Wednesday, February 13, 2013

वह योग और भोग का तपी है 
कह दूं कि शंकर योगी है तो वाम पंथ कहेगा पोंगापंथ बघार रहा है .शंकर भोगी है कहूँ तो पोंगापंथियों  की आत्मा (?) आहत होगी . ये तंत्र और मंत्र वाले दोनों मिल कर भारतीय सभ्यता की जड़ उखाड रहे हैं . उनका कहना है कि भारत के पास उसका अपना इतिहास नहीं है . इसके जो भी चरित्र हैं सब मिथक हैं . कहानियों में पिरोये गए ये चरित्र कालखंड का निर्धारण नहीं करते . बात वाजिब है लेकिन इन मिथकीय चरित्रों को लेकर गढी गयी कहानियां क्या कहती हैं ? इन कहानियों को गढ़नेवाले समाज की सभ्यता किस ऊँचाई पर रही होगी ,उसे इसी से नापा जा सकता है कि हजारों हजार साल से ये कहानिया , इनके पात्र आज भी ज़िंदा हैं . ऋतुराज के आगमन पर एक चरित्र उठा रहा हूँ इसे देखें . ( यह आलेख ब्राजील की वीरा रेइस के इस सवाल के जवाब में लिखा कि ' इस्प्रिंग '  के बारे में भारतीय मिथक क्या कहता है )
       शंकर एक चरित्र है . वह देवता है . औघडी है . दानी है . योगी है . भोगी है .वह पूज्य है . उसके लिंग की पूजा होती है . दुनिया की किसी भी सभ्यता में लिंग पूजन नहीं है . पश्चिम में तो कत्तई नहीं . मध्येसिया में कई बार इसका जिक्र होता है लेकिन बहुत बाद में . लिंग शंकर का प्रतीक है और प्रतिनिधि भी . केवल एक चरित्र की कथा हमारी सभ्यता का का खुलासा कर देती है कि हम किस ऊँचाई पर थे . प्रकृति के साथ हमारे क्या रिश्ते थे . कल बसंत पंचमी है . सूर्य के नजदीक जाकर पृथ्वी इस कोण पर झुकती है की मौसम में खुनकी आजाती है . शिशिर उतर रहा है ग्रीष्म उभर रहा है पर दोनों एक दूसरे को काटते नहीं ,एक दूसरे से लिपट जाते है . दोनों एक दूसरे को इस तरह से लपेटते हैं कि दोनों का वजूद एक दूसरे में लींन  हो जाता है , इसे नाम दिया गया बसंत ऋतु . मदन महीना . समूची प्रकृति में  मद समाहित हो जाता है . एक कथा शुरू होती है . ---
     कैलास की एक गुफा में एक योगी ध्यान में चला गया है . ' ध्यान ' में जाना  चरम आनंद है.और जब आनद चरम पर होता है तो वह अनंग होता है ,अस्तित्वहीन . वहाँ शरीर नहीं रह जाता . इस आनद को केवल दो जानते हैं , योगी और भोगी . शिव दोनों है . आज वह योग में है .  सती  अपने पिता के घर जाकर अपने पति के तिरस्कार का फल देती हैं खुद को जला कर . प्यार का अदभुत उदाहरण देती हैं , शिव सती  के शरीर को लिए भटकते है . शरीर गल गल कर गिरता है . आज उसे पीठ बोलते हैं . और जब सती नहीं रही तो वह योग में चला गया . देवताओं को दिक्कत हुई . शिव को उठाया कैसे जाय ? पंचाइत् में फैसला हुआ , शैलपुत्री पार्वती सती हैं अपने पति को चाहती हैं और शिव योग में हैं ' योग भंग ' का विधान तय हुआ . प्रकृति को बसंत मय करने का . ' कामदेव ' को कहा गया कि वे जाकर योगी शिव के ध्यान को भंग करें . कामदेव चले और समूची प्रकृति ' काम ' की उत्प्रेरक बन गयी . ठूठे पेड़ों में भी कोपलें फूटने लगी . बयार में खुनकी आ गयी . कामदेव ने शिव को  छुआ . ध्यान भंग हुआ पार्वती सामने खड़ी मिली . प्रथम आलिंगन .. योग का अनूठा प्रयोग है . पर छणिक अगर कोइ इस मिलन को साध ले और दूर तक चले तो यह मोक्ष भी देता है . यह प्यार है . भारतीय सभ्यता ने इसे पराकाष्टा तक पहुचाया है . सम्भोग को पूज्य बनाया . शिव उसके प्रकीक बनते हैं . अचानक उस योगी को याद आता है कि वह तो साधना में था यह भंग कैसे हुआ ? तोडी देरमे तीसरे नेत्र ने दिखाया कि काम देव आये हैं . औघडी उठा और कामदेव को भष्म कर दिया . हाहा कार मच गया . कामदेव की पत्नी रति विलाप करते हुए शिव के पास आयी . रति के विलाप ने शिव कोपिघ्ला दिया . शिव ने कहा कामदेव को बरदान देता हूँ वह ज़िंदा रहेगा पर शरीर में नहीं वह अनंग होगा . हर एक में होगा , हर जगह होगा , तब से कामदेव अनंग हो गए हर एक में व्याप्त होगये . कोइ इससे अछूता नहीं है . कल वही कामदेव आ रहे हैं उन्कास्वागत करिये .
   इस बसंत को देखना हो तो गाँव चलिए . आम के बगीचे के अमराई देखिये . ... धमार गा रहेहैं नवल उपधिया - चंचल ,चपल, नवल नटनागर .. अंगिया मुल्तानी क मार .. फिरे गलियन में विरह भरी अलबेली ...........

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