Sunday, October 8, 2017

काशी विश्व विद्यालय ; जीत गयी छात्राएं
चंचल

     देश नही, दुनिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है . परिसर में तकरीबन डेढ़ लाख की आबादी एक साथ रहती है / दिलचस्प बात यह है की जिसके लिए यह संस्थान बना
वह है विद्यार्थी और उसकी तादात सबसे कम है . यहाँ बमुश्किल से कुल बीस हजार छात्र होंगे बाद बाकी कर्मचारी और अध्यापक हैं . कुलपति इस संस्थान ' केयर टेकर ' होता है .जो इस परिवार को जनतांत्रिक तरीके से चलाता है और मुख्यतया शिक्षण और प्रशिक्षण गतिविधिया .लेकिन यहाँ जो भी कुलपति आता ही , यहाँ की सुविधाये, साधन , और रुआब का खाका देख कर उस चका चौंध का शिकार हो जाता है और तानाशाह की तरह व्यवहार करने लगता है . इसके इस तानाशाही स्वरुप को और भी खुला मैदान मिलता है जब छात्र संघ कमजोर हो या हो ही नही . इस समय काशी विश्व विद्यालय जो चर्चा में आया उसके पीछे यही कुलपति की ताना शाही खेल ही रहा है . ऐसा नही की य्ह्पहले कुलपति हैं जन्होने अपनी मर्जी से विश्वविद्यालय का संचालन किया , इसके पहले भी इससे ज्यादा मजबूत और 'ताकतवर ' कुलपति आये और जम कर हुकुमत करके गये लेकिन उनके उपर इस तरह के आरोप नही लगे जी इस कुलपति पर लग रहे हैं . यह कुलपति संघ का कार्यकर्ता है , यह घोषणा खुद कुलपति ने किया है . केंद्र में और राज्य में भी संघ की सरकार है .जाहिर है की कुलपति कोम्न्मानी करने की खुली छुट  मिल  गयी .. अब यहाँ से कुलपति ने ओ काम शुरू किये .एक - संघ के उसूल को लादना शुरूकिया .और दुसरा धन की उसूली .संघिकार्यक्र्म की गतिविधियों को विश्वविद्यालय द्वारा संचालित करने लगा . संघी व्याख्यान . सेमीनार , व अन्य कार्य क्रम विश्वविद्यालय के  स्थायी कार्यक्रम बन गये .इसमें राजनीति विभाग के अध्यक्ष को साथ जोड़ा जो की खुद संघ का घोषित कार्यकर्ता रहा . अगर विश्वविद्यालय के तीन सालों की जांच हो और कार्यक्रमों पर आनेवाले खर्च और उसमे भागीदारों के नाम उजागर हों तो सब एक मस्ट संघी निकले गें .
  दुसरा - इस मौजूदा कुलपति गिरीश चन्द्र कुलपति बनते ही सबसे पहले पूर्व कलपती  द्वारा नियुक्त लोंगों को दिक्कत में डालना शुरू कर दिया यहाँ तक की उनके नियुक्तियों को भी अवैध करके उन्हें निकालने का एक तरफा फैसला कर लिया .और फिर नई नियुक्तियों में मनमानी पैसा लेता रहा कुल तीन सौ के उपर हुयी नियुक्तियों पर शक की सुई लटकी पडी है .और यह जांच के दायरे में है .दिल चस्प बात है की नियुक्ति कमिटी और इक्ज्क्युतिव कमेटी दोनों का सदर कुलपति ही होता है . इसने वहाँ भिम्न्मानी की है और इसतरह से की एक बलात्कार का आरोपी नही बल्कि सजायाफ्ता डाक्टर ओ पी उपाध्याय को हास्पिटल का स्थायी अधीक्षिक नियुक्त कर दिया . विश्व विद्यालय में इन दोनों बातों कोलेकर चिंगारी सुलगती रही . इसी बीच कुलपति ने छात्र्राओं के अधिकारों का अतिक्रमण कर के लिंग के आधार पर बाँट कर पीछे धकेल दिया . कुलपति का आदेश निकला पहले ड्रेस कोड - लडकियां क्या पहने , क्या न पहने , फिर दुसरा कानून आया - छात्राएं निरामिष भोजन ही खा सकती हैं . तीसरा कानून आया - कर्फ्यू टाइम . ८ बजे के पहले हर हाल में छात्र्राओं को छात्रावास में अपने आपको बंद कर लेना पडेगा . रात में मोबाइल सुविधा से लडकियां वंचित कर दी गईं .शाम से केन्द्रीय पुस्तकालय में छात्र्राओं को जाने पर रोक्ल्गा दी गयी .यह सब सुलगता रहा . अचानक एक विस्फोट हो ही गया .
        २० सितम्बर को फाइन आर्ट्स कालेज की एक लड़की को कई अवांछनीय सोह्दों ने  छेड़ा , और जब लड़की ने नजदीक ही बैठे प्राक्तोरिय्ल बोर्ड के लोंगो से शिकायत किया तो उधर से जवाब मिला - इतनी देर सर क्यों वापस जा रही हो , चुपचाप हास्टल जाओ की रेप होने तक यहीं रुकी रहोगी . यह वारदात महिला छात्रावास में आग की तरह फैली और लडकिया प्रदर्शन करने लगी . मुख्य द्वार बंद हो गया . हजारों छात्र्राओं ने अद्भुत एकता का परिचय दिया और बिलकुल अहिंसक तरीके से .दुसरे दिन उसी रास्ते से प्रधानमन्त्री को जाना था .यह संयोग ही था की इसी बीच प्रधान मंत्री का काशी आगमन हो गया . यदि मोदी जी कार्यक्रम न बदलते और छात्र्राओं को सुरक्षा मिलेगी , का आशास्वान भर दे देते तो सब वहीँ  शांत हो जाता लेकिन ऐसा नही हुआ और नतीजा यह निकला की जिला प्रशासन और विश्वविद्यालय प्रशासन ने सामूहिक रूप से यह नतीजा निकाल लिया की मोदी जी ने छात्र्राओं से निपटने के लिए खुली छुट दे दी है .फिर तोजो नंगा नाच शुरू हुआ वह शायद ही किसी सभ्य देश में हुआ होगा . छात्रा वास का गेट तोड़ कर  पुरुष पुलिस ने महिलाओं को घसीट घसीट कर मारना शुरू किया . दो दिन बाद उत्तर प्रदेश किसरकार हरकत में आयी और पुलिस के इस निकम्मी हरकत पर जांच बैठाया है . विश्वविद्यालय बंद कर दिया गया है लेकिन आग सुलग रही है .

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