मंडी हॉउस .
गुजिस्ता खुशबुवों के दिन थे , तजकिरा ये हुश्न से रोशन रहे वो दिन जब हम मंडी हाउस की सड़कों पर कहकहे लगाते पुरनूर रंगीन सपने बुना करते थे
और बाज दफे यह भूल भी जाते कि रात गहरी हो गयी हैं ,संजीदा और समझदार लोग सोने जा चुके होंगे हम जब सहमते हुए कुण्डी खटखटाएंगे
तो मकान मालिक पर क्या गुजरेगी . लेकिन करना पड़ता था . हमारे मकान मालिक जैन साहब थे , रेल में मुलाजमत करते थे उनकी दोनों बेटियाँ
सर्वेश्वर जी की बेटियों विभा और शुभा की सहेली थी . यह परिवार सर्वेश्वर जी की वजह से इतना सब कुछ झेल रहे था , दूसरी एक वजह और रही जो हमे
बाद में पता चला कि गर जैन साहब इस बात को पहले से जानते होते कि हम जार्ज फर्नांडिस से भी जुड़ें हैं तो शायद जैन साहब मकान की चाभी
देने की जगह , एक अदद बहाना पकड़ा दिए होते . लेकिन उन्हें तब यह मालुम हुआ जब हम अपना सर सामान लिए हाजिर हुए उस समय हमारे
साथ लैला जी
भी दिखाई पड़ गयी . जैन साहब का पूरा परिवार डाइनिंग टेबुल पर चला गया , खुसुर फुसुर के बाद उनकी बेटी अलका चाय की ट्रे लेकर आयीऔर
चाय देने के बाद बहुत सकुचाते हुए सर्वेश्वर जी से बोली - अंकल ! पापा बहुत घबडाये हुए हैं , जार्ज साहब उनके नेता हैं जब उन्हें पता चलेगा कि
पापा ने उनके आदमी को किराए पर मकान दिया है ....अलका के बात को सर्वेश्वर जी ने बीच में काट कर जोर से बोले - जार्ज आज रेल नेता हैं ,
कल रेलमंत्री बनेगे तब तुम अपने लिए मकान मांग लेना , तुम भी तो रेलवे में लग गयी हो ? उसी साल वह रेलवे में बुकिंग क्लर्क की नौकरी पर लगी थी .
इत्तफाक देखिये जार्ज जब रेल मंत्री बने और हम उनके सिपहसालारों में से एक हुए तो एक दिन वही लडकी अपने पति के साथ आयी और बड़े अधिकार
के साथ कहा कि अब आप हमे मकान दीजिये .
इस तरह हम बंगाली मार्केट में भटक रही भांतिभांति की आत्माओं में शामिल हो गया . रंग मंच , संगीत , कला के जीते जागते , चरित्रों के साथ
उठना बैठना शुरू हो गया . इनमे हम सबसे ज्यादा जुड़े थे रंगमंच की गतिविधियों से , उसकी एक वजह यह भी रही की हम उन दिनों सारिका में
रंगमंच पर नियमित कालम लिख रहे थे . रंगमंच के दो हिस्से होते हैं . एक मंच पर घटित होता है जिसे दर्शक प्रेक्षक देखता है .लेकिन एक निहायत
दिलचस्प होता है वह है नेपथ्य का . दिल्ली रंगमंच का नेपथ्य देखना हो तो मंडी हाउस चले जाइए . मंडी हाउस का फुटपाथ , नाथू स्वीट , बंगाली मार्केट
रिफूजी मार्केट , बहावल पुर हाउस , ......... ओम शिवपुरी और उनकी पत्नी सुधा शिवपुरी का एक नाम नाथू स्वीट के बैरों ने रख छोड़ा था . गाठिया .
गाठिया एक तरह की नमकीन होती है .विस्तार अगली पोस्ट में -
गुजिस्ता खुशबुवों के दिन थे , तजकिरा ये हुश्न से रोशन रहे वो दिन जब हम मंडी हाउस की सड़कों पर कहकहे लगाते पुरनूर रंगीन सपने बुना करते थे
और बाज दफे यह भूल भी जाते कि रात गहरी हो गयी हैं ,संजीदा और समझदार लोग सोने जा चुके होंगे हम जब सहमते हुए कुण्डी खटखटाएंगे
तो मकान मालिक पर क्या गुजरेगी . लेकिन करना पड़ता था . हमारे मकान मालिक जैन साहब थे , रेल में मुलाजमत करते थे उनकी दोनों बेटियाँ
सर्वेश्वर जी की बेटियों विभा और शुभा की सहेली थी . यह परिवार सर्वेश्वर जी की वजह से इतना सब कुछ झेल रहे था , दूसरी एक वजह और रही जो हमे
बाद में पता चला कि गर जैन साहब इस बात को पहले से जानते होते कि हम जार्ज फर्नांडिस से भी जुड़ें हैं तो शायद जैन साहब मकान की चाभी
देने की जगह , एक अदद बहाना पकड़ा दिए होते . लेकिन उन्हें तब यह मालुम हुआ जब हम अपना सर सामान लिए हाजिर हुए उस समय हमारे
साथ लैला जी
भी दिखाई पड़ गयी . जैन साहब का पूरा परिवार डाइनिंग टेबुल पर चला गया , खुसुर फुसुर के बाद उनकी बेटी अलका चाय की ट्रे लेकर आयीऔर
चाय देने के बाद बहुत सकुचाते हुए सर्वेश्वर जी से बोली - अंकल ! पापा बहुत घबडाये हुए हैं , जार्ज साहब उनके नेता हैं जब उन्हें पता चलेगा कि
पापा ने उनके आदमी को किराए पर मकान दिया है ....अलका के बात को सर्वेश्वर जी ने बीच में काट कर जोर से बोले - जार्ज आज रेल नेता हैं ,
कल रेलमंत्री बनेगे तब तुम अपने लिए मकान मांग लेना , तुम भी तो रेलवे में लग गयी हो ? उसी साल वह रेलवे में बुकिंग क्लर्क की नौकरी पर लगी थी .
इत्तफाक देखिये जार्ज जब रेल मंत्री बने और हम उनके सिपहसालारों में से एक हुए तो एक दिन वही लडकी अपने पति के साथ आयी और बड़े अधिकार
के साथ कहा कि अब आप हमे मकान दीजिये .
इस तरह हम बंगाली मार्केट में भटक रही भांतिभांति की आत्माओं में शामिल हो गया . रंग मंच , संगीत , कला के जीते जागते , चरित्रों के साथ
उठना बैठना शुरू हो गया . इनमे हम सबसे ज्यादा जुड़े थे रंगमंच की गतिविधियों से , उसकी एक वजह यह भी रही की हम उन दिनों सारिका में
रंगमंच पर नियमित कालम लिख रहे थे . रंगमंच के दो हिस्से होते हैं . एक मंच पर घटित होता है जिसे दर्शक प्रेक्षक देखता है .लेकिन एक निहायत
दिलचस्प होता है वह है नेपथ्य का . दिल्ली रंगमंच का नेपथ्य देखना हो तो मंडी हाउस चले जाइए . मंडी हाउस का फुटपाथ , नाथू स्वीट , बंगाली मार्केट
रिफूजी मार्केट , बहावल पुर हाउस , ......... ओम शिवपुरी और उनकी पत्नी सुधा शिवपुरी का एक नाम नाथू स्वीट के बैरों ने रख छोड़ा था . गाठिया .
गाठिया एक तरह की नमकीन होती है .विस्तार अगली पोस्ट में -
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