Monday, September 11, 2017

चिखुरी / चंचल

राजनीति - राजनीति = सब कुछ
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजनीति की सीधी और सरल परिभाषा है - एक सोच जो आख़िरी इंसान तकको बेहतर जीवन दे .ऋग्वेद की एक ऋचा है जानाति इछति अथ करोति .इच्छा , ज्ञान और शक्ति .
कुछ भी करने के लिए ये तीन तत्व जरूरी होते हैं . राजनीति  इन्ही तीन तत्वों से स्थापित होती है . इसमें साध्य अगर पवित्र है तो साधन भी उतने ही पाक साफ़ होने चाहिए .आजादी की लड़ाई में हमने यही रास्ता अख्तियार किया और गांधी जी के नेतृत्व में आजादी हासिल किया .यहाँ एक छोटा सा सवाल उठाया जा सकता है जो अक्सर नही उठाया जाता . जिस समय कांग्रेस अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ले रही थी एनी दल क्या कर रहे थे ? और कौन  कौन दल सक्रीय रहे . कई संघन ऐसे रहे जिनका मानना था की सत्ता हथियार से बदली जा सकती है .इसमें कई नाम हैं शहीद भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद , सुभाष चन्द्र बोस , वगैरह . दूसरा बड़ा दल था कांग्रेस .जो बापू के सत्य और अहिंसा को सामने  रख कर सिविलनाफ़रमानी के हथियार से अंग्रेजी निजाम को टक्कर दे रहा था . सोवियत रूस के उदय के बाद भारत में साम्यवादी दल भी बन चुके थे लेकिन उनकी नीतियाँ भारतीय न होकर अंतर्राष्ट्रीय रही और वह दल उसी के अनुसार अपनी नीतिया बना रहे थे .उदाहरण के लिए जब ४७ का कांग्रेस ने  अंग्रेजो भारत छोडो का आन्दोलन चलाया तो साम्यवादियों ने न्ग्रेजों का साथ दिया . क्यों की उस समय सोवियत सरकार हिटलर के खिलाफ अंग्रेजों के साथ हो चुका था . १९२५ में बना रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ उससे भी जलील हरकत पर उतर कर अंग्रेजों का साथ दे रहे थे .दिक्कत क्या है की हम इस पीढ़ी को इतिहास नही दे पाए .हमने अनेक रास्तों से नई पीधिको काँवरिया और डी जे तो दे दिए लेकिन उसे यह नही बता पाए कि बाचा खान जिन्हें लोग सरहदी गांधी के नाम से जानते हैं , ने इस मुल्क में लाल कुर्ती नाम से खुदाई खिदमदगार नाम की संस्था बना कर हिन्दू और मुसलमान दोनों का विशवास अर्जित किया .लेकिन आज ?
     सत्ता के मद में चूर सरकारी दल के लोग अपनी आलोचना तक सुनने को तैयार नही हैं . अभी क्ल५ सितम्बर को कर्नाटक की एक जांबाज पत्रकार गौरी लंकेश कोगोलिमार कर हत्या कर दी गयी . हम हिंदी पट्टी के लोग अपने कुंए में बैठ कर देश  दुनिया खबर पर वक्त जाया करेंगे लेकिन अपने पड़ोस की बड़ी घटना सेकत्तई दूर रहते आये हैं .कर्नाटक दक्षिण भारत का प्रसिद्द सूबा है . अब तक यह  साम्प्र्दैक आग की लत से बहुत दूर रहा है लेकिन विगत कुछ वर्षों से यहाँ भी साम्प्रदायिक सौहार्द्य बिगड़ा है .इस सौहार्द्य को बनाये रखने के लिए यहाँ समाजवादी लोहियावादी लोंगो का एक बड़ा जमावड़ा रहा जिसमे केवल राजनीतिक लोग ही नही रहे बल्कि कला और पत्रकारिता के भिलोग रहे हैं .इनमे ग्गिरिश कर्नाड , यु आर अनंत मूर्ति .बी व् कारंत , पी लंकेश , जैसे बहुत नाम हैं . कल जिसकी ह्त्या की गयी वह प्रसिद्द समाजवादी , लेखक , पत्रकार , फिल्म निर्माता पी लंकेश की बेटी गौरी लंकेश है .गौरी का गुनाह इतना भर रहा की वह हिन्दू साम्प्रदायिकता और उसकी हिंसक राजनीति की खुली मुखालफत करती रही . आज पत्रकारिता के इतिहास का का यह काला दिन है जब एक पत्रकार को उसे मौत के घात इस लिए उतार दिया गया कईं की उसकी जुबान में ताकत थी . सच बोलने का जज्बा था . पत्रकारिता की दुनिया में लंकेश पत्रिका बगैर किसी विज्ञापन के छपती रही .अपने आखिरी सम्पादकीय में गौरी ने संघ के अफवाह उड़ाने की कला पर विस्तार से लिखा था . गणेश चतुर्दशी के अवसर पर संघ ने पूरे कर्नाटक में वशिला माहौल बनाया लेकिन उसे सरकार ने उघार कर दिया .
       अब वक्त है किलोग सही रास्ते को चुने और अपनी बेहतरीन दुनिया बनाएं
गौरी लमेश का बलिदान अकारथ नही जायगा .
सादर श्रद्धांजली गौरी लंकेश को .

No comments:

Post a Comment