Saturday, January 9, 2016

चिखुरी / चंचल
चोलबे ना , मिक्खुनव भर चोलबे ना ....
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              हिन्दी पट्टी,बड़े खौफ में जीती है . भेष-भूषा , खानपान , रहन सहन और तो और बोली भाषा में भी वो अपने को हीन समझती है . सैकड़ों  साल से लदी अंगरेजी और अंग्रेजियत ने इसे बीमार करके रख दिया है . काम की तलाश में यह जहां कहीं भी छिटक कर जाता है, उसे परदेस कहता है और अपने गाँव को मुलुक कहता है . इस मुलुक के छोरे पर परदेस का रंग ऐसा चढता है कि महीनों वह अपने मुलुक में इसे भुनाता रहता है . ललुआ केवट कल सरे आम पंडित राजमणि डूबे से चार कुबरी मार खा गया . बहुत बीच बचाव के बाद तो मामला शांत हुआ . हुआ यूँ कि लालू ;नकदी ' कमाने की गरज से लुधियाने चला गया रहा ,और जब लौटा तो पंजाब को ओढ़े हुए आया . चारखाने की तहमत , ऊपर आधे बांह की बंडी ,कलाई में स्टील का चमकदार कड़ा , सातवी लाइन न बोलनी हो तो पूरा पंजाबी लगता है . रमेश की दूकान पे खड़ा लवंगलता खा रहा था इसी बीच कहीं से घूमते घामते राजमणि डूबे आ गए . आते ही आते डूबे ने लालू से कहा , अच्छा हुआ मिल गए लालू भाय , कल सुबह आते तो चार गो गड्ढा खोदना है , सरकार की तरफ से आम का पेड़ मिला है ,लगवा दूँ , बाल बच्च्ओं के काम आएगा . खायेंगे और तुम्हे असीसेंगे . आधी लवंगलता अभी मुह में ही थी कि ,कि लालू ने बड़ा सा मुह खोल कर बोला - बहन ... और चो सुनते ही डूबे जी गरमा गए , अबे भागेलुआ के सारे तोर ई हिम्मत कि हम्मे गाली देबे ? और दनादन चार कुबरी लालू के कटी क्षेत्र पर धर दिये , रामलाल तेली बताय रहा था कि - भईया ओ तो और मार खाता लेकिन इसी बीच पंडित जी के पैर के नीचे पिलई आ गयी , उसकी पूंछ दब गयी और वह ऐसे चीखी कि पंडित जी खुदे पानी के गच्चे में जा गिरे . बाद में पता चला कि पंजाब में हर बात की शुरुआत बहन ... से शुरू होती है और बीच बीच में चलती रहती है . गरज यह कि अपने मुलुक में कई परदेस घूमता टहलता , हंसी मजाक करता जी रहा है .
    लाल साहेब की दूकान पर लगनेवाली संसद बैठ चुकी है . लाल्साहेब बेना से भट्ठी को हवा दे रहे हैं ,और भट्ठी छापर को धुवां से भर रही है . संसद में राजनीति तली जा रही है , ठाकुर प्रसाद टटके परदेस कमा के लौटे हैं कलकत्ते के बरन कम्पनी में फिटर हैं मामूली बात है क्या ? नवल उपधिया ने आखन देखी बताए - दो दिन पहले की बात है , हम बाजार गए रहे अंगरेजी दवा लेने , बिकास को पेचिस पकड़ लिया है . अब उसकी दवा तो यहाँ अपने बाजार में मिलती नहीं सो बड़ी जगह जान पड़ा . दवा ले के लौट ही रहा था ,तब तक अठबजवा गाड़ी के सभी पसिंजर उतर के आय रहे थे , उसी में अपने ठाकुर प्रसाद भी रहे . गाड़ी के धुवाँ से कपड़ा ,लत्ता मुह शरीस सब करिअये रंग से सना . हम तो पहचान ही नहीं पाए . लेकिन उन्होंने हमे पहचान लिया . रिक्शे पर दो बोरिया समान , एक बाल्टी , एक छाता . मिलते ही बजुत खुश हुए . चलो अच्छा , जदी  मना कि अपुन को अपन जन मिल जाय तो खूब भालो लागे जे . रिक्शा रुका . ठाकुर प्रसाद न्युबाम्बे सैलून में गए . दाढ़ी बनी . चम्पी अलग से . महकवाला तेल लगा . कपड़ा बदलान . नयी धोती , कमीज , निकली . पम्प जूता निकला . आगे आगे छाता लिए ठाकुर परसाद , पीछे हम . उसके पीछे रिक्सा . जिधर से हम चलें जनता हमारी तरफ देखे ,काहे से कि उनके पैर में चिपका पम्प शु चुन चू बोल रहा था . तीन कोस हम पैदल  पार कर गए , पता ही नहीं चला . रस्ते भए कलकत्ते की राजनीति बोलते रहे हम सुनते रहे ... ' तो बोले का ? ' कयूम मियाँ ने टुकड़ा जोड़ा . कीन उपाधिया ने सूचना दी - का बोले , नवल का बताएँगे , वो तो खुद साछात आय रहे हैं . लोगों ने पलट कर देखा सजे धजे ठाकुर प्रसाद खुद चले आ रहे हैं . कमीज धोती पम्प . एक हाथ में छाता दूसरे हाथ से धोती की फुक्ती पकडे चले आ रहे हैं . चिखुरी मुस्कुराए - ई ठाकुर परसाद तो बिलकुले भद्रलोक होय गए हैं . ठाकुर प्रसाद आये , उन्हें इज्जत के साठ बिठाया गया . आज की चाय पेसल हो गयी . मेहमान ने जुबान खोला - लाल साहेब ! पियोर दूध की पेसल चाय ,जदी मना कि अपुन की तरफ से .कयूम मियाँ ने बात की शुरुआत सीधे सियासत से शुरू कर दी . एक बात बताया जाय बाबुसाहेब कि बंगाल में चुनाव होए वाला है , किसकी सरकार बनेगी ? ठाकुरप्रसाद किसी जमाने में सिद्धार्थ दादा के प्रशंसक रहे हैं राजनीति पर बोलते समय उन्ही की मुद्रा अपनाते हैं . पहले गंभीर हुए .दोनों होठों को चिपका कर मुह को कान की तरफ खींचे फिर बोले - गोल माल . जदी मना कि कुछो नहीं कहा जा सकता . लड़ेगा सभी लोग . का कौम्निष्ट , का फूल वाला , का पत्तीवाला .अबकी बार हाथ का पंजा भी जोर मारेगा .मुला एक बात तो त्य है कि जड़ी मना कि तीन पत्तीऔर हाथ मिल जाय तो भद्र लोग किसी को घुसने नहीं देगा बिहार माफिक . तीन पत्ती ? उमर दरजी को कुतूहल हुआ . चिखुरी  ने बताया -  तीन पत्ती मतलब तीन पंखुड़ी वाला फूल यानी ममता बनर्जी की पार्टी का चुनाव चिह्न . और हाथ का मतलब कांग्रेस का पंजा . और यह सही है दोनों अगर मिलते हैं यह सबसे बड़ी जीत हासिल होगी . कम्युनिस्ट जद हो चुके हैं एक जगह पर ख्गदे खड़े कदमताल कर रहे हैं .केन्द्रीय नेतृत्व तो और भी जड़ है . अगर बंगाल के भद्रजनों के हाथ में संगठन डे दिये होते तो आज कुछ और ही मजा होता . लेकिन इतना तय है कि बंगाल केन्द्र के साथ नहीं जायगा 

2 comments:

  1. काँग्रेस से जो छितरे हैं मिले तो फिर क्या कहना

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  2. काँग्रेस से जो छितरे हैं मिले तो फिर क्या कहना

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