Sunday, September 2, 2012

इंदिरा गांधी की वैचारिक यात्रा ..
   आज पूजा शुक्ला जी का एक मंतव्य दयानंद पांडे जी के हवाले से फेसबुक पर देखने को मिला .जिसमे पांडे जी ने बताया है कि किस तरह इंदिरागांधी प्रधान मंत्री बनी ? एक नजर में यह एक किस्सा की तरह चलता है ,जिसमे सियासत के तमाम दाँव पेच की हल्की झलक मिलती है .लेकिन अंतर्कथा बहुत पीछे से शुरू हो चुकी होती है .पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधान मंत्री बनने से पहले आजादी की लड़ाई के ही दौरान .देश में घट रही हर घटना से इंदिरा गांधी जुड़ी रही . उम्र भले ही कम रही लेकिन उनकी उपस्थित दर्ज होती रही है .आनंद भवन का ठिकाना , पंडित नेहरू का संसर्ग देश के तमाम नेताओं के बारे में एक दूसरे की क्या राय है ? इससे इंदिरा गांधी पूर्व परचित रही .इंदिरा गांधी को यह भी मालुम रहा कि कांग्रेस के अंदर की आपसी गुटबाजी में कौन किसके साथ है .? कांग्रेस के अंदर समाजवादी गुट का अद्भुदय जिसके नेता पंडित नेहरू स्वं रहें का टकराव ठस कांग्रेसी ग्रुप के लौह पुरुष सरदार पटेल से था .पंडित नेहरू की छवि भले ही बहुत बड़ी थी ,लेकिन संगठन पर पटेल का कब्जा था .गांधी जी कांग्रेस में घट रही घटनाओं को बड़ी बारीकी से देख रहें थे ,और उनका फैसला नेहरू के पक्ष में गया और पंडित नेहरू प्रधान मंत्री बन गए .यहाँ दो दो बड़ी घटनाओं की तरफ इशारा करना चाहूँगा जो आगे चल कर कांग्रेस यात्रा में कारक तत्व बनते हैं - एक - कांग्रेस से गांधी का अलगथलग पड़ जाना और दूसरा समाजवादियों के प्रति गांघी का झुकाव .इसका अंदाजा पंडित नेहरू और पटेल दोनों को हो चुका था .चूंकि  पंडित नेहरू स्वं समाजवादी थे और समाज्वादिओं से उनके ताल्लुकात अच्छे थे लेकिन उनकी तादात इतनी नहीं थी कि उनके सहारे नेहरू किसी पायदान तक पहुच पाते इसलिए उन्होंने चुप्पी साध ली .गांधी जी १९३४ में ही कांग्रेस से अलग हो चुके थे ( संवैधानिक रूप से लेकिन कांग्रेस के साथ जुड़े रहें ) लेकिन कांग्रेस की दिक्कत थी कि ब गैर कांग्रेस के वह कोइ निर्णय नहीं ले सकती थी .आजादी के तुरत पहले गांधी जी ने कांग्रेस को एक अजीब स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया .जब उन्होंने सुझाव ( यह सुझाव और सलाह कांग्रेस के लिए आदेश होता था ) दिया कि ' कांग्रेस का अध्यक्ष पड़ किसी समाजवादी को दिया जाय , और बापू ने नाम भी सुझाया था आचार्य नरेंद्र देव का .यह कांग्रेस के लिए सुपाच्य नहीं था लिहाजा सबसे मुलायम समाजवादी आचार्य कृपलानी अध्यक्ष बने .ये सारी घटनाएं इंदिरा गांधी के सामने घट रही थी .( भरत विभाजन के अपराधी  पुस्तक में डॉ लोहिया ने एक घटा का जिक्र किया है जिसमे गांधी जी और लोहिया के ईच इंदिरा गांधी मौजूद रही ) दयानंद पांडे जी जब व्यक्तियों के हवाले से इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्री बनने के दास्ताँ कहते हैं तो उसके पीछे जो वैचारिक यात्रा चली आर रही होती है उसकी तरफ  भी चलना चाहिए .
       इंदिरा गांधी का इतिहास पंडित नेहरू की   राजनीतिक ख्वाहिसों  की पूर्ति का सम्यक यात्रा है .जिसे पांडे जी ने इंडीकेट और सिंडी केट कह कर छोड़ दिया है .कांग्रेस का यह टर्निंग प्वाइंट है .इंदिरा गांधी  ने देखा है प्रधान मंत्री नेहरू तीन मूर्ती के लान में डॉ लोहिया के साथ बैठे हैं .भारत आजाद हो चुका है ,गांधी जी की ह्त्या की जा चुकी है , समाजवादी कांग्रेस से निकल चुके है .लौह पुरुष पटेल की मृत्यु हो चुकी है .नेहरू और लोहिया लान में बैठे है .इंदिरा गांधी जग रही है रात के दो बजे तक नेहरू लोहिया को मनाते रहें .लोहिया की तीन शर्ते हैं .दो पर पंडित नेहरू सहमत हैं एक पर असहमत बात टूट गयी लेकिन एक लोच के साथ ' चलिए हम इस पर फिर चर्चा करेंगे ' .नेहरू के समाजवाद के प्रति मोह का असर इंदिरा  गांधी   पर पड़ा . नेहरू संगठन के दबाव पर जो नहीं कर पाए उसे इंदिरा गांधी ने १९६९ ' नेकीराम कांग्रेस ' में कर के दिखा दिया .१९५४ में एक प्रखर समाजवादी जे. पी. की लिखी एक चिट्ठी जो उन्होंने पंडित नेहरू को लिखी थी और वह कांग्रेस के ठंढे बस्ते में पडी थी उसे इंदिरा गांधी ने सामने रख कर दिग्गजों से टक्कर लिया . कुल पांच समाजवादी इंदिरा के साथ रहें - चंद्रशेखर ,मोहन्धारिया ,कृष्णकांत ,अर्जुन अरोड़ा ,रामधन /इंदिरा गांधी कांग्रेस से निकाल  दी गयी .एक नयी कांग्रेस बनी  कांग्रेस इंडीकेट .इस इन्दी केट ने जे. पी. की चिट्ठी को जस का तस स्वीकार किया , कांग्रेस ने पहली दफा समाजवादी समाज के लिए अपनी प्रतिवद्धता का ऐलान किया . बैंको का राष्ट्रीयकरण , प्रिविपर्ष की सामप्ति  आदि चौदह कार्यक्रमों को लेकर इंदिरा गांधी मैदान में उतारी और सिंडी केट का सफाया हो गया .
     पांडे जी ने द्वारिका प्रसाद मिश्र और कामराज नादार का जिक्र किया है .लेकिन उन लोंगो को भी देखिये जिनका समाजवाद से शुरुआती लगाव रहा है . पंडित कमलापति त्रिपाठी ,हेमवती नंदन बहुगुणा , नारायण दत्त त्रिपाठी .बहुत नाम है हर सूबे में रहे ....
    पूजा जी आप बधाई की पात्र हैं , इतिहास् के अनछुए हिस्से को उजागर कर आप उसे सामने लाई. ऐसे मुद्दों पर शोध की जरूरत है . पांडे जी ! अगला पन्ना उठाइये .. बहुत कुछ सीखने को मिलता है आप लोंगो से ..

1 comment:

  1. सर ये तो आप लोगो के द्वारा ही दिए हुए ज्ञानपुंज है आपके लेख से दयानंद जी की बातो को एक और मोड़ मिलेगा अतःएव आपके ये लेख साझा कर रही हूँ

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