहा बिलकुल नहीं पूछूंगा क्यों .फिर चुप रहे . फिर बोले साहिब आप बहुत खतरनाक हैं . हमने कहा कि आपसे भी पहले किसी ने मेरे बारे में यह कह रखा है . वह आपकी प्रेमिका होगी ? हमने कहा आपने कैसे जाना ? बहुत संजीदगी से बोले - मै भी तो आपको प्यार करता हूँ ... सन्नाटा . अचानक फ़िल्मी सेट पर चले गए .ओके . लाईट आफ . पैक अप ... और जोरदार ठहाका . देखिये साहिब आज दो अक्टूबर है गांधी जी का जन्म दिन . इस लिए आज मै नहीं पियूँगा . अब तो आप मान गए न कि मै गांधी का भक्त हो गया हूँ ? हमने कहा कि यह तो हम उसी दिन समझ गए थे जिस दिन आप आगे बढ़ कर हमारे पास आये थे और दूसरे दिन दोपहर खाने का न्योता दिए थे . 
    अब वह भी किस्सा सुन लीजिए हमारी काका से मुलाक़ात का किस्सा . दिल्ली में हमारे एक दोस्त हैं नरेश जुनेजा . उनके कई शौक हैं उसमे से एक है पार्टी देना . एक दिन उनका फोन आया . भाई साहब कल घर पर एक पार्टी है आ जाइयेगा . और हम पहुचे . उनका ड्राइंग रूम विदेशी लोगों से भरा  पड़ा था .अंदर पहुचते ही हमें कहा गया कि आप बेड रूम में चले जाइए .मै वहाँ गया ,वहाँ फिल्म बितरक् . फिल्म वाले . कई डाक्टर पहले से ही मौजूद रहे . उनमे एक सोफे पर गीतकार संतोषानन्द धसे पड़े मिले . हमें देखते ही संतोषानंद ने आवाज दिया देखो भाई अकेले फसा पड़ा हूँ .संघियों घेर रखा है . ( संतोषानंद मनोज कुमार की फिल्मो के लिए गाने लिखते रहे और फ़िल्मी दुनिया में कांग्रेसी मान लिए गए थे ) हमने पूछा कितनी देर से चल रहा है . डॉ कसाना ने कहा अभी दूसरा ही है . हमने हँसते हुए कहा रुकिए हमें भी लेबिल पर आने दीजिए . इतने में हमारे दोस्त गिप्पी (सिद्धार्थ द्विवेदी सुपुत्र पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ) जो पहले से वहाँ मौजूद थे हमारे हाथ में ग्लास दे दिए . एक फ़िल्मी ने संतोषानंद से पूछा - गांधी की एक खूबी बता दो तो जाने . हमने मजाक के लहजे में कहा दोस्त पाहे लड़के से बतिया लो फिर बाप से पूछना . ...गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है . 'उससे बड़ा कोइ दूसरा आर्टिस्ट पैदा ही नहीं हुआ '. यह चौकानेवाला बयान था . एक चुप्पी तैर गयी . किसी ने कहा हम समझे नहीं . हमने चिढाया बहुत हैं जो अब तक गांधी को नहीं समझ पाए हैं . तो सुनिए - गांधी ने आजादी की लड़ाई में चरखा खोज निकाला . उस जमाने में जो चरखा चलाता मिल जाता था मान लिया जाता था कि यह कांग्रेसी है .और मजे की बात यह कि इस पर कोइ प्रतिबन्ध भी नहीं लग सकता था क्यों कि यह उत्पादन का जरिया भी था . इतने में पीछे से आवाज आयी ..साहिब ! मेरा नाम राजेश खन्ना है क्या मै आपसे मिल सकता हूँ ? कह कर वे आगे बढे तब तक मै खुद उनकी तरफ बढ़ गया .काका के साथ राजीव शुक्ला थे जो हमसे पहले से ही परचित थे उन्होंने हमारा परिचय दिया .यह थी काका से पहली मुलाक़ात जो बापू के बहाने से शुरू हुई आर आखीर तक बनी रही . 
         उस दो अक्टूबर को काका ने नहीं पिया .
   यह सुलेख पूरे अक्टूबर के लिए है . अक्टूबर को ही समर्पित है .






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