Thursday, May 31, 2012

रणजीत कपूर क्रमश;-------------------
कल जब मै अपने दोस्त रणजीत कपूर पर लिख रहा था तो अचानक एक घपला हो गया .उंगली फिसली और पता नहीं क्या दब गया की आधा अधूरा रणजीत 'पोस्ट ' हो गया ..'चंडी भारती 'ने बताया इसे क्रमश; कर दो .चंडी बहुत प्यारी बच्ची है ,मेरे बेटे की हमउम्र है और विश्वविद्यालय से दोनों की जान पहचान है .मै उसे दोस्त कहता हूँ वह मुझे 'सर' कहती है .चंडी के के बहाने उन तमाम जवान हो रहें ,या हो चुके युवजनो से कहता हूँ ,बात करो ,बहस करो तो दोस्तों की तरह .पुजारी की तरह नहीं .बड़ों का आदर करना तमीज और तहजीब का हिस्सा है उसकी मर्यादा न टूटे लेकिन बात चीत में उन्मुक्तता होनी चाहिए ...फेस बुक पर अनेक 'देवियों' की बेबाकी से मुतासिर हुआ हूँ .बहार हाल ..
जार्ज जब रेल मंत्री थे मै उनके साथ था .एक दिन रेलवे बोर्ड के अपने दफ्तर में बैठा था .की अचानक रणजीत कपूर और मधुजी आ पहुचे .भीड़ बहुत थी .अचानक मेरी निगार रंजित भाई पर पडी .हम बहुत दिन बाद मिल रहें थे .भीड़ को किसी तरह बाहर करके हम्तीनो जन बैठ कर बतियाने लगे .अचानक मधु जी ने कहा -चंचल हमें एक फोन चाहिए ..रंजित का बाम्बे से संपर्क नहीं बन पा रहा है ..मैंने अपने सचिव को बुलाकर कहा की पता लिख लो और इसे चंदर (ड्राइवर) को देदो की सुबह वह हमें याद दिलादे ... यह उन दिनो की बात है जब दिल्ली जैसे शहर में टेलीफोन लगवाना बहुत मुश्किल काम था .हम काफी देर तक गप्पे ठोकते रहें पुरानी बाते याद करते रहें .
दूसरे दिन रंजित के घर फोन लग गया .उधर से रंजित की आवाज थी .. सुनो चंचल ! आज तुम्हे घर आना है डिनर पर .. तुम और दीदी (सुमिता चक्रवर्ती ) जरूर आना .पहुचे साहब वहाँ दो एक जन और उनमे कैफी आजमी साहब भी थे .खैर खाना पीना हो गया . खाते समय एक वाकया हुआ मटन में मिर्चा बहुत ज्यादा था कईयों की आँख से पानी गिरने लगा ..कैफी साहब ने मजेदार बात कही -मियाँ! मटन में और मोहब्बत में अगर आंसू न गिरे .. क्या मजा ? अब सुनिए मिर्चे की अंतर कथा -रंजित दिल से राजा है लेकिन खीसे का करे ?और यह उन दिनों की बात है जब रणजी केवल थीएटर तक ही मह्दूद् थे .फिल्म में नहीं गए थे .और थिएटर सब कुछ देता है लेकिन पैसा नहीं देता ... अंतर कथा बताया मधुजी ने .एक दिन बंगाली मार्केट में मिल गयी हम लोग काफी पीने नाथू स्वीट में गए .उनदिनो नाथू स्वीट रंगकर्मियों का अड्डा हुआ करता था .'उधारी खूब ' चलती थी लेकिन दूकान माल्क से नहीं ,बैरों से ..बैरे अपने पास से पैसा जमा कर देते थे बाद में उधारीवाला उस बैरे को दे देता था .आज भी कोइ पुराना बैरा मिल जाय तो सुनिए इन फ़कीर बाब्शाहों के किस्से .राज बब्बर ,नशीरुद्दीन शाह ,तमाम लोंगो के किस्से है ...तो मधु ने बताया की यार जानते हो उस दिन क्या हुआ ..खाना बना था केवल चार लोंगो का दो तुम थे दो हम थे .. लेकिन रंजित की आदत तो तुम जानते ही हो .. न्योता बाटने में उस्ताद .. जब लोग बढ़ गए तो अकल भी उसी ने बताया .. मिर्चा बढ़ा दो .. और जो हुआ तुमने देखा ही ..सबसे मजा तो तुम लोगो के जाने के बाद आया .. जब मैंने रंजित को हडकाया की देखा मिर्चा डालने का असर ? तो जानते हो क्या बोला ..अगर मिर्चा ज्यादा न गिरा होता तो आजमी साहब ने जो कहा .. वो क्यों कहते ? मटन और मोहब्बत में आंसू न आये तो फिर मजा ही क्या ..
लेकिन डीअर चंडी ! रंजित अभी बाकी है ..मंच पर हसाने वाले कितना रोते हैं .. किसी ने देखा है ?

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