Monday, May 22, 2017

पर कथा

रे हे मीम अलिफ नून।
असलम परवेज खान की एक दुकान हुआ करती थी दालमंडी में । दालमंडी  , को नहि  जानत है जग में । काशी की आबरू यही आकर टिकती है । ऊपर  कोठा नीचे कोठरी । कोठरी में दुकान । इन्ही दुकानों में एक दुकान सुंघनी साव की  भी रही जिसपर उनकी औलाद ने न केवल दुकान चलाया बल्कि हिंदी साहित्य को अमर कर गया । जयशंकर प्रसाद । कोठे की ताकती आंख पर मर मिटा था - जो घनीभूत पीड़ा थी , मस्तक में । कागज पर गिरी । कामायनी आ खड़ी हुई । इसी   गली में एक आंगन में  एक उस्ताद बैठा है  बिस्मिल्लाखां । रहमान खड़ा है इसी दाल मंडी में । अपने दोस्त असलम परवेज खान की दुकान पर । ढिबरी , लालटेन , पेट्रोमेक्स, चिमटा जो चाहिए ले लीजिए लेते समय गद्दी की ऊपर लटकी तख्ती को जरूर देखिए ' उधार प्रेम की कैंची है '
बुर्के से निकले गोरे हाथ के जाने के बाद असलम ने पलट कर रहमान से पूछा - जी ! क्या चाहिए आपको ?
- कैंची
- अयं ! तुम  ? अबे अब तक बाहर हो ? और ये लिबास ?
- अबे!मियां भूख लगी है ?
- अंदर आ जाओ । जो भी खाना हो इसे बता दो । और खा पी कर दफा ही जाओ ।
- भाड़ा
-  ए रख लो   दस दस के कई नोट रहे । दबा के खाया यही सीखा उर्दू की पहली इबारत अलिफ । असलम आज दमदार इंजीनियर है हमारा उस्ताद है । हम उस परिवार के सदस्य हैं । असलम पर अलग से लिखूंगा ।
              और दालमंडी को नीचे से ऊपर की ऒर देखा ।आदाब ! दालमंडी ! हम नही बोले , दस दस के नोट बोल रहे थे । पूरे इत्मिन्नान के  साथ चौक थाने के सदर गेट पर आकर खड़े हो गए । हिंदुस्तान की पुलिस कमाल की है । आप इससे डरेंगे डरायेगा , घुड़क दीजिये ,रास्ता दे देगी   अपराध  कर के थाने में जाकर बैठ जाइए ,आपको भगा देगी । 71 में हम इनकी लड़ाई लड़ चुके थे । तब बाबा  रामा नंद तिवारी जी जिंदा थे । (कमाल का इतिहास है तिवारी जी का , हम लोग इन्हें बाबा बोलते थे इनके परिवार में भाई शिवानंद तिवारी जी ही नही हैं हजारों लोग हैं ये किस्सा फिर कभै ) थाने के सामने खड़े होकर सिगरेट पिया रिक्सा रोका
चौकाघाट जेल चलोगे ?

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