Sunday, July 23, 2017

चिखुरी चिचियाने / चंचल
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 जी यस टी का भाव बताओ भाई !
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   कल हमने जिक्र किया था की बिकास के नाम पर गाँव की मुलायम पगडंडियों को ककरीला,  किया गया फिर उस पर तारकोल ढँक कर काला किया गया .कहा गया की विकास
इसी पर चलता है . विकास की दूसरी क़िस्त आयी बिजली का खम्बा ले कर . गान ने यकीन किया की सरकार की बात है , घोंचू तेली की बात थोड़े ही है की दुबई की बनी साडी
 बेच कर ससुरा अपनी बर्दवान ठीक कर लेगा . जनता , जनता है फरेब में आ गयी किसी ने उससे पूछा तक नही की अबे घोंचू ! कब से दुबई में सादी बन्ने लगी ?
- भैये ! नाम का रक्खा है ,बक्सावाली सादी पहनेगी कि दुबई ? जैसे सुरत वैसी सर्जाह . बात सही है . तो सरकार काहे ऐसा घपला  करेगी . तो साहब विकास हो गया इका पक्का साबुत देखना हो तो सुबेके किसी गाँव में जाकर देख्लीजिये सडक के किनारे एक खोखा जरुर खडा मिलेगा . जहां दिन भर चाय मिलेगी , हॉट सांझ  राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू . सुबह , शाम पूरा गाँव खाली मिलेगा सडक का खोहा आबाद रहेगा . अरसे तक चिखुरी  इस चौराहे की तमीज के खिलाफ रहे लेकिन जब थक गये तो खुद चौराहे पर जाके बैठ गये . जैसे समाजवादी कांग्रेस से बाहर निकला ,क्रान्ति करने , क्रान्ति नही कर पाया तो लौट कर अपने घर कांग्रेस में जा बैठा . वही हाल चिखुरी का भी रहा .उमर दरजी , लखन कहार , नवल उपधिया कयूम डग्गा मास्टर
को अकेले छोड़ कर चिखुरी जाते कहाँ . सो लाल साहेब सिंह की दूकान पर अड्डेबाजी शुरू हो गयी .
         हिंदी पट्टी में राजनीति चबैना है / खीसे में रहती है जब जहां मौक़ा मिला शुरू . ये बात दीगर है की वह आपको नही सुनायी पड़ेगी क्यों की आप मोदी , जेटली , राहुल , यचूरी को
सुनने के आदी हैं और आपको यह आदत दो जगह से पडी है . एक अखबार से , दुसरा डिब्बे से . और इन दोनों की मजबूरी है ओहदे दारों की बातों को फैलाएं कमबख्त चाहे जहर
ही बोले  . चोर . चम्चोर . बलात्कारी , मवाली , बवाली कल तक टाट पांत से बाहर कर दिए जाते थे , हुक्का पानी बंद कर दिया जाता रहा आज उनका अपराध और उस अपराध का पैमाना
उनकी औकात बन रहा है .अब यह सवाल जेरे बहस होने लगा है . देश में केवल एक संसद नही  है . कांग्रेस की कृपा से यह देश और इसका निजाम संसद दर संसद से चलेगा . गाँव गाँव में संसद है . बैठकें होती हैं , बयान जारी होते हैं लोग सुनते हैं लेकिन कम लोग . लाल साहब की दूकान पर संसद बैठी है . कार्यवाही शुरू
_ ई  जेस्टी के है , भाई ?
- जेस्ती ? एक साथ तकरीबन सब चौंके , बस दो जन को छोड़ कर . एक मद्दु पत्रकार ( नाम है महंथ दुबे लेकिन जब से पत्रकार हुए हैं उनका नाम अखबार ने ही काट कर बांणा कर दिया चाभुती की तर्ज पर महान्थ्दुबे से मदु हुए , लयकारी के चलते मद्दु हो गये )और दुसरे रहे चिखुरी दुबे जो अमूमन चुप्र्हते हैं और जब मुह खोलते हैं तो बोलते नही चीखते हैं . इस चीख को नवल उपधिया कहते हैं चिखुरी चिचिआने .
- जेस्टी ...... कोलई दुबे बताय रहे थे यह तरह की गाय है जो जर्सी से भी ज्यादा दूध देगी , अब पुराने जमाने की तरह देश में दूध और घी की नदी बहेगी , यह बात कोलई दुबे किसी नामी उकील से सुन के आये हैं जो कचहरी में नीमतले बोल रहा था . औ ...... लखन कहार की बात उमर दरजी ने बीच में ही काट दिया - जान रहें कहें मगर अब पानी नही मिलेगा एवज में
दूध लो या घी ? नवल ने टोका - और दही कहाँ गयी ? कयूम मुस्कुराए - बरखुरदार नवल ! दही का मजा तो उसी दिन बिगड़ गया जिस दिन तोहार माई फुकती से दही क मटिया ही ढक
के उठ गयी . और का ठहाका उठा कई चीजें अस्त व्यस्त हो गईं .  गौरयों का झुण्ड जो धूल में नहा रहा था पंख झाड कर फुर्र से उड़ गया , करियवा कुरुर रात भर जगा रहा कुनमुनाया
निहारा और फिर सो गया . मद्दु पत्रकार जो अब तक दायें गोलार्ध पर टिके थे , पहलु बदल कर बाएं पर आ गये . चिखुरी मुस्कुराए - ; कमबख्त शहर होता तो अब तक आग  के हवाले हो गया होता लेकिन गाँव का ताना बाना देखिये कयूम मियाँ नवल के चचा लगेंगे गाँव के रिश्ते में . गालियों के खुले पन ने धर्म , जाती , लिंग वगैरह की जो दीवारे हैं वो भास्का देती हैं .
- मजाक नही , सच्ची   बताया जाय का है ई जेस्टी ?
अलग अलग मत मनान्त्र का रोर जब कानफोडू हो गया तब चिखुरी चीखे - अथी है  जेस्टी . जब से आवा है एक न एक काम बे वजह का लगा देता है . इधर नोट बंदी , उधर विदेश
रवाना . इधर जी यस टी , उधर विदेश रवाना . किसको मालुम है की क्या है जी यस टी ?सरकार खुद नही मालुम है का  कर लोगे ? नवल उठ गये . अक्सर यह होता है जब चिखुरी
चिचिआयेंगे , नवल पंचम में एक सुर उठाएंगे और साइकिल से आगे बढ़ जायेंगे -
  दिनवा गिनत मोर घिसल रे अंगुरिया ...........






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