Monday, October 21, 2013

चिखुरी चिचियाने /चंचल

ये गधे सब कहाँ गए भाई .......
   
           सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था . रोज की तरह आसरे की चाय की दूकान गुलजार थी .गाँव के जाने-माने लोग अलसुबह घर-बार रामभरोसे छोड़ कर चौराहे पर आ जमे थे . भट्ठी सुलग रही थी . लोग अपने अपने यथोचित जगह पर काबिज थे . अचानक पूरब की तरफ से एक मिमियाती आवाज आयी -
'शंकर का लिंग ले लो ... साछात हनुमान ले लो ००००००० ' चौराहे के लिए यह नया ऐलान था ,चुनांचे लोगों का चौकना लाजमी था . चिखुरी ने चश्मे के नीचे से झांका , कयूम ने गर्दन उठाकर देखा , लखन कहार को पीछे मुडना पड़ा , उमर दरजी को चौकना अच्छा लगा .आसरे जो उस वक्त चाय को केतली में छान रहा था वह भट्ठी में जा गिरी .गरज यह कि सब कि निगाह उस तरफ मुड गयी जिधर से यह आवाज आयी थी . जिधर से यह आवाज आयी थी वह एक साइकिल पर था लेकिन चढ़ कर नहीं ,पैदल दोनों थे साइकिल भी और चलानेवाला भी . अधेड़ उम्र का आदमी जिसके रहन-सहन ने उसे वक्त के पहले ही बूढ़ा बना दिया था , खसखसी दाढ़ी ,उखड़े हुए बाल , नीची तहमत ऊपर जालीदार बनियान कंधे पर लाल गमछा . उमर दरजी ने पहचान लिया - अरे ये तो असर्फी है .असरफी पथरकटा...
असराफी पथारकटा?  कीन उपाधिया ने ऐसे आँखें गोल की जैसे वो नहीं जानते . लखन कहार ने परिचय दिया .असर्फी ... झिंगुरी क लडिका . अरे वही जो गाँव गाँव घूम के सील लोढ़ा  कूटता था . बड़ा मजाकिया था . गाँव की औरते उसे देखते ही घूघट काढ के भितरा  जाती थी . ऐसा ऐसा मजाक करता था कि पूछो मत . चिखुरी ने असरफी को गौर से देखा -' तो यह झिंगुरी का लड़का है ? एक बात तुम लोगों को नहीं मालुम होगा ,इसका बाप झिंगुरी अपनी जवानी में पहलवान रहा लेकिन खुराक ने उसे तोड़ दिया . बुलाओ देखो क्या बेच रहा है '? नवल ने आवाज दिया आइये असरफी भाई चिखुरी काका बुला रहे हैं ... सायकिल वहीं लगा दीजिए उसी बांस से टिका दीजिए आइये .
     यहाँ एक गडबड हो गयी . साइकिल में चूंकी 'स्टैंड ' ना रहा  चुनांचे साकिल को कल्लू पंचर वाले के मडहे की उस बांस की थून से टिकाना पड़ा जिस पर छप्पर का पूर्वी पाख टिका पड़ा था . उधर साइकिल टिका कर असरफी दो कदम इधर बढे कि उधर बांस बीच से टूट गया और साइकिल नीचे गिर गयी और मडहा  झूल गया
कोइ बड़ी दुर्घटना हो इसके पहले ही कल्लू निकल कर बाहर भागा . साइकिल के कैरियर पर  लदा सामान पानी भरे तसले में जा गिरा ,पानी  उछाल मारा और आराम से सो रहे करियवा कुकुर पर जा गिरा . वह ऐसे किसी हादसे का आदी नहीं था चुनांचे कों करके भागा और वहाँ जाकर रुका जहां कीन उपाधिया जनेऊ चढाये बैठे लघु शंका कर रहे थे . कमबख्त वहाँ जाकर कुनमुनाया और अपने शरीर को ऐसा झटका कि तसले का जो पानी उसके कान में रुका पड़ा था कीन की पीठ पर जा गिरा . कीन को यह बात नागवार लगी ,जिस काम में लगे थे उसे वहीं जस का तस छोड़ कर एक अद्धा उठाया और बहादुर पे दे मारा (  चौराहे पर इस करियवा कुकुर को बहादुर कह कर बुलाया जाता है और वह सुनता भी है ) बहादुर समझ गया था कि उसके साथ क्या हो सकता है .लिहाजा वह तो कूद कर बच निकला लेकिन ईंट का वह अद्धा खेलावन की दकान पर अस्सी के स्पीड से जा पहुंचा और सामने पड़े कुम्हड़े में जा घुसा . खेलावन चौंक कर कूदे इस कूदने में उनकी धोती फट गयी .दोहरी मार से बौखलाए खेलावन ने कीन  को छोड़ कर उनकी माँ से किसी अचूक और अति गोपनीय क्रिया की घोषणा कर दी, जिसे किसी भी सभ्य समाज में गाली कहा और माना जाता है .बाज दफे तो इस एक जुमले पर कई लोग शहीद होते देखे गए हैं लेकिन यह शहर तो है नहीं  . शहर होता तो यह एक घटना दंगा के लिए काफी रहता लेकिन मामला ठहरा गाँव का और गाँव में हर कोइ हर किसी का कुछ न कुछ लगता ही है .कीन को उनकी माँ के साथ खेलावन ने जो लपेटा मारा था .उसका उन्होंने बुरा नहीं माना क्यों कि गाँव के रिश्ते में खेलावन उनका बाप लगता है. खटीक है तो क्या हुआ. यह सब पलक झपकते हुआ
जिसकी वजह से यह सब हुआ वह असरफी अभी बीच डगर में ही खड़े हैं . अचानक उनको याद आया कि साइकिल तो उसी तरह उल्टी पडी है.  असरफी लपक कर साइकिल की तरफ बढे और लगे उसे उठाने .लेकिंन सैकिल के नखडे कि उठने का नाम न ले .जब भी उठे उलार हो जाय .अगला पहिया कंधे के ऊपर और पिछला टस से मस्स न हो . . उमर दरजी और लखन कहार दौड़े मदद के लए, तब जाकर साइकिल सीधी  हुयी .
इसबार गलती न दुहराते हुए साइकिल को दीवार से टिका कर तीनो चिखुरी के दरबार में पहुचे .
     का लदा है भाई कैरियर पर ?
      एक ठो हनुमान जी औ दू ठो शंकर जी का लिंग .
     एयं ! इ कौन बात भई ?
     का करें सरकार ! बाप दादा पथर कटाई करते रहे . गाँव गाँव घूमि के घर घर सील लोढ़ा कूटते  रहे इज्जत से जिंदगी कटती रही ससुरी 'बखत 'क खेल देखिये घर से सील लोढ़ा  गायब . अब करें का ? जर जमीन तो है ना फिर सोचा शहर चाला जाय .गए भी, रिक्सा भी खींचे पर जब आदत रहे तब ना . एक दिन एक साधू  मिला .जमुना के किनारे . बोला बेटा तुम  गाँव जावो . हनुमान की मूरत बनाओ उर शंकर का लिंग गढो  मालामाल हो जावोगे . ये ज़माना है है धरम का . हम लौट लिए .ये तब कि बात हैजब अजोधा में बवाल मचा रहा .. सो तब से इसी काम में लगा हूँ . अब झूठ का बोले कमाए भी .पर अब मंदा हो गया है .
         मंदा काहे ?लखन कहार का सवाल बीच में ही लटक गया . चिखुरी ने डपट दिया बुड़बक हो का . हनुमान और शंकर सील हैं कि लोढा ? हर महीने कुटाई होए . ? एक बार जम गाये तो जम गए .
      लेकिन इ सील लोढ़ा गायब कैसे हुए ? नवल उपधिया का बुनियादी सवाल कयूम ने लपक लिया -
- नवल बेटा  एकर जवाब त तुम्हार माई देये वोसे पूछ लिह्यो . नवल लजा गए . जवाब दिया चिहुरी ने -सुन जब से इ विकास आया है सब बिगाड़ के रख दिया . अब हर चीज पिसा पिसाया मार्केट  में है .पुडिया खरीदो कड़ाही मे डालो और ऐश करो .राम लाल क दूकान देखो सब समान भरा पड़ा है .
      पर एक बात है काका ऊ स्वाद अब ना रहा जो हम बचपन में खाते रहे .खेलावन खातिक को कुम्हड़े का फूटना भूल गया और लगे स्वाद पर सवाल उठाने . चिखुरी चीखे -स्वाद खोज रहे हो . नकली समान खरीदोगे और स्वाद खोजोगे ?
       एक बात हमारी भी सुनी जाय , समान नकली नहीं है .मद्दू पत्रकार ने पत्रकारिता दिखाई -सामान सब असली है बस नाम बदला है ,घोड़े की लीद चाहिए तो पीसी धनिया खरीद लो , चिलबिल की पत्ती चाहिए तो पिसा मिर्च ले लो ललके रंग में रंगा  , कहाँ तक बताएं . प्लास्टिक खाने का मन करे तो नूडल खरीद लो  हाँ भाई ..मैदे की सेवई पर पतला प्लास्टिक चढ़ा रहता है जिससे उबालने पर अलग अलग छतकता रहता है .तो मतलब हम चू........
    चिखुरी हत्थे से उखड गए - सवाल यह नहीं कि हम असल खा रहे हैं के नक़ल . खा तो रहे हैं . यही होगा जल्दी मरेंगे .लेकिन अगली पीढ़ी तो ज़िंदा रहेगी जल्दी मरने के लिए . ईनके बारे में सोचो आख़िरी पीढ़ी जी  रहे हैं . कितने दिन बिकेंगे हनुमान ,शंकर का लिंग . पेशा खत्म तो जाति  खत्म .धुनिया दिखाई पड़ता है कहीं ?? दोना पत्तल बनानेवाले मुसहर मारे गए प्लास्टिक से . कुम्हार मारा जा रहा है .दरबारी मास्टर ने पते की बात कही - आदमी की जाति ही नहीं गायब हो रही साथ ही साथ जानवर भी गायब हो रहे हैं . अब गधा कहीं दिखाई पड़ता है ? बोलो पंचो . आखन देखी बता रहा हूँ .असरफी के बाप रहे झिंगुरी , गदहे पर जांत , चकरी सील बट्टा लिए घूमते थे .अब गदहा इलाके से गायब है प्राइमरी की किताब में भले ही दिख पडे . मंगरू धोबी गाँव भर क कपड़ा उसी गदहे पे लादते थे और खुदौ ऊपर चढ़ी के सवारी करते थे . कोइ बता सकता है कि कहाँ गए सब गदहे ?
  सुल्ताना नाई से नहीं रहा गया -हम बताएं कहाँ गए ?? हम्मे मालुम है ...
कीन उपाधिया समझ गए कि इ का बोलेगा , -अबे निकाली पनही ?
उमर दरजी ने टांका मारा -कीन पहिले पनही खरीदै के पडी  .. 'ठहाका उठा और दाना च्गती गौरैया फुर्र से उड़ गयी .
        नवल उपधिया जो अब तक चुप चाप सुनते रहे संजीदा हो गए और चिखुरी से बोले -एक बात बतावा काका ! अगर इस सब सही है त अब का कीन जाय ? कयूम्कुछ बोलने के लिए मुह खोले की थे कि चिखुरी ने आँख के इशारे से घुडूक दिया , कयूम  मुस्कुरा के रह गए . चिखुरी ने संजीदगी से कहा एक बात मानोगे ? सब चुप रहे . चिखुरी बोले आज से पिसा मसाला बंद ,खड़ा मसाला चालू .सस्ता क सस्ता ,स्वाद क स्वाद . मसाला पैदा हम करें मुनाफ़ा खायं वो . ?
      नवल ने तुरत आडर दिया - असरफी  भाय एक सील लोढ़ा बनाय दो.
    उमर दरजी ने हांक लगाया -सील ... लोढ़ा ..... कुट्वाय .....लो........
देखिये कल क्या होता है . बहादुर कुनमुना कर देखा और फिर जमीन से कान सटा कर सो गया . 

2 comments:

  1. लाजवाब...जबदस्त है भई...'ये गधे सब कहाँ गये भाई'... का लेखन ! सच में, निःशब्द हो जाता हूँ आपके इज़हारे-अन्दाज़े बयान से...आज तो सब मतवाले हैं, और हम तो पुराने हैं...जानते ही हैं...न ! चुटीले हास्य और व्यंग से सराबोर गुदगुदाती भाषा-शैली की मिठास समेटे इस कथ्य में विकास की ज़मीनी हक़ीकत को आइना दिखाया है आपने ! चुनिंदा ग्रामीण भोले-भाले पात्रों के माध्यम से प्रतिबिंबित इस कथ्य में बहुत दम है भाई...पर विलासतापूर्ण लालसाओं में डूबी विकास की होड़ में लोग...बस ऐसे ही डूबते-उतराते रहेंगें...और चंचल भाई...ये सब गधे ही नहीं...एक दिन सब आदमी भी गायब हो जायेंगे ! यह कथ्य लेख तक ही सीमित नहीं...मंचन योग्य सर्वगुण विदयमान हैं इसमें !

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  2. वाह बड़े भाई। क्या प्रस्तुतीकरण है। पूरा चित्र खींच दिया ग्रामीण बाज़ार और परिस्थितियों का। राजनीति पर करारा व्यंग। प्रणाम आपको!

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