Tuesday, October 1, 2013

धन्यवाद कांग्रेस .....
 ...देश में  भ्रष्टाचार को लेकर हाहाकार मचा हुआ था . निकलने का रास्ता क्या है ? यह मूल सवाल कटी पतंग की तरह इधर से उधर घूम रहा था . संसद किम् कर्तव्यविमूढ बनी बैठी थी . क्यों कि हर दल उस कुवें का पानी पी चुका था जिसमे भांग पडी थी . अन्तः उसने सुप्रीम कोर्ट को चुनुती देते हुए एक अध्यादेश पारित करवाना चाहा जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला तत्काल प्रभाव से खारिज हो जाता ,लेकिन ऐसा नहीं हो पाया . क्यों ?
    इस क्यों का जवाब भारत के जम्हूरी निजाम के पास है . उसे देखिये . यहाँ हर संस्थान 'बड़ा'  है लेकिन स्वच्छंद नहीं . विधायिका , कार्यपालिका और न्याय पालिका . तीनो स्वतंत्र हैं पर स्वच्छंद नहीं . तीनो एक दूसरे की नक्लेल पकडे बैठे हैं . क्यों कि इन सब के उपर एक संविधान है . अब संविधान का किस्सा सुनिए (उन्हें सुना रहा हूँ जो अम्बेडकर को तो पूजते हैं पर गांधी को गरिआते हैं ) देश आजादी के मुहाने पर खड़ा है .देश आजाद होगा तो उसका स्वरुप कैसा होगा यह कांग्रेस की चिंता थी . क्यों कि बाकी दल कांग्रेस के विरोध में थे और अंग्रेजों के साथ थे .  प्रसिद्ध समाजवादी नरता और कांग्रेस के मुखर आलोचक मधु लिमये लिखते हैं कि कांग्रेस देश की नहीं दुनिया की सबसे बड़े जनाधार की पार्टी थी वह चाहती तो सोवियत यूनियन की तर्ज पर एक पार्टी तंत्र की स्थापना करती लेकिन उसने ऐसा नहीं किया . उसने जनतंत्र और बहुदलीय व्यवस्था की नीव डाली . पहली अंतरिम सरकार में गांधी ने तीन ऐसे लोगों को सरकार में शामिल कराया जो कांग्रेस और गांधी के कटु आलोचक थे . इनमे से दो मंत्री बनाए गए . एक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दूसरे भीमराव अम्बेडकर . मजे की बात संविधान बनाने की बात चली तो गांधी ने संविधान के प्रारूप समिति के लिए अम्बेडकर का नाम सुझाया . नेहरू ने आश्चय्र से पूछा . तो गांधी का छोटा सा जवाब था -यह कांग्रेस का संविधान नहीं है देश का संविधान है .' जब्य्ह पत्र अम्बेडकर के पास पहुचा तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ था . खुशी भी . 
आज इस संविधान ने देश की जनता को राहत दिया है जो भ्रष्टाचार का हल खोज रही थी और हर बार छली जा रही थी . देश की न्यायपालिका संविधान के तहत काम करती है . इस्लियेहमने कहा - धन्यवाद कांग्रेस .
    देश में अस्थिरता फैलाने में माहिर संघी गिरोह इन हालात के चलते खुल कर सामने आया और संविधान को चुनौती दीऔर संसद को कटघरे में खड़ा कर दिया .यहाँ यह रखा जाना चाहिए कि इस देश में कांग्रेस के अलावा कोइ भी विचार ऐसा नहीं है जो जनतंत्र, समाजवाद और सर्वधर्मसमभाव में यकीन रखता हो . यहाँ साम्यवादी और संघी 'जनतंत्र ' की सुविधा तो ले लेंगे ,उसका सुख भी भोग लेंगे लेकिन उनका यकीन न तो संसदीय व्यवस्था में है न ही संविधान में . 
     बाज दफे जनता घपला खा जाती है कि जनतंत्रीय व्यवस्था है क्या ? संसद पक्ष और प्रतिपक्ष की धार पर चलती है . दोनों के बीच जितना ज्यादा तनाव रहेगा संसद उतनी ही कारगर ढंग से जनमन को अपनाती रहेगी . अगर पक्ष मजबूत हुआ तो सत्ता की तानाशाही का ख़तरा रहता है (जैसा कि ७५ में इंदिरा जी के कार्यकाल में हुआ ) और प्रतिपक्ष अराजक होकर किसी संवाद से दूर भागेगा और संसद को जाम करेगा तो अराजकता की स्थिति बनेगी . जैसा कि मनमोहन जी के दूसरे कार्यकालमे भाजपा कर रही है . ये दो नो ही स्थितियां जनतंत्र के लिए खरनाक होती हैं . आजादी के तुरत बाद पंडित नेहरू का कार्यकाल कांग्रेस के लिए स्वर्णिम युग है . लेकिन चुकी नेहरू स्वयं में इतने बड़े जनतंत्र के वाहक रहे कि जम्हूरी निजाम को कोइ ख़तरा नहीं था . संसद आराम से चल रही थी . दस सालबाद १९६३ में पहली बार देश ने महसूस किया कि प्रतिपक्ष भी होता है जब  तीन उप चुनाव के नतीजों के साथ दो दिग्गज -डॉ राम मनोहर लोहिया और कृपलानी संसद में पहुचे ( तीसरे नेता दीं दयाल उपाध्याय जौनपुर से चुनाव हार गए थे ) ६३ में पहली बार नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव जेरे बहस हुआ .कहना यह है कि संसदीय व्यवस्था में सत्ता पक्ष की जिम्मेवारी से ज्यादा जिम्मेवारी प्रतिपक्ष की होती है और इन दिनों हमारा प्रतिपक्ष अपनी भूमिका में नालायक रहा है .
    तीसरा रास्ता है 'सड़क ' का .सड़क की गर्माहट संसद को गरम करती है . इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अन्ना का आंदोलन . अगर आपको याद हो तो अन्ना ने संसद को बौना बना दिया था . उस दिन मै एक अखबार के संपादक के कमरे बैठा था और बात अन्ना आंदोलन पर चल रही थी . हमने कहा कि भाई इस आंदोलन ने सड़क की आग को खत्म कर दिया . यह नपुंशक सोच सड़क की गर्मी खींच लेगी और अदले सालोसाल तक जनता किसी पर यकीन नहीं करेगी . और हुआ वही . वरना जो काम आज न्यायपालिका कररही है उसे संसद को करना चाहिए था . अगर संसद खामोश थी तो यह सड़क की जिम्मेवारी बनती थी .लेकिन जब सब नाकारा हुए तो न्यायपालिका आ खड़ी हुयी . क्यों कि हम उस देश में हैं जहां एक संविधान है और वह संविधान आजादी की लड़ाई का निचोड़ है जिसे कांग्रेस ने सींचा है .इसलिए हम कांग्रेस को धनुवाद दे रहे हैं .

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