Thursday, November 14, 2013

श्रद्धांजलि /
हरेकृष्ण देवसरे के बहाने .....
        वे बाल साहित्य के लिए आये थे ,और 'बाल दिवस ' के ही दिन महा प्रस्थान  पर निकल गए . (१४ नवंबर २०१३ ) उन्होंने हिन्दी में जो शोध किया था वह बच्चों के साहित्य पर था . उन्होंने कई दर्जन किताबे लिखी सब बच्चों के लिए . रेडियो ,दूरदर्शन पर जो काम किये वे सब बच्चों को केन्द्र में रख कर . हमारी उनकी मुलाक़ात तब हुई जब वे बच्चों की पत्रिका 'पराग ' के संपादक हो कर आये . उन दिनों हम पराग में ही थे . यहाँ हम विषयान्तर कर रहे हैं .
       'पराग' टाइम्स घराने की पत्रिका रही और बच्चों से लेकर बड़ों तक इसे चाव से पढते थे . यह वह दौर है जब टाइम्स घराना अपना निजाम बदल रहा था . नयी पीढ़ी आ चुकी थी . अशोक जैन , रामाजी जैन विदा हो रहे थे उनकी जगह आरहे थे समीर जैन .ऋचा जैन . रमेश जैन जिन्होंने बहुत मेहनत मसक्कत से टाइम्स घराने के तानेबाने को कस कर बनाया हुआ था ,उन्हें हासिये पर डाल दिया गया था . एक नयी सोच लेकर 'बच्चे ' उत्साहित थे . लेकिन उन्हें लगा कि जब तक 'स्थापित ' नामो को हटाया नहीं जायगा तब तक उनकी मनमानी नहीं चल पायेगी . पला काम हुआ कि 'सारिका ' से कमलेश्वर को हटाने का तरीका एक ही है उसे बंबई से दिल्ली कर दिया जाय . वही हुआ और कमलेश्वर जी ने जिन्होंने बंबई में अपनी जड़े जमा ली थी ने दिल्ली आने से मना कर दिया . 'माधुरी ' हिन्दी एक मात्र सिनेमा पत्रिका से अरविन्द जी को हटना पड़ा . और बाद में उसे भी बंद कर दिया गया . इलस्ट्रेटेड वीकली से खुशवंत जी पहले ही बाहर आगये थे . धर्मवीर भारती 'धर्मयुग से रिटायर हो चुके थे . मामला बड़ा गड्ड मद्द हो चुका था . दिनमान के सम्पादक बनाए गए कन्हैया लाल नंदन . नंदन जी को मालुम था कि उनके मातहत होकर सर्वेश्वर जी काम नहीं करेंगे . इस लिए सर्वेश्वर जी को पराग का संपादन सौपा गया . यहाँ एक और दिलचस्प घटना घटी .
  एक दिन सर्वेश्वर जी ने हमसे कहा कि मै पराग में आ जाऊं . हमने कहा जो भी काम हो बताइये हम तो हैं ही .बोले नहीं तुम्हारा नाम 'पराग ' में जायगा वह भी एक कार्टूनिस्ट की हैसियत से . हम वाकई तैयार नहे थे लेकिन उनकी बात भी नही टाल सकता था .  अचानक पर्सनल डिपार्टमेंट से हमें सन्देश मिला कि आज ग्यारह बजे आपका इंटरव्यू है . मै पहुचा . उन दिनों टाइम्स एक फ़ार्म भरवाता था जिसमे एक कालम होता था कि आप कितने 'तनखाह ' तक में काम करने को तैयार हैं ? हा,मने उसमे छ हजार लिखा . (उन दिनों संपादक की भी तनखाह इतनी नहीं करती थी ) अंदर गया .मुख्य कुर्सी पर रमेश चंद जैन बैठे थे ,बाकियों को हम नहीं पहचानते थे .सारी तक झक तनखाह  को लेकर हुई . रमेश जी ने सर्वेश्वर जी से फोन पर बात की और फोन हमें हमें पकड़ा दिया . सर्वेश्वर जी ने कहा - पंडित जी आप दस्तखत कर के  चले आइये . हमने वही किया और पराग में आ गया .
      एक साल बाद अचानक सर्वेश्वर जी का निधन हो गया . और उनकी जगह आये डॉ हरेकृष्ण देवसरे . हम उनसे परचित नहीं थे . और हमने नौकरी छोड़ने का मन बना लिया . उन्ही दिनों हमारी दोस्त रंगमंच की एक बड़ी कलाकार दीपा साही जो आजकल केतन मेहता  से शादी करने के बाद दीपा मेहता के नाम से जानी जाती हैं और फ़िल्मी दुनिया की बड़ी हस्ती हैं , टाइम्स में ऋचा जैन की सलाहकार होकर आ गयी थी ,उनसे हमने कहा कि यार अब हम नौकरी नहीं करेंगे .बहर हाल दीपा और ऋचा ने हमें बुला कर आस्वस्थ किया कि कोइ दिक्कत नहीं होगी .
    दूसरे दिन देवसरे जी ने हमें बुलाया और लंबी बातचीत हुई .फिर हम दोनों के बीच बड़े अच्छे रिश्ते बने और आखीर तक रहा . उनका इस तरह से जाना अखर रहा है .
उन्ही देवसरे जी को उन तमाम बच्चों की तरफ से पुष्पांजलि अर्पित करता हूँ जिनके लिए वे आजीवन लिखते रहे .
नमन

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