Monday, September 19, 2016

हिन्द पाक रश्ते -
उरी में हुए  आतंकी हमले के बाद युद्ध उकसावे का उफान आ गया है . हर की जबाबी कार्यवाही के मांग कर  रहा है .और यह गलत नही है
इसी तरह के बयानात के  बदौलत देश को एक नालायक और नाकारा सरकार मिली है . विदेश नीति के सवाल पर तो कतई जाहिल . आज
भारत किसी भी मुल्क को अपना दोस्त कहने की स्थिति में  नहीं है . अब जरा भारत पाक सरकारों की उस नेति को झाँक कर देखिये की  आतंक वाद
इनकी सोच क्या  है . पाकितान अपने शुरुआती  दिनों  से ही इस्लाम के नाम पर पनपने वाले आतंकी हरकतों का हामी  रहा है .
 वहां  आतंवाद और सैनिक ताकत एक होकर अवाम की चुनी हुयी सरकार को दबा कर अपनी मुट्ठी  में ले   लिया है . दो - कोइ भी  सरकार जब अपने
अंदरुनी मसायल को नही  हल कर पाती तोतो अपनी नालायकी  छुपाने के  लिए , बाहरी खतरा दिखा कर  राष्ट्र प्रेम पैदा करती है .भारत का अतीत
इस सोच से अलहदा रहा . कांग्रेस  के कार्यकाल में देश और सरकार दोनों इस बात पर मुतमइन रहा की पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है , और हर
मायने में हमसे बहुत पीछे है . सैन्य शक्ति में तो हम पाकिस्तान से बीस  गुना ज्यादा हैं . इसके बावजूद जितनी भी  बार पाकिस्तान ने युद्ध के लिए
 उकसाया उसे उसका जवाब भी  मिल गया . भारत  पाक सीमा का उलझा हुआ मसला भी श्रीमती इंदिरागांधी केसिमला समझौते में ही सुलझा
 लिया गया था . अब दोनों देशों के लिए यह जरुरी था की वे मिल बैठ कर अपने मसायल हल करें और युद्ध खर्च को विकास की और मोड़ें .
 मनमोहन सरकार तक आपसी बातचीत की नीति चलती रही . लेकिन  नई सरकार के आते ही नई नीति बन गयी . आयर भारत पाक के रास्ते पर
 चल पडा . उनके यहाँ इस्लाम के नाम पर आतंकवाद पनपा तो यहाँ हिन्दू के नाम पर आतंकी कारनामे होने लगे . यहाँ की भी सरकार इस हिन्दू आतंक
को सरक्षण देने लगी . इस नई सरकार ने आधिकारिक रूप से बातचीत का रास्ता बंद कर दिया और लगे बन्दर घुडकी देने . लेकिन जमीनी सच्चाई
 यह रही कि हम खुफिया तंत्र में कत्तई असफल रहे . दो - जिस तरह पाकिस्तान के अन्दर का आतंकवाद न केवल भारत के के लिए सरदर्द है बल्कि
पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ी समस्या है . वही स्थिति अब भारत में भी बन रही है . लेकिन थोड़ा सा फर्क है . पाक आतंकवाद जाहिलों को वर्गला कर
मजहब के सहारे खुद्कुसी तक पहुंचा दे रहा है और सपना दिखाता है की अगर शहीद हुए तो जन्नत में ७२ हूरें मिलेंगी . और वे आतंकवादी यह मान कर प्रवेश
लेते हैं की मरना तो तय ही है . लेकिन यहाँ का हिन्दू आतंकवाद इतना नुकीला नही है . बहादुर तो कत्तई नही , यह कायरों की जमात है . इनका
 खून खराबा अपनी ही जमीन पर होगा . कई उदाहरण हैं वे सब आपके सामने है .
    इस समस्या का हल केवल बातचीत से ही होगा . और आतंकवाद को केंद्र में रखना होगा . इस दिशा में अगर सरकारें फेल होती हैं तो अवाम
 को सामने आकर दबाव बनाना पडेगा .

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