Thursday, November 14, 2013

यादें /चंचल
दीनदयाल हर गलत से लड़ते रहे 
दीनदयाल ता उम्र संघ विरोधी रहे . बेहिचक ,बेख़ौफ़ , उससे लड़ते रहे . भाषा से कर्म से . ७७ में हम जेल से छूट कर आये थे . देबूदा ( स्वर्गीय देवब्रत मजुमदार ) यह तय कर चुके थे कि हमें ही चुनाव लड़ाएंगे . गोकि  हम इस पक्ष में नहीं थे . लेकिन देबू दा ने मधु जी को(स्वर्गीय मधु लिमये ) को पहले समझा चुके थे कि उसे ही लड़ाना है . हमने जब मधू जी से कहा कि हमें संसद का चुनाव लड़ने दीजिए तो मधुजी ने मना कर दिया . बोले नहीं तुम्हे विश्वविद्यालय का चुनाव लड़ना है . बहरहाल हम आ गए . सयुस में दीनदयाल एक हस्ताक्षर रहे . दो जन थे जो दीनदयाल से बेख़ौफ़ बात करते थे एक देबू दा जो दीनदयाल को बगैर जी लगाए बोलते थे दूसरे थे राम बचन पांडे (छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और समाजवादी ) वो तो बाज दफे दीनदयाल को 'कनवा' तक बोलते थे . दीन दयाल के पास सयुस के अलावा एक संगठन और था . जो कुछ भी कर सकता था . मसलन आंदोलन के समय किसी भी इमारत में आग लगा देना , पुलिस से कैसे भिडा जाता है , किसी की भी सभा को कैसे उखाडा जाता है आदि आदि .
उस चुनाव में संघियों ने हमपर आरोप लगाया -'गेस्ट हाउस 'कांड का जवाब दो . बंदे मातरम . दीन दयाल जी ने उसका काट निकाला -'हाफ पैंट खोल के बोलो बन्देमातरम ' दीनदयाल की यह खोज रात भर में विश्वविद्यालय के अंदर और बाहर प्रचलित हो गयी .यहाँ तक कि महिला छात्रावासों में भी यह नारा गुजने लगा . हमारे खिलाफ विद्यार्थी परिषद से भाई महेंद्र नाथ चुनाव लड़ रहे थे . हम दोनों आपातकाल में साथ साथ जेल में रहे थे . हमारे बहुत अच्छे दोस्त भी रहे . लेकिन थे संघी . एक दिन हम लोग टंडन जी के यहाँ चाय पी रहे थे . इतने में महेंद्र नाथ सिंह भी वहीं आ गए . महेंद्र नाथ ने कहा भी दीन दयाल जी !मेरे ऊपर भी तो कुछ दया करिये हम लोग एक ही जिला जवार (दोनों बलिया से रहे ) से हैं .दीन दयाल ने अपनी भाषा में जवाब दिया -नाट! नाट जी !! इतने में रामबचन पांडे ने दूसरा प्रस्ताव दिया- महेंदर जी ,आप दीन दयाल की शादी करवा दीजिए . जोर का ठहाका लगा . दीनदयाल ने शर्त रखी ,लेकिन वह समुच होनी चाहिए . महेंदर ने कहा यही तो दिक्कत है , दीन दयाल भाई ऐसी जगह से गलत हैं कि सब को आसानी से दिखाई पड़ जाता है . दीनदयाल ने अकाट्य तर्क दिया - जो दोनों आँख से समूचहैं उन्होंने ही क्या उखाड़ लिया है . ?
इसका किसी के पास जवाब नहीं था .
        चुनाव हुआ . हम जीते . हर तीसरे दिन दीन दयाल जी आ जाते . आफिस से सादा कागद लेते . हमारे सामने रख देते . बोलते काम के नहीं हो इस पर इस्तीफा लिख दो . और हम चुपचाप लिख्देते . दीन दयाल जी उस कागद को जेब में डालते और चुप चाप निकल जाते . एक दिन पांडे जी ( छात्र संघ के चपरासी थे ,हमारे अभिभावक थे ) हमारे पास आये और बोले -यह दीन दयाल हर दूसरे दिन एक कागद बर्बाद करता है ,यहाँ से इस्तीफा लिख्व्वायेगा बाहर गेट तक जाते जाते फाड़ कर फेंक देता है . हमने कहा क्या करें पांडे जी . पांडे जी ने कहा मै उससे बात करूँगा . बात आयी गयी हो गयी . एक दिन पांडे जी आये और मेरे हाथ में दोतीन इस्तीफा देते हुए बोले इसे अपने दराज में रखे रहा करो जब वह इस्तीफा मागे तो उसे यही दे दिया करो . मैंने वही किया . दो दिन बाद फिर दीनदयाल जी नमूदार हुए . किसी काम नहीं हो इस्तीफा लिखो . मैंने सफ़ेद कागद ले लिया और दराज से निकाल कर एक इस्तीफा दे दिया . दीन दयाल चले गए . थोड़ी देर बाद फिर लौटे . हमसे बोले -थाने फोन करो . हमने पूछा क्यों ,क्या हुआ ? छात्रसंघ में चोरी हुयी .
    किसकी चोरी ?
    पांडे जी का सब सामान गायब है .
    पांडे जी का ? क्या गायब हुआ है ?
    उनकी चुनौटी, खैनी की पुडिया , कुछ जरूरी कागजात .
    हमने कहा जाने दीजिए दीन दयाल जी ,उनके चुनौटी और खैनी का दाम मै दे देता हूँ .
    लेकिन कागजात ?
    किस चीज का कागजात ?
    बहुत कीमती है .
मैंने पांडे जी को बुलाया . -पांडे जी कागजात क्या थे ?
पांडे जी हंस दिये . दीन दयाल समझ गए . अच्छा चुनौटी और खैनी का पैसा निकालो . और हमने बीस रूपये दे दिये .
'हाट डाग' के आर्डर पर भरत सिंह उखड गए थे ,इसपर कल .

1 comment:

  1. दुरूह व्यक्तित्व के धनी थे दीनदयालजी ! सैभाग्य है हमारा कि हमने भी उनके अनेकानेक दर्शन किये थे, छात्रसंघ, मधुबन, फाइन आर्ट्स या लंका आदि में ! का.हि.वि.वि. के फाइन आर्ट्स का छात्र होने के कारण, हमें भी आपके अधिक नजदीक होने व अनन्य समर्थक होने का मौका मिला था ! हम आग्रह करते है कि दीनदयालजी का यदि कोई फोटो हो तो उसे फेसबुक पर पब्लिश जरुर करें ! सार संस्मरण के लिए, धन्यवाद !

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