Monday, May 28, 2012

मोटू ने कहा है -------
तुम निहायत ही  नामाकूल इंसान हो ,सच तो यह  है की तुम्हे यह भी नहीं मालुम की तुम जो कुछ भी लिख रहें हो वह कबाड का भी भाव नहीं रखता .आज जो चर्चा में है कल अपने आप बिला जायगा .(मैंने उसे टोका था -'बिला' फेस बुक पर नीलाक्षी जी का लाया हुआ शब्द है बुरा मान गयी तो .. ? उसने जो कहा मैंने नहीं सुना ,लेकिन वह रौ में रहा )लिखो वह जो देश काल और परिस्थिति को फलांग कर आगे निकल जाय और अपना मुकाम बना ले . पत्रकार मत बनो यह जमीन का सबसे जहीन और सचेत जीव होता है जो रोजमर्रा की जिंदगी का लेखा जोखा रखता है और घूम घूम कर आइना दिखाता रखता है ,जब तक यह 'आन ड्यूटी' है तब तक यह यह बहुत कीमती है लेकिन जिस दिन इसने कलम कान पर रखा यह ओझल हो जाता है .... डीअर ! इतहास वर्तमान के अंतरद्वन्द पर खड़ा होता है ..तय कर लो वर्तमान में ऐश चाहिए या इतिहास में मोकाम ?...फैसला तुम्हारे हाथ है ..दलाली में लग जाओ सरकार तक चले जाओगे ..... कुआं खोद कर पानी पियोगे ग़ुरबत में जियोगे अब फैसला तुम्हे करना है रा.शु. बनना चाहते हो या अदम गोंडवी .. ?  'बाबूजी' पर लिखोगे या बाबू लाल हरिजन पर ..?बाबूजी सियासत की विसात पर बड़े मोहरों को चलाते हैं और बाबू लाल खटिया बीनते हैं ..?... सुनो ! पत्रकार की ....बनते हो (हमें इस शब्द से एतराज है ,लेकिन भाषा की भी तो रवानी होती है .. मै चुप हूँ और सुन रहा हूँ ) तुमने कभी सोचा की इंसान की सभ्यता में सियासत बड़ी है या खटिया ? खटिया का इजाद सहूलियत के लिए हुआ है और सियासत का बंदोबस्त खटिया खड़ी करने के लिए .तुम खटिया खड़ी करते रहो लेकिन बाबू लाल खटिया बुनते रहेंगे ,......जाओ उससे मिलो ........................
       दोस्तों ! वह मेरा दोस्त है ,दोस्ती का लिहाफ इतना  घना होता है की उसमे जलालत का एक तिनका भी नहीं जा सकता .चुनांचे मै जलील नहीं हुआ लेकिन उसने हमें बाबूलाल हरिजन के घर पहुचा ही दिया ,
      बाबूलाल हरिजन  हैं ,चुनांचे हरिजन टोला में ही आबाद होंगे .और मिले भी वहीं .( इसे कबायली संस्कृति कहते हैं ,एक तरह के जीवन यापन करनेवाले एक गिरोह की शक्ल में रहते हैं .इसके पीछे दूसरे गिरोह से बचने और संगठित रूपसे निपटने की भावना और मजबूरी दोनों रहती है ,भारतीय समाज का ताना -बाना इसी तरह बुना गया है . जब तक इसे नहीं तोड़ा जायगा जातियों के गाँठ खुलेंगे नहीं .) बाबू लाल आठ कलम पास है ,अखबार खोज कर पढता है चाहे वह चार दिन पुराना ही क्यों न हो .बाबूलाल कला कार है खटिया बुनने का .हाथ में हुनर है दूर दूर से लोग बुलाने आते हैं .. चौकड़ी, छगडी . अथ्गुना .. खटिया बुनने की कला है .बाबूलाल के पास वो हुनर है की की बड़े बड़े दांग रह जायं ..... और खटिया ? यह 'बेड' की परदादी है .इंसान बेड पर क्यों सोता है ? इसका जवाब दिया था खटिया ने ... जागृत और सुसुप्ता ... 'सोना' आराम तलबी नहीं है थकान की दवा है .लेकिन वह निश्चिन्त रूप से सोये कहाँ ? खटिया का जन्म यहाँ से हुआ .'विषधर से बचने का तरीका है इनसे ऊपर रहो .. खटिया का इजाद हुआ .हमारे दोस्त रणजीत कपूर ने एक गाना भी इसी पर लिख डाला -;सरकाइलो खटिया जाड़ा लगे '.. अब आप समझ गए होंगे मै किस खटिये का जिक्र कर रहा हूँ ..यह खटिया शहर में नहीं पाई जाती .क्यों की शहर में जाड़ा नहीं लगता .इसलिए खिसकाने की जरूरत ही नहीं पड़ती ,वहाँ पहले से ही खिसकी रहती है .मुला गावं में  यह सुविधा अभी तक नहीं पहुच पाई है .लोग खटिया खिसकाते हैं खटिया जरूरत है इसलिए बाबूलाल ज़िंदा हैं .उनका पहला सवाल होता है ..पलंग है ? खटिया है ? बस् हट है ? झेल्गांहै ?.. मजूरी उसी हिहाब से .. पलंग के चार किलो ..एक कलाकार चार किलो अनाज पर है ....इसके वोट पर करोड़ो का खेल जारी है ... अम्बेडकर को देवता बनाने के लिए मार करोगे लेकिन बाबू लाल को ज़िंदा रखने के सवाल पर बगल झाकोगे ...?  मै बाबूलाल का रेखा चित्र बना रहा हूँ और बाबूलाल अपनी सरकार बना रहें है .....

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