Wednesday, November 11, 2015

चिखुरी / चंचल
राजनीति इतनी बदजुबान हो गयी ?
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....नवल उपाधिया हडबड़ी में आये , नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे  सैलून लगता है , साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गए . अचानक जोर से चीखे - अबे उमर के बच्चे जहां कहीं भी हो तुरत सामने आओ , तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़ झंडूस देखे हैं .सुनो हो पंचो ! कीन कह रहे थे कि कल तुम रामलाल के दूकान से पटाखा खरीद रहे थे ? ये हिम्मत . एक एक कर के देश निकाला कर देंगे . सुना है तुम भी पटाखा दगाओगे ? जानते नहीं हो , कीन उपाध्याय को ... लाल साहब की दूकान पर चाय के इन्तजार में जमी संसद नवल को देख रही है . लखन कहार ने धीरे से जवाब दिया - को नहीं जानत है जग में ... ' लेकिन कीन समझ गए कि लखन क्या कह रहा है .अपने चिचुके मुह और खोपड़ी के पीछे लटक रही मोटी चोटी पर कई लोग बानर तक कह चुके हैं .लेकिन लखन ने हनुमान चालीसा उठा लिया ,अब इसका विरोध तो हो नहीं सकता . कीन अंदर ही अंदर मसोस कर रह गए .उस समय  कीन एक पैर पर खड़े थे एक पैर मोड़ कर पीछे खड़ी दीवार पर टिकाये अखबार बांच रहे हैं गो कि अभी आज का ताजा अखबार आया नहीं है . कीन पुराने से ही काम चला रहे हैं . यहाँ इस चौराहे का अलिखित नियम है कि अखबार उम्र , पद और गरिमा के हिसाब से पढ़ने को मिलता है ,और कीन का नंबर जब तक आता है सांझ हो जाती है यह नहीं कि लोग दिन भर वहीं बैठे रहते हैं , लेकिन आखिर चाय की दूकान है न , लोग केवल चाय पीने ही थोड़े आते हैं ... अखबार देखेंगे , आबो हवा बदलेंगे वरना उनको घर पर चाय नहीं मिलेगी क्या ? दुकानदार का पहला फर्ज है कि वह अपने ग्राहक का ख़याल रखे समझे कीन ? वहीं अपनी दूकान से झाँक लिया करो , जब यहाँ कोइ न रहे तो आकर पढ़ लिया करो . कीन जानते हैं लाल साहेब पुराण मुरहा है ,औ गाहक ? तो ससुरे दिन भर आते ही रहते हैं . तब से कीन एक दिन . कभी तो तारीख भी नहीं देखते पुराना अखबार बांचने लगे हैं .उमर दरजी ने कीन को उकसाया का लिखा है कीन गुरु ? आज के अखबार में . कीन मुस्कुराए - वही लिखा है जो नवल उपाधिया बोल रहे थे , बुलाय के पूछि लो . तब तक नवल हाजिर हो गए . उमर ने नवल को घुड़का - का बोल रहे थे हमरे बारे में . देखो नवल ! रहना हो तो तमीज से रहो वरना इतनी मार खाओगे कि मुह औ जूते में फर्क गायब हो जायगा समझे . नवल उमर को सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं - और बोल . जितना बोलते बने बोल ले फिर बताते हैं . उमर एक कदम आगे बढ़ के नवल के नजदीक आ गया - सुन पंडित हीरामन उपाध्याय के सुपुत्र !तू अगर अपने आपको न सुधारा तो
- तो कर लेबे ?
- कनपटी पे दो कंतास देंगे और चले जायंगे अपनी दूकान पर .
नवल कीन की तरफ मुड़े - नवल भाय ! इसको पाकिस्तान भेज देते तो गाँव सुधर जाता . उमर मुस्कुराया - पाकिस्तान तोरे बाप बसाए रहे कि कीन के बाप ? और चाय के हांका लगते ही संबाद रुक गया . चुंकी नवल उस समय खैनी मल रहे थे चुनांचे उमर दरजी ने नवल की चाय भी दूसरे  हाथ में पकड़ कर नवल के बगल खड़े रहे . गाँव में यह यह रोज मर्रा की जिंदगी है . पता नहीं कब से चला आ रहा है . इस रवायत की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं इनको उखाडना अब आसान नहीं है . अखबार आ गया . चिखुरी के सामने . चिखुरी ने अखबार उठा कर मद्दू पत्रकार की तरफ बढ़ा दिया - देखिये आज कौन सा बवाल है ? मद्दू नेअख्बार उठाया - बिहार में अगर हम हारे तो .पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे . अमित शाह ने रक्सौल में बोला है . चिखुरी ने गर्दन ऊपर उठाया . - कहाँ कहाँ से पकड़ कर लाया है ... बेतुकी बात . बदजुबानी . न कोइ मर्यादा न तमीज ... बिहार ने तो इन्हें नंगा कर दिया एक एक कर के इनकी असलियत जनता के सामने खुलती जा रही है . चुनाव इतनी गिरी जुबान में कभी नहीं हुआ . दुर्भाग्य देखो कि जिनके हाथ में मुल्क की बागडोर है वह इतना नीचे जा चुका है . कल उसी बिहार में एक लड़की मीसा के बारे में जो बोला गयावह सड़क छाप लफंगे भी बोलने के पहले अगल बगल जहां लेते हैं कि कोइ बुजुर्ग तो नहीं सुन रहा है , और इधर ये मुखिया महोदय हैं कि सरे आम महफ़िल में लाउड स्पीकर से चीख चीख कर बोल रहे हैं . बिहार में ही नहीं देश में और दुनिया के हर कोने में हमारी तुक्का फजीहत हो रही है . यह हमारा मुल्क है ? यहीं पर गांधी , लोहिया , जे पी , कर्पूरी ठाकुर , किस किस ने राजनीति नहीं किया . एक दूसरे के विरोध में रहे लेकिन दुश्मन नहीं थे . मत भेद और मन भेद का मर्म जानते थे . इसी मुल्क में पंडित नेहरु ने राजनीति की उनकी दिली  मंशा थी कि संसद में डॉ लोहिया और कृपलानी जैसे लोग आयें . सैधांतिक बहस चले . वही मुल्क आज सियासत को संदुक्चियों और बन्दुक्चियो के हाथ सौंप दिया है . लेकिन जो रपट बिहार से आ रही है , लगता है शुभ होगा और बिहार देशग को नयी डगर दिखायेगा . ... एक चाय और ? लाल साहेब ने बीच में ही टोक दिया . बात रुक गयी और चाय हाथों में . तब तक ररा नाई चीखा - भाई सैलून में साइकिल किसने दाल दिया ...जोर का ठहाका लगा . करि  अवा कुकुर दूसरे कुत्ते को देख कर गुर्राया . नवल ने साइकिल उठाया और जगाते हुए आगे बढ़ गए मोरा सैंया गवन लिए जायं हो करौना की छैयां छैयां ......

3 comments:

  1. बहुत खूब -- भाई जी
    जौनपुरिया अडडेबाजी

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  2. एमा तो झाड दिए हो गुरु ! वैसे बिहार ने संदुकची को कहीं का नहीं छोड़ा , आया था ससुरा व्होट खरीदने. तडीपार को बिहारी ही तड़ीपार कर सके है...

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  3. कस के दबा दिया तडीपारो को।लिखते रहिए चंचल भैया।

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