Tuesday, November 12, 2013

चिखुरी/ चंचल
एक रफूगर की तलाश है ....
किस्सा वही पुराना है .
मियाँ उसे बाद में बताना ,पहले ररा नाऊ को सुन लिया जाय ,काहे से कि उसे सैलून खोलना है .पंचाईत का मुह जो कयूम की तरफ था घूम कर ररा नाई की तरफ हो गया . गो कि कई लोगों को इस तबादले 'पोजीशन 'में दिक्कत दर पेश आयी .कोलई दूबे की धोती जो बेंच के 'फांस' में फसी पडी थी वह मसक गयी . लिहाजा उन्हें खड़ा होना पड़ा और गर्दन को  पीछे की तरह से मोड़ा जैसे वहाँ पीछे कोइ बड़ी वारदात हो गयी हो . मद्दू जो पत्रकार भी हैं ने मइके को लपक लिया -वाह गुरू हू ब हू खजुराहों लग रहे हो .कोलई का उखड़ना बनता था .मामूली धोती नहीं है जो अभी फटी है कंधे कौच्का कर बोले -कुतिया छाप मारकीन नहीं है .. कुछ और बोलते लेकिन उधर मामला और भी पेचीदा हो चुका है . ररा की बात सुनने के लिए लखन नेजब ईंट को ही घुमाना चा हा जिसपर वो बैठे तो ईंट बे काबू हो गयी और बगल में पड़े लम्मरदार के सोंटे से टकरा गयी .चूंकी सोंटों में लचक तो होती नहीं चुनाचे सोंटा उठा और तड़ाक से लम्मरदार के ही 'नरहड' सजा टकराया ( नरहड कहते हैं पैर के घुटने और ऐड़ी के बीच की वह हड्डी जो सामने रहती है .इसकी मुकम्मिल जानकारी हिन्दुस्तान की पुलिस के पास होता है ) अव्वल तो लम्मरदार  को कुछ समझ में ही नहीं आया कि यह हुआ क्या क्यों कि चोट में दम था और जब चोट में दम होता है चोट सबसे पहले मा को बुलाती है . चाहे वह कुकुर हो चाहे लम्मरदार .भाषा अलग हो सकती है लेकिन चीख की गति एक ही होती है . लम्मरदार चीखे -अरे माई रे ... कई हाथ बढ़ गए लम्मरदार के पैर की तरफ . ज्यों ज्यों दर्द कम होता गया लम्मरदार की जुबान कैची होती गयी . इस कैंची ने कईबार खुल्लाल खुल्ला लखन की मा के साथ कई तरह के रिश्ते कायम किये .फिर लम्मरदार पलते ररा नाई की तरफ .बहरहाल यह सब हुआ .और होता रहता तब तक बीच में आसरे ने चाय बाटनी शुरू कर दी .. लो लम्मरदार चाय पियो सब दर्द गायब .'
चाय इतनी कमाल की चीज होती है ? उमर दरजी जन्म क मुरहा है .बरबखत  कुबात बोलता है .
तुम काजानो चाय की महिमा . चाय पिलाय के नखडू परधान हो गया . इसकी तासीर में गजब की ....
दरबारी मास्टर अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि किन उपधिया हत्थे से उखड गए - आस्तर सुना जाय , हम बेवक़ूफ़ ना हैं आप कहाँ से बोल रहे हैं हम सब समझ रहे हैं .इस बखत चाय पे बहस चलाने से क्या मतलब ? ऊ बचपन में चाय भले बचत रहा मुला  बेमानी त ना करत रहा . आपन पार्टी देखो ,करोड़ो खा के डकार तक ...
किसकी बात कर रहे हो भाई ?
ऊ अपने नेता को समझ लिए .बस . छोडो उसे . ररा  को सुना जाय . बोलो ररा क्या कह रहे थे?
बोफोर्स गया रहा डिल्ली. (बोफोर्स ररा नाई का लड़का है ,यह उसी दिन पैदा हुआ था जिस दिन वीपी सिंह ने बोफोर्स का कागद खीसे से निकाल कर दिखाया था . यह बात दीगर है कि उसे कोइ माई क लाल आज तक नहीं पढ़ पाया जब उसके चलते एस सरकार बदल गयी . आर ररा की बीवी ने एक बच्चे को जनम तक दे दिया और अब वह दिल्ली मेकिसी सैलून में 'बँगला ' काटता है ) पूरे सात महीने बाद लौटा है . बता रहा था कि उसने वहाँ पर  जयप्रकाश नारायण को देखा .उनके पीछे बैताली झोला लटकाए रेस कोर्स का रास्ता पूछ रहा है . जयप्रकाश नारायण उसे सलाह दे रहे हैं कि रेस कोर्स का झंझट छोड. जाकर आपनी घर देख . बाप नाराज होकर घर छोड़ गया है उसे मना . संजय तोर भाई रहा उसे बेदखल किये हो ,उसे खोज . अपनी औरत के बुला ला , और एक बात कां खोल के सुन ले 'उधार के बाप से न वरासत बदलती है , न ही वसीयत मिलती है . .. बोफ्र्स्वा कहत रहा बैतालिया क दाढ़ी बहुत बढ़ गयी रही ,हम दौड़े कि उसे बना दें पर जब तक हम पहुँचते तब तक ऊ टेशन की तरफ बढ़ गया रहा .
लम्मरदार से नहीं रहा गया . - अबे ररा के बच्चे ! जे पीकेमारे कितना दिन हुआ ? कुछ मालुम है ? औ तै कहत बाते कि ऊ बैताली से मिले रहे .. अबे चल सैलून .. /चिखुरी ने रोका - देख भाई लम्मरदार ये ज़माना ही कुछ अंड बन्ड हो गया है . एक ने तो यहाँ तक कह डाला कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी और विवेकानद के बीच बात चीत होती थी . और मुखर्जी वही करते थे जो विवेकानंद  जी सलाह देते . तो ररा ने अगर यह कह दिया तो क्या गलत कहा ?
लम्मरदार ने बड़े सलीके से कहा -भाई बड़े लोगों के पास बातों के रफूगर होते हैं . बहुत महीन रफू करते हैं .पिछली बार रफू किया न कि सिकंदर बिहार की डर से भागा था .क्यों कि झेलम तक बिहार था . यह भी रफू हो जायगा .
नवल ने वाजिब सवाल उठाया -रफू सीखने का कोइ इसकूल है ,
कयूम मुस्कुराए . - दाखिला लेना है का बेटा ? ..
मिल जाय तो अच्छा रहेगा .
तो पहले यह तय कर लो रफू क्या करना है ?.. कयूम की बात नवल समझ चुके थे . कयूम की तरफ मुस्कुराकर देखे और जाते जाते एक झटका दे गए - मोरा सैयां गवन लिए जाय ,करौना की छैयां छैयां ...




1 comment:

  1. खूब बहुत खूब...वाह चंचल भाई वाह...!...केवल वाह...वाह... तक सीमित रह कर ही सरलतम शब्दों में, मैं आप और आपकी लेखनी को नमन करता हूँ...! सच कहता हूँ... आपकी अभिव्यक्ति, चाहे विविध रंगयुक्त तूलिका से हो...चाहे शब्दयुक्त लेखनी से, या वक्ता-प्रवक्ता के रूप में भाषण-सम्भाषण से... सच में, सरसस्वतीजी विराजती हैं आपकी जुबान पर...या यों कहें कि महारथ हासिल है, आपको ! सरल और सीधी भाषा-शैली में..., चुटीले और धारदार दृश्य..., विविधितापूर्ण रस..., गावं-शहर के अमीर-गरीब के बीच की कैसी भी हकीकत/हलचल को ज़मीनी और कद्दावर पात्रों का जबदस्त अमली-जामा पहनाने का हुनर है, आपमें...चाहे वो राजनीतिक हों या सामजिक...हैं तो ज़मीन पर है ना !

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