Saturday, March 9, 2013

महा शिव रात्रि : अग्नि और सोम के मिलन की रात है .........................
                        
भारतीय मिथक और मिथक चरित्रों से जुड़ी कहानियों  के बारे दो अतिरंजित धारणाएं हैं . एक पश्चिम की कथित वैज्ञानिक (?) अवधारणा जो इन मिथकों को गप्प कहकर खारिज कर देते हैं . दूसरे अपने यहाँ के पोंगापंथी हैं जो इन चरित्रों और इनसे जुड़ी कथाओं को सिन्दूर लगा कर अछत और नौवेद्य चढ़ा कर तहखाने में  सहेज कर रख देते हैं . ये दोनों सोच घातक है . हमारे ये मिथक हमारे अतीत के समाज , धर्म , राजनीति और्सबसे बड़ी बात जीवनशैली को समझने में मदद करते हैं . देश काल और परिस्थिति को समझने में पर्त दर पर्त खुलते चलते हैं . इतना ही नहीं ये कथा कई दरवाजो के सांकल बजा कर बताते हैं कि हम कहाँ थे . उदाहरण के लिए महा शिव रात्रि को ही उठाइये . 
       आज की रात जिसे हमारे मनीषी पुरखों ने ' महाशिवरात्रि ' कहा उस कथा पर जाने के पहले एक निवेदन करना चाहता हूँ - आज फाल्गुन , बदी( शुक्ल पक्ष ) की तेरस है . कल चतुर्दसी है . इस चतुर्दसी को ही महाशिवरात्रि कहते हैं . आज की रात और कल के रात की भोर को देखियेगा . सुबह के साढ़े चार बजे से पांच बज कर या सुबह होने तक . पूरब की ओर निहारियेगा . अद्भुत्नाजारा होता है . सूरज और चाँद साथ साथ निकलते हैं या थोड़ा आगे पीछे . सुरमई चादर से दो चहरे निकलते हैं . एक सूर्य का और दूसरा चंद्रमा का . आज की भोर दोनों का ताप समान होगा . अग्नि और सोम मिलते हैं लंबे अंतराल के बाद . दोनों का चेहरा सिंदूरी आभा से दमकता दिखाई पड़ेगा . अब कथा देखिये . यह रात शिव और पार्वती के समभोग की रात है . उत्सव , उमंग , उत्साह और उत्कंठा की रात है .  सालों साल योग साधना से उठा योगी भोग की कामना लिए आया है , दूसरी तरफ लंबी आराधना में लीन रही पार्वती को उनका मनचाहा प्रेमी मिला है . तप  से, ताप से ताए दो तपी भोग के लिए तत्पर हैं . दोनों का ताप बराबर है . ( सुबह को निहार कर आस्वस्थ  हो लीजिए ) यह है शिव और पार्वती के समभोग की रात . धुप अन्धेरा . हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा .समूची प्रकृति रुकी पडी है . कहीं कोइ स्पंदन नहीं . सब कुछ ठहर गया लगता है . रति क्रीडा में दोनों लीन हो गए हैं . उस अँधेरे में प्रेम और प्यास की एक ज्योति  जलती है श्रृजन की . योग और भोग की महान कथा महाशिवरात्रि हजारों हजार साल से चली आ रही है और चलती जायगी . मानवीय संवेदना , स्वभाव और मनोविज्ञान की ऐसी कथा शायद ही कहीं मिले . उत्सवधर्मी समाज समभोग की रात को पूजता है , श्रृजन के श्रोत को सामूहिक रूप से स्वीकारता ही नहीं उसके मर्म से जुड जाता है . अब इसकी अंतर कथा भी देखते जाइए . 
   दक्ष की दो बेटियाँ हैं . सती और रति .सती का ब्याह शिव के साथ होता है और रति का कामदेव के साथ . दक्ष अपने द्वारा आहूत यग्य में शिव को नहीं बुलाते इसमें कामदेव का भी सहयोग रहता है . सती जबरन पहुह्ती है और सती हो जाती हैं . शिव के दूत पहुच कर यग्य को नष्ट कर देते है लेकिन  कामदेव और अग्नि ,जिसमे सती जल कर प्रान त्यागी इन दोनों के प्रति शिव में रोष व्याप्त हो गया . और दोनों को उन्होंने भष्म किया . एक को योग साधना से विरत करने के आरोप में दूसरे को समभोग में खलल डालने के लिए . कथा कथा के अंदर बहते प्रवाह को उसे बिम्ब और प्रतीक के खाचे में रख कर टटोलिए बहुत कुछ मिलेगा . यह मधुमास है . कामदेव की रचना है . जब शंकर जैसा तपी कामदेव से नहीं बच पाया तो इन पोंगा पंथियों पर क्यों उलझा जाय . 
     चलिए विद्यापति . कालिदास मलिक मोहम्मद जायसी को बांचा जाय . इसमें कोइ किसी से कम नहीं है . कालिदास ऋतु संहार , कुमार संभवं और मेघ दूत में बहुत कुछ कह जाते हैं , विद्यापति की विरहनी मैथिल भाषा से निकलती है दुनिया की हर भाषा में अंगीकार हो जाती है . और पद्मावत ? .... क्या बात है बिम्ब , प्रतीक . अवधी का प्रान है जायसी . पद्मावत में .... जाने दीजिए इसे संघी भी पढेंगे हमें मालुम है फिर भी कहे देता हूँ - 'श्रीफल युग्म  ( बेल ) पर द्राक्ष ( अंगूर ) जैसा सुसोभित होता है , कुच बर्णन है . और ..... बस चलिए मदनोत्सव मनाये . शिव को लगा रहने दीजिए . आज महा शिव रात्रि है . 

1 comment:

  1. ज्ञान वर्धक, सुन्दर कृति !

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