Sunday, November 4, 2012


जी हाँ ..मै कांग्रेस में  हूँ...
 मै तीन नामों के बहाने एक बात कहना चाहता हूँ . ये तीन है अर्चना राज , जिनका कहना है कि ' मै कांग्रेस से भावात्मक लगाव रखती रही हूँ लेकिन आज कांग्रेस जहां (?) है , मै भ्रमित हो रही हूँ . ' दूसरी है नीलाक्षी जी , जो अपनी पोस्ट पर अचानक ; गांधी पर हमलावर हो गयी है. तीसरे हैं - प्रभात चन्द्र जो स्थापित करना चाह रहें हैं कि जितना काम इस समाज के लिए डॉ अम्देकर ने किया उतना गांधी ने नहीं लेकिन मीडिया ने गांधी को राष्ट्र पिता बना दिया और अम्बेडकर के साथ बे मानी किया . येहां तीनो का अलग अलग मनोविज्ञान है . अर्चना राज को लग रहा है कि कांग्रेस फसती जा रही है , रोज रोज जो घोटाले खुल रहें हैं उससे अर्चना जी परेशान लग रही हैं . नीलाक्षी जी छेड़ने की गरज से अतीत में कूद कर गांधी को उठा रही हैं कि इनपर बहस चले . तीसरे सज्जन का सवाल मजेदार है किसने समाज के लिए ज्यादा काम किया ?
       अर्चना जी मै कांग्रेस के बहुत पुराने इतिहास को नहीं खोलना चाहता वह बहुत विस्तार ले लेगा . आप खौफजदा हैं '  आर्थिक भ्रष्टाचार ' के खुलते आयाम पर . सत्ता कोइ भी होगी भ्रष्टाचार उसका एक अंग होता है . जनतंत्र अकेला तंत्र   है जो इसपर रोक लगा सकता है . और यह जिम्मेवारी प्रतिपक्ष की बनती है . और मीडिया की . आज है क्या कि सत्ता से ज्यादा भ्रष्ट और बेईमान प्रतिपक्ष और मीडिया है . सत्ता तो फिर भी कम है . आजादी के बाद से इस सवाल पर कांग्रेस को देखाजाय तो नेहरू का कार्यकाल कत्तई भ्रष्टाचार से मुक्त रहा है . जहां कहीं भी कोइ मामला सामने आया है नेहरू ने बगैर देर किये तुरत कारवाही की . कृष्णमेनन रहें हों या पटेल . मंत्रिमडल से हटाये गए . प्रति पक्ष में डॉ लोहिया का प्रवेश हो चुका था . समाजवादी आंदोलन की सबसे बड़ी भूमिका रही है कि उसने कांग्रेस की नक्लेल पकडे रखा . इंदिरा गांधी के जमाने से फिसलन शुरू हुई लेकिन इसे संस्थागत होने से इंदिरागांधी बचाती रही इतना ही नहीं कांग्रेस को इस सवाल पर टूटना पड़ा . इंडीकेट और सिंडी केट . १९६९ नेकीराम कांग्रेस टर्निंग प्वाइंट है , कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया . नीलम संजीव रेड्डी , मोरारजी भाई . यस के पाटिल . चंद्रभानु गुप्त . अतुल्य्घोस , निजलिंग गप्पा . एक तरफ और पांच समाजवादियों के साथ इंदिरा गांधी एक तरफ . ७१ में इंदिरा गांधी दो तिहाई बहुमत से जीती . इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को समाजवाद से जोड़ दिया . दूसरी तरफ समाजवादी आंदोलन बिखर गया . साम्यवादियों ने अपने आपको इंदिरा के सामने घुटने टेक दिए . यहाँ तक आते आते भ्रष्टाचार को थोड़ी मोहलत मिली लेकिन वह कंट्रोल में रही . असल भ्रष्टाचार बेलगाम होता है ७७ के बाद जब संविद सरकारों का चलन शुरू हुआ . आज भी इसे देखा जा सकता है कि किस तरह वो लोग ज्यादा भ्रष्ट होते पाए जा रहें हैं जिनके समर्थन से सरकार चलती रहती है . इस लिहाज से कांग्रेस सबसे कम भ्रष्ट है .
  लेकिन मीडिया का दिमागी दिवालियापन देखिये वह न तो प्रतिपक्ष पर बोल रहा है न अपने करतूतों पर . शुक्र है कि इस मीडिया की पहुँच दूर तक नहीं है . बाकी दो पर कल ....

2 comments:

  1. सर , काँग्रेस का इतिहास कुछ हद तक मुझे पता है .... बात सिर्फ काँग्रेस के अंदर भ्रष्टाचार और अनिमित्ताओं की ही नहीं है ...सबसे बड़ा सवाल और डर दोनों ही काँग्रेस की दिशाहीनता और उसके लगातार तेजी से गिरते स्तर को लेकर है .....और उससे भी बड़ा डर ये है की काँग्रेस नहीं तो फिर कौन ??? कोई भी पार्टी पाक साफ नहीं है ...सत्ता मिलने पर सब एक सी हो जाती हैं बल्कि और भी ज्यादा भ्रष्ट ( केजरीवाल की बात मै अभी नहीं करूंगी क्योंकि उसका तो नाम तक अभी तय नहीं है लेकिन फिर भी इससे कुछ आस तो जरूर लोगों मे जागी है ) । एक और डर ये है की अगर कोई दूसरी पार्टी आती है और वो सफल न हो पाये तब तो काँग्रेस मे डंके की चोट पर वो सब कुछ होगा जो आज पर्दे के पीछे हो रहा है ।

    हो सकता है की नेहरू जी का कार्यकाल भ्रष्टाचार से मुक्त रहा हो पर उनकी नीतियों और कुछ हद तक अनदेखी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता ..... वैसे भी मै व्यक्तिगत तौर पर नेहरू जी का बहुत अधिक सम्मान नहीं कर पाती .... खैर , और इन्दिरा जी .....वो तो स्वतंत्र भारत के तानाशाह प्रधानमंत्रित्व की इकलौती उदाहरण हैं ...उनकी ही देने आज तक भारत के सरकारी और राजनैतिक तंत्र मे रुधिर की तरह मौजूद है ।

    पूरी विनम्रता से माफी मांगते हुए मै एक बात और कहना चाहूंगी की सबसे कम भ्रष्ट होना कोई मान्य और स्वीकर्य नैतिक तर्क नहीं हो सकता ।

    ReplyDelete
  2. मै समझता हूँ की राजनीतिक दलों को देखने से पहले हम अपने देश के साछरता पर ध्यान दे आज भी देश की लगभग 80% महिलाये कानून को भली भाती नहीं जानती क्यूकी उन्हें इस पुरुष प्रधान देश में सिर्फ पारिवारिक परवरिश के कानून ही सिखने को मिलता है । और तो और वो भी वोट देती है। सरकार चुनती है उन्हें क्या पता की सरकार के नेता रूपी अफसर देश को किस प्रकार लूट रहे है। वो तो तब समझती है जब उन्हें समाज में हो रही गतिविधियों का खुलाशा होता है। तब जो जैसा कहता है तब वो वैसे ही प्रतक्रिया देती है ।
    इसलिए हम सभी को प्रथम देश के सभी नागरिक को साछर बनाने के लिए ही प्रयत्न करना चाहिए। और सभी को भली भाती देश के कानून व्यवस्था का ज्ञान दिलाना चाहिए ।
    रही बात कांग्रेस दल की तो इसमें कुछ ऐसे वीर भी थे जो देश के वाश्ते जान भी दिए है| हमे उन्हें याद करना चाहिए न की पार्टी के मौजूदा तंत्र व्यवस्था को । क्यूंकि यह हम जनता पर ही निर्भर है की लोकतंत्र में कौन सा दल रहेगा ।
    गंगेश चौबे

    ReplyDelete